मैं छत्तीसगढ़ हूं, आज मेरा जन्मदिन है और मैं आपको अपनी कहानी बताने जा रहा हूं. एक नवंबर 2000 को मुझे मेरे बड़े भाई मध्यप्रदेश से अलग कर दिया गया. मेरे साथ झारखंड और उत्तराखंड को भी बिहार और उत्तर प्रदेश बंटवारा कर अस्तित्व में लाया गया था. बंटवारे में जहां मुझे खनिज और वन संपदा का तोहफा मिला, वहीं नक्सलवाद का दंश भी मेरे हिस्से में आया.
जिस वक्त मेरा गठन हुआ, उस दौरान मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतत्व में भारतीय कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, बंटवारे के बाद इसी तर्ज पर कांग्रेस पार्टी को मुझपर हुकूमत करने का मौका मिला. उस दौरान IAS अफसर रह चुके कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ आदिवासी नेता अजीत जोगी को पहले मुख्यमंत्री के तौर पर चुना गया. जोगी ने तीन साल तक मुझपर राज किया. 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने 90 में से 50 सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता हासिल की, जो सिलसिला 2018 तक बदस्तूर जारी रहा. 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अप्रत्याशित 68 सीटें कर 15 साल के सत्ता के सूखे को खत्म किया. चुनाव के वक्त सत्ता से संघर्ष करने और पार्टी में नई ऊर्जा देने के साथ ही एकजुट करने में भूपेश बघेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और शायद यही वजह थी कि आलाकमान ने राजतिलक कर उन्हें सत्ता की चाबी सौंपी.
धीरे-धीरे विकास के पथ पर बढ़ता छत्तीसगढ़
मेरे पास प्राकृतिक संसाधन और वन संपदा की कमी न थी और इसी वजह से उस वक्त राजनीतिक और आर्थिक पंडित मुझे लेकर तरह-तरह भविष्यवाणियां कर रहे थे. कोई कह रहा था कि मैं, बेहद ही कम समय में देश के अग्रणी राज्य में गिना जाउंगा, तो किसी ने कहा कि मैं बीमारू प्रदेश बनकर रह जाउंगा. खैर मैं धीरे-धीरे विकास के पथ पर बढ़ता चला गया. कृषि मेरे भू-भाग पर निवास करने वालों की आय का अहम जरिया था और शायद यहीं वजह थी कि, मुझे धान के कटोरे के नाम पर जाना जाता है.
कृषि के क्षेत्र में कैसे रहे 19 साल
मैं मूल रूप से कृषि प्रधान राज्य हूं. इन 19 सालों में मेरे किसानों के हालातों में में अच्छा खासा बदलाव आया. सोयाबीन, गन्ना और धान की पैदावार में बढ़ोतरी और सरकारों की ओर से इसके बदले में दिए जा रहे अच्छे दाम की वजह से अन्नदाता की आर्थिक स्थिति काफी बेहतर होती चली गई. बता दूं कि मुझ पर शासन करने वाली सरकारें समर्थन मूल्य पर सबसे ज्यादा धान की खरीदी करती हैं. धान के अलावा अन्नदाता ने अब दूसरी फसलों की ओर भी रुख किया है और यही वजह है कि, मेरे यहां सोयाबीन और गन्ने का भी रकबा बढ़ा है. सिंचित भूमि के आंकड़े बढ़े हैं, लेकिन अभी भी इस दिशा में काफी काम करने की जरूरत है.
जैसे-जैसे उद्योग बढ़े, वैसे बढ़ा प्रदूषण
पिछले 19 सालों में मैंने औद्योगिक विकास की दिशा में लंबी छलांग लगाई है. रायपुर, भिलाई, कोरबा, रायगढ़ बड़े औद्योगिक केन्द्र को तौर पर पूरे देश में पहचान बना चुके हैं. साथ ही जांजगीर और बिलासपुर जैसे जिले भी इस दिशा में आगे बढ़ चले हैं. यही वजह है कि अब मेरे मुख्य शहरों में बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होने के साथ ही सरकारी खजाने में मां लक्ष्मी की कृपा भी बदस्तूर जारी रही. खासतौर पर स्टील, सीमेंट और पॉवर के क्षेत्र में मैं एक हब के तौर उभरकर सामने आया, इस विकास यात्रा के दौरान जहां कई बड़े फायदे रहे तो वहीं एक सबसे बड़ा नुकसान यह रहा कि मेरे प्रमुख शहरों में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता चला गया.
आधारभूत संरचनाओं में बढ़ता प्रदेश
पिछले 19 साल के दौरान मुझपर शासन करने वाली सरकारों ने मेरे अंदर सड़कों का जाल बुन डाला. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना हो या मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना स्टेट और नेशनल हाइवे का काफी विस्तार देखने को मिला. इसके अलावा राज्य में इन साल के दौरान कई बड़े पुल का भी निर्माण भी किया गया. स्कूल, कॉलेज की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हुआ. राज्य बनने के समय जहां 1 मेडिकल कॉलेज था, वहां आज इसकी संख्या बढ़कर 8 हो गई है. इसी तरह इंजीनियरिंग और एग्रीकल्चर कॉलेज, IIM, IIT जैसे संस्थान भी खुले और मेडिकल फैसलिटी में इजाफा भी हुआ, तो आज भी ऐसे कई इलाके बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के महरूम हैं, यकीन मानिए इन इलाकों का यह हाल मुझे बड़ी तकलीफ देता है. इन सालों में छत्तीसगढ़ ने आंखफोड़वा, गर्भाशय और नसबंदी जैसे बड़े कांड भी देखे, जो राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बदनुमा दाग हैं.
इन क्षेत्रों में अभी लंबा सफर तय करना बाकी
ये सब होने के बाद भी 19 साल में कई नक्सली घटनाओं ने मेरा कलेजा छलनी किया. इन 19 सालों में प्रदेश ने कई बड़े नक्सली हमले देखे हैं. जैसे- एर्राबोर और रानीबोदली के राहत शिविर पर हमला. ताड़मेटला का हमला, जिसमें एक साथ 76 जवान शहीद हो गए थे. झीरम घाटी का हमला जिसमें कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई. 9 अप्रैल 2019 को लोकसभा चुनाव के पहले चरण के प्रचार के आखिरी दिन दंतेवाड़ा के नकुलनार में नक्सलियों ने बीजेपी विधायक भीमा मंडावी की गाड़ी को IED ब्लास्ट से उड़ा दिया था. इस घटना में मंडावी और उनके साथ गाड़ी में मौजूद सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई थी. इस दौरान बस्तर ने सलवा जुडूम आंदोलन भी देखा जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बंद किया गया. इस तरह ये राज्य नक्सलियों से लंबी जंग लड़ता आ रहा है.
हाथियों की समस्या
पिछले कुछ सालों में हाथियों का आतंक काफी बढ़ा है. इसके चलते कई ग्रामीणों की मौत हुई है. बेशकीमती फसल को हर साल हाथी नुकसान पहुंचाते हैं. सरकार के पास फिलहाल इस समस्या का कोई स्थायी हल नहीं दिख रहा है. खासतौर पर प्रदेश का उत्तरी इलाका सरगुजा कोरबा इससे ज्यादा प्रभावित है. जानकार इस समस्या के पीछे जंगलों में शुरू हुई माइनिंग को मानते हैं. छत्तीसगढ़ के साथ ही ओडिशा और झारखंड में बढ़ रहे खनन क्षेत्र के चलते भी गजराज मानव बस्ती की ओर पलायन करने पर मजबूर हुए हैं. 19 साल के सफर में मेरी कई उपलब्धियां रहीं, तो कुछ क्षेत्रों में मैं पिछड़ता चला गया.