रायपुर : छत्तीसगढ़ में जितने भी सांसद चुनाव जीतकर आए उन्होंने अपने संसदीय पद से इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में ये तो पक्का है कि इनमें से किसी एक की किस्मत खुल सकती है. पत्थलगांव विधानसभा सीट ने पत्थलगांव से विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है. गोमती साव ने पत्थलगांव विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा. जहां से वो चुनाव जीती. गोमती साय के कांग्रेस के दिग्गज नेता रामपुकार सिंह को इस विधानसभा सीट से हराया. आईए आपको बताते हैं कौन हैं गोमती साय ?
गोमती साय का जीवन परिचय : बीजेपी सांसद गोमती साय जशपुर के ग्राम मुंडाडीह की निवासी हैं. गोमती साय कक्षा 12वीं पास हैं. 22 जून 1978 को जन्मी गोमती साल 2005 में पहली बार जिला पंचायत सदस्य बनीं. इसके बाद साल 2010 में जनपद सदस्य और 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं. जशपुर जिले को छोड़ दें तो रायगढ़ संसदीय क्षेत्र के दूसरे हिस्सों में गोमती साय की कोई खास राजनीतिक पहचान नहीं थी.लेकिन सांसद बनने के बाद गोमती काफी सक्रिय रहीं.जिसका नतीजा ये रहा कि मौजूदा विधानसभा चुनाव में पार्टी ने गोमती पर भरोसा जताया.
गोमती साय को कब मिली कौन सी जिम्मेदारी ?
- 2019-2023 रायगढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद
- 2015-2019 जिला पंचायत अध्यक्ष जशपुर
- 2010-2015 जनपद सदस्य फरसाबहार
- 2008-2010 मंडल अध्यक्ष बीजेपी
- 2006-2008 जिला युवा मोर्चा महामंत्री
- 2005- 2010 जिला पंचायत सदस्य
कंवर समाज में अच्छी पकड़ : गोमती साय कंवर समाज से आती हैं. समाज के अंदर उनकी अच्छी पकड़ है.गोमती को केंद्रीय राज्यमंत्री विष्णुदेव साय के साथ-साथ राष्ट्रीय अनुसुचित जनजाति के अध्यक्ष नंदकुमार साय का करीबी माना जाता है.
मंत्री का टिकट काटकर पार्टी ने दिया था मौका : 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो रायगढ़ से पांच बार के सांसद विष्णुदेव साय को इस्पात मंत्री बनाया.लेकिन 2019 के चुनाव में विष्णुदेव साय की टिकट काटकर बीजेपी ने गोमती साय को मौका दिया. गोमती साय 2019 में जशपुर जिला पंचायत अध्यक्ष थीं. उस समय गोमती का सीधा मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी और विधायक लालजीत सिंह राठिया से था. चुनाव में गोमती में लोकसभा चुनाव में लालजीत राठिया को पटखनी दे दी.
गोमती साय के अलावा किनका नाम सीएम की रेस में आगे
- अरुण साव : छत्तीसगढ़ सीएम की रेस में सबसे आगे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव चल रहे हैं. अरुण साव ने सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया है. साव की पहचान आरएसएस और भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में हैं.
- रेणुका सिंह : रेणुका सिंह केंद्रीय मंत्री है. आदिवासी महिला होने के साथ तेज तर्रार नेता होने के कारण बीजेपी ने भरतपुर सोनहत से उन्हें चुनाव में प्रत्याशी बनाया. रामानुजगंज की रहने वाली रेणुका सिंह को भरतुपर सोनहत से प्रत्याशी बनाने के बाद कांग्रेस ने बाहरी होने का जमकर प्रचार किया. बावजूद इसके रेणुका सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी गुलाब कमरो को 5000 से ज्यादा वोटों से हराया.
- लता उसेंडी : बस्तर संभाग में कोंडागांव की पूर्व विधायक और छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार में मंत्री रही लता उसेंडी भाजपा उपाध्यक्ष भी हैं. साफ और शांत छवि की नेता लता उसेंडी महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय हैं. कांग्रेस की लहर के बीच बस्तर संभाग की महिलाओं में बीजेपी का झंडा बुलंद किया. लता उसेंडी ने मोहन मरकाम को 18 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. सीएम रेस में लता उसेंडी का भी नाम है.
- रमन सिंह : छत्तीसगढ़ में 15 साल तक शासन किया. वरिष्ठ और किसी भी मसले को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में रमन सिंह का नाम सबसे आगे हैं. कई नामों के बीच भाजपा आलाकमान रमन सिंह के नाम पर एक बार जरूर मंथन कर सकता है.
- विष्णुदेव साय: छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं. केंद्रीय नेतृत्व में भी इनका नाम रह चुका है. साय को संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है. साल 2006 और साल 2020 में छत्तीसगढ़ भाजपा अध्यक्ष की कमान संभाल चुके हैं. 1999 में 2014 तक लगातार तीन बार रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए. 1990 में तपकरा विधानसभा क्षेत्र से अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक बने.
- ओपी चौधरी : छत्तीसगढ़ में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के बाद सीएम रेस में सबसे पहले पूर्व आईएएस और रायगढ़ से बीजेपी के टिकट पर जीते प्रत्याशी ओपी चौधरी का नाम आया. ओपी चौधरी युवा होने के साथ साथ ओबीसी वर्ग से आते हैं. काफी पढ़े लिखे भी हैं. छत्तीसगढ़ में इस समय ओबीसी फैक्टर जोरों पर है. ऐसे में बीजेपी को ओपी को सीएम बना सकती हैं. हालांकि ओपी ने सीएम पद के लिए खुद को बीजेपी का सबसे छोटा कार्यकर्ता बताया है.