रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सलाम रिजवी ने बड़ा खुलासा किया है. सलाम रिजवी ने कहा कि, 'छत्तीसगढ़ राज्य वक्फ बोर्ड कंगाल हो चुका है. इसका अस्तित्व एक डमी के समान है. बोर्ड आर्थिक तंगी से गुजर रहा है'. उन्होंने बताया कि 'बोर्ड का बजट कर्मचारियों के वेतन में ही चला जाता है. जिसके कारण इसकी स्थिति बेहद खराब हो गई है'.
सलाम रिजवी ने पूर्व की सरकार पर बोर्ड के उत्थान के लिए कोई योजना नहीं बनाने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि 'बोर्ड की संपत्तियों का सर्वे 3 दशक से नहीं किया गया है. जिसके कारण बोर्ड की संपत्तियों पर अवैध कब्जाधारियों के अधिकार जमा लिया है'. बताया जा रहा है, छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड की करीब 5 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति पर या तो अवैध कब्जा है या उसपर विवाद विवाद चल रहा है. सलाम रिजवी ने बताया कि 'बोर्ड के बजट का एक बड़ा हिस्सा वकीलों की फीस में खर्च हो रहा है'.
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'वेतन और वकीलों में चला जाता है बजट'
छत्तीसगढ़ राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सलाम रिजवी ने ETV भारत से बात करते हुए बताया कि 'सरकार से मिलने वाले अनुदान और निगरानी चंदा से ही इस बोर्ड का संचालन किया जाता है'. इसमें सबसे ज्यादा पैसा वकीलों की फीस में चला जाता है'. उन्होंने बताया कि 'जैसे-जैसे मामले बढ़ते हैं, वैसे-वैसे वकीलों की फीस भी बढ़ती जाती है'. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि 'कई बार बजट कम होने के कारण कम पैसे पर वकील रखने पड़ते हैं, जिसके कारण उन्हें अच्छा परिणाम नहीं मिलता है'.
'तीन दशक से नहीं हुआ सर्वे'
रिजवी ने बताया कि 'विभाग में स्टाफ की भी कमी है इतना ही नहीं सरकार के बाद पूरे समय के लिए अभी तक आयुक्त की भी नियुक्ति भी नहीं हो पाई है'. सलाम रिजवी ने कहा कि 'पार्ट टाइम आयुक्त ही यहां का काम देख रहे हैं. इसके अलावा राज्य गठन के बाद से कभी वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सर्वे तक नहीं कराया गया है'. रिजवी में बताया कि '25 अगस्त 1989 को वक्फ बोर्ड की संपत्ति का प्रकाशन किया गया था. इसके बाद तीन दशक से सर्वे नहीं हुआ है. इस बीच बोर्ड की कई संपत्तियों पर अतिक्रमणकारियों ने अवैध कब्जा कर लिया है'.
'सरकार से मिलता है 1 करोड़ 17 लाख का अनुदान'
रिजवी ने पहले की सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा कि, 'पूर्ववर्ती सरकार के कारण आज, बोर्ड मात्र एक डमी के रूप में इस्तेमाल हो रहा है' उन्होंने कहा कि 'लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस सरकार की तरफ से बोर्ड की बेहतरी के लिए रास्ता तैयार किया जा रहा है'. रिजवी ने बताया कि 'सरकार से बोर्ड को 1 करोड़ 17 लाख का बजट दिया जाता है, जो वेतन और ऑफिस संचालन में खर्च हो जाता है'.
'महज 400 मस्जिदों का पंजीयन'
रिजवी ने बताया कि 'छत्तीसगढ़ में करीब 3000 मस्जिदें हैं, लेकिन इसमें से मात्र 400 ने ही रजिस्ट्रेशन कराया है'. रिजवी का कहना है कि 'पंजीयन कराने के बाद मस्जिदों को ऑडिट कराना पड़ता है और 7 फीसदी निगरानी चंदा देना पड़ता है. जिसके कारण कई मस्जिदों का पंजीयन ही नहीं कराया गया है'. इसे लेकर रिजवी ने सरकार से निगरानी चंदा 7 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी करने की मांग की है.