रायपुर: छत्तीसगढ़ के गांधी कहे जाने वाले प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा का 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. प्रोफेसर खेरा पिछले 35 सालों से अमरकंटक के जंगलों में रहकर आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे थे. उनके निधन पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर शोक जताया है.
सीएम ने लिखा है:
अचानकमार के घने जंगलों के बीच 30 साल तक कुटिया बनाकर बैगा आदिवासियों के बीच शिक्षा का उजियारा फैलाने वाले, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेड़ा के निधन की खबर सुनकर मन दुःखी है. डॉ. खेड़ा त्याग, संकल्प और नि:स्वार्थ सेवा की प्रतिमूर्ति थे. विनम्र श्रद्धांजलि
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अचानकमार के घने जंगलों के बीच 30 साल तक कुटिया बनाकर बैगा आदिवासियों के बीच शिक्षा का उजियारा फैलाने वाले, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेड़ा के निधन की खबर सुनकर मन दुःखी है।
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डॉ खेड़ा त्याग, संकल्प और नि:स्वार्थ सेवा की प्रतिमूर्ति थे।
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— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) September 23, 2019
डॉ खेड़ा त्याग, संकल्प और नि:स्वार्थ सेवा की प्रतिमूर्ति थे।
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डॉ खेड़ा त्याग, संकल्प और नि:स्वार्थ सेवा की प्रतिमूर्ति थे।
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घने जंगलों में रहकर आदिवासियों की सेवा की
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे डॉ. पीडी खेड़ा कई दिनों से बीमार चल रहे थे. 93 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली. प्रोफेसर खेड़ा ने लोरमी के अचानकमार के जंगलों के अंदरुनी इलाको में पिछले 35 सालो से आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया.
गांधीवादी थे प्रोफेसर खेड़ा
प्रोफेसर खेड़ा गांधीवादी विचारक थे. वे महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे. डॉ. खेड़ा न सिर्फ खादी के कपड़े पहनते थे बल्कि 93 की उम्र में वे अपना खाना खुद बनाते थे. वे कभी दूसरो के उपर निर्भर नहीं हुए. गांधी जी की तरह वो भी स्वावलंबी थे.