रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार ने इस साल भी प्रदेश में अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रांसफर (transfer in chhattisgarh )पर रोक लगा रखी है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (cm bhupesh baghel) ने कह दिया है कि बड़े पैमाने पर ट्रांसफर इस साल भी नहीं होंगे. कोरोना के कारण इस साल भी बड़े पैमाने पर तबादलों पर रोक जारी रहेगी. हालांकि समन्वय के आधार पर विभिन्न विभागों में तबादला जारी है. इधर बीजेपी ने सरकार के इस फैसले पर विरोध जताया है. बीजेपी का कहना है कि ट्रांसफर पर ऑफिशयली भले ही रोक लगी है लेकिन पैसे की आड़ में ट्रांसफर किए जा रहे हैं. बीजेपी ने विधानसभा के मानसून सत्र में 'तबादला उद्योग' का मुद्दा उठाने का मन बनाया है.
इस साल भी बड़े पैमाने पर नहीं होंगे तबादले : सीएम
अप्रैल 2020 की स्थिति में छत्तीसगढ़ में कुल 5 लाख 14 हजार से ज्यादा शासकीय अधिकारी और कर्मचारी हैं. जिनमें से हजारों जरूरतमंद अधिकारी और कर्मचारियों ने अपनी मनपसंद जाने के लिए संबंधित विभागों में तबादला की अर्जी लगा रखी है. लेकिन उन्हें इस साल भी अपनी मनपसंद जगह नहीं मिल पाएगी, पिछले साल की तरह इस साल भी ना तो ट्रांसफर नीति आएगी और न ही तबादले होंगे. सीएम भूपेश बघेल ने साफ कर दिया है कि कोरोना काल में ट्रांसफर उचित नहीं है.
तबादले की अर्जी पर इस साल भी नहीं होगी सुनवाई !
तबादले पर रोक के आदेश के बाद इस साल तबादले की राह देख रहे अधिकारियों और कर्मचारियों में काफी मायूसी है. खासकर वे अधिकारी और कर्मचारी जिन्होंने किसी न किसी परेशानी की वजह से विभिन्न विभागों में तबादले की अर्जी लगा रखी है. जिनकी सुनवाई शायद इस वर्ष भी नहीं होगी.
बल्क तबादले पर लगी रहे रोक, लेकिन जरूरतमंदों का किया जाए स्थानांतरण : विजय झा
इस पूरे मामले में तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष विजय झा (State President of Third Class Employees Union Vijay Jha) ने अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि बल्क तबादला पर रोक लगी रहनी चाहिए. लेकिन जरूरतमंद अधिकारी और कर्मचारियों का स्थानांतरण किया जाना चाहिए.
बल्क तबादले में राजनीति और कमीशन खोरी का खेल
झा ने कहा कि बल्क तबादला होने से उसमें बहुत ज्यादा राजनीति हो जाती है. नेतागिरी के चक्कर में जरूरतमंद के साथ न्याय नहीं हो पाता और कुछ अधिकारी-कर्मचारी प्रताड़ित भी होते हैं. साथ ही कमीशन खोरी का भी खेल शुरू होने का डर बना रहता है. झा ने सरकार से मांग की है कि जो अधिकारी व कर्मचारी किसी कारणवश या परेशानी के चलते एक स्थान से दूसरे स्थान जाना चाहते हैं. उन जरूरतमंद अधिकारियों-कर्मचारियों का तबादला किया जाना चाहिए.
जरूरतमंदों का खुद के खर्चे पर तबादले से नहीं पड़ेगा आर्थिक बोझ
विजय झा ने बताया कि जब विभाग की तरफ से किसी अधिकारी या कर्मचारी का तबादला किया जाता है तो उसके लिए उसे एक जगह से दूसरी जगह जाने में होने वाला सारा खर्च संबंधित विभाग ही उठाता है. इस तरह यह खर्च अलग अलग श्रेणी के लिए अलग-अलग होता है. उदाहरण के लिए बाबू के लिए जहां एक और ढाई से तीन हजार रुपये का खर्च तबादले पर आता है तो वहीं दूसरी ओर अधिकारी के लिए 20 से 25 हजार रुपये विभाग को देना पड़ता है. यदि कोई व्यक्ति स्वयं के व्यय से तबादला चाहता है तो उस स्थिति में सरकार पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ता है. ऐसे में जो जरूरतमंद अधिकारी और कर्मचारी स्वयं के व्यय पर तबादला चाहते हैं तो उनका तबादला किया जाना चाहिए. इससे ना सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और जरूरतमंद लोग अपनी मनचाही जगह भी पहुंच जाएंगे.
छत्तीसगढ़ में चल रहा तबादला उद्योग: बीजेपी
इधर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास (Gaurishankar Srivas) ने सरकार के इस फैसले को एक अलग ही रंग दिया है. श्रीवास ने यह कहते हुए कांग्रेस सरकार पर सीधा आरोप लगाया है कि एक तरफ सरकार ने तबादला पर रोक लगा रखा है तो दूसरी तरफ टेबल के नीचे से पैसा लेकर ट्रांसफर भी किए जा रहे हैं. तबादला उद्योग चलाया जा रहा है. यानी ये रोक कमाई का एक जरिया भी बना हुआ है. लोकसभा चुनाव 2019 में जब प्रचार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (pm modi )छत्तीसगढ़ आए थे, तो उन्होंने भी नई-नई बनी भूपेश सरकार पर 'तबादला उद्योग' transfer industry चलाने का गंभीर आरोप लगाया था.
मानसून सत्र में बीजेपी उठाएगी मुद्दा
गौरीशंकर श्रीवास ने कहा कि आने वाले मानसून सत्र में तबादला उद्योग के मामले को प्रमुखता से उठाया जाएगा. किस तरह से प्रदेश में एक अघोषित तबादला सिंडिकेट काम कर रहा है. सरकार के बड़े लोग उसमें शामिल हैं. इन सारे विषय को लेकर विधानसभा में सवाल उठाया जाएगा.
बल्क में तबादले से सरकार पर पड़ता है लगभग 180 करोड़ का आर्थिक बोझ
एक अनुमान के मुताबिक यदि निर्धारित मापदंड के आनुसार तबादले किए जाते हैं, तो उस पर लगभग 180 करोड़ रुपये का खर्च आता है. यही वजह थी कि पिछले साल राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर होने वाले तबादले पर रोक लगा दी थी. वहीं रोक इस साल भी जारी है. ताकि पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे छत्तीसगढ़ सरकार पर तबादले से पड़ने वाला राजस्व का बोझ कुछ कम हो सके.
बहरहाल बड़े पैमाने पर होने वाले तबादले पर सरकार की तरफ से लगाई गई रोक के कई मायने निकाले जा रहे हैं. जहा एक ओर रोक के बावजूद कई विभाग में धड़ल्ले से तबादला जारी हैं, तो वहीं दूसरी ओर जरूरतमंद संबंधित विभाग में अर्जी लगाकर तबादले की राह देख रहे हैं. यही कारण है कि अब सरकार की इस तबादला नीति को लेकर सवाल उठने लगे हैं. जरूरतमंदों का तबादला पिछले 2 साल से रोकने के कारण उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.