रायपुर: छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की 2 सीटें खाली हो रही है. इसमें एक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा की सीट है, तो दूसरी भाजपा सांसद रणविजय सिंह जूदेव की सीट. वर्तमान में विधायकों की संख्या के हिसाब से इस बार दोनों सीटें कांग्रेस की झोली में गई है, लेकिन कांग्रेस आलाकमान अपने सबसे वरिष्ठ चेहरा मोतीलाल वोरा को फिर से राज्यसभा नहीं भेजने का फैसला लिया है.
मोतीलाल वोरा अब 92 साल के हो चुके हैं और उन्हें राज्यसभा में न भेजकर एक तरह पार्टी ने उनकी सक्रिय राजनीति पर विराम लगा दिया है. हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन गांधी परिवार के सबसे करीबी माने जाने वाले मोतीलाल वोरा को राज्यसभा में छत्तीसगढ़ कोटे से नहीं भेजा जाना कुछ ऐसा ही संकेत दे रहा है. इधर, कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि, मोतीलाल वोरा अब भी संगठन में सक्रिय भूमिका निभाते दिखेंगे.
बीजेपी ने कांग्रेस पर साधा निशाना
मोतीलाल वोरा की जगह जाने-माने वकील केटीएस तुलसी को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा भेजे जाने को लेकर भाजपा ने चुटकी ली है. इसे एक वरिष्ठ नेता की उपेक्षा से जोड़कर कांग्रेस पर निशाना साधा है.
कांग्रेस ने राजनीति से आराम देने का मूड बना लिया
छत्तीसगढ़ के दुर्ग शहर से ताल्लुक रखने वाले मोतीलाल वोरा बेहद सौम्य स्वभाव के राजनेता हैं. पार्टी के साथ ही विपक्षी दल के नेता भी उनका उतना ही सम्मान करते हैं. ऐसे में राज्यसभा के लिए उनका नहीं चुना जाना राजनीतिक विश्लेषक को भी सोचने पर मजबूर कर रहा है. वोरा को लेकर कई कयास लगाये जा रहे हैं, जिसमें सक्रिय राजनीति से उनकी विदाई भी माना जा रहा है.
1985 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
मोतीलाल वोरा 1972 में मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए थे. इसके बाद 1985 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने 1988 में राज्यसभा के लिए चुने गए. इस दौरान वे केंद्र में मंत्री भी रहे. मोतीलाल बोरा 1993 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी बनें. इसके बाद 1999 के चुनाव में राजनांदगांव से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने चुनावी राजनीति से दूरी बना ली है और लगातार राज्यसभा के माध्यम से सदन में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने इसबार उनका टिकट काट दिया है. इससे कयास लगाये जा रहे हैं कि मोतीलाल वोरा अब राजनीति से सन्यास ले सकते हैं.