ETV Bharat / state

खुद के अहंकार को मारने का दर्शन है लोकपर्व 'छेरछेरा'

पौष महीने की पूर्णिमा को छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बच्चे और बड़े घर-घर जाकर अन्न की भिक्षा मांगते हैं.

cher chera the folk festival of chhattisgarh
लोकपर्व छेर छेरा
author img

By

Published : Jan 10, 2020, 7:28 AM IST

Updated : Jan 10, 2020, 8:09 AM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ में पौष महीने की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बच्चे और बड़े घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हैं. वैसे तो आमतौर पर भीख मांगना समाज में अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन साल में इस खास दिन भिक्षा मांगने की परंपरा रही है. इस लोकपर्व के माध्यम से आप छत्तीसगढ़ की परंपराओं की गहराई का अंदाजा लगा सकते हैं.

धान मांगने की परंपरा

जानकार मानते हैं कि 'हमारे पूर्वजों ने खुद के अहंकार को मारने के लिए इस लोकपर्व की शुरुआत की थी'. माना जाता है कि देने वाला मांगने वाले से बड़ा होता है तभी तो इस दिन अपने आसपास के गली मोहल्लों में धान मांगकर हम अपने अहंकार को मार सकते हैं.

ग्रामीण इलाकों में छेरछेरा से मिले अनाज और राशि से गांव में छोटे मोटे सार्वजनिक काम किए जाते है या सार्वजनिक उत्सव ही मना लिया जाता है. पौष पूर्णिमा की सुबह आप ग्रामीण इलाकों में बाल टोलियों को ये कहते हुए सुन सकते हैं.

cher chera the folk festival of chhattisgarh
लोकपर्व छेरछेरा

'छेर छेरा.. माई कोठी के धान ल हेर हेरा…'

कई गांवों में मान्यता है कि छेरछेरा पुन्नी के मौके पर धान दान देना शुभ होता है. दान देने वाले किसान की कोठी हमेशा भरी रहती है.

पढ़ें :'पहले खुद हिंदी से प्रेम करना सीखिए, तभी विश्व हिंदी दिवस होगा सार्थक'

इस लोकपर्व से जुड़ी हुई एक और कथा

इस पर्व के साथ एक कथा ये भी जुड़ी हुई है कि जिसे कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय ने मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्धकला की शिक्षा ली थी. कल्याण साय लगभग आठ साल तक राज्य से दूर रहे.

शिक्षा लेने के बाद जब वे रतनपुर आए तो लोगों ने उनका स्वागत किया. राजा की गैर मौजूदगी में उनकी पत्नी रानी फुलकैना ने आठ साल तक राजकाज संभाला था. इतने समय बाद अपने पति को पाकर रानी ने दोनों हाथों से सोने-चांदी के सिक्के प्रजा में लुटाए. इसके बाद राजा कल्याण साय ने उपस्थित राजाओं को निर्देश दिए कि आज के दिन को हमेशा त्योहार के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन किसी के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाएगा.

पढ़ें :छत्तीसगढ़ में टैक्स फ्री हुई फिल्म 'छपाक'

लोकपर्व को छत्तीसगढ़ ने संजो कर रखा

छेर छेरा त्योहार के साथ और भी जन कथाएं जुड़ी है. लेकिन सभी कथाओं का अंत दान की परंपरा के निर्रवहन पर जोर देता है. यही तो खुबसूरती है इस लोकपर्व की जिसे छत्तीसगढ़ के लोगों ने संजो कर रखा है.

रायपुर : छत्तीसगढ़ में पौष महीने की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बच्चे और बड़े घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हैं. वैसे तो आमतौर पर भीख मांगना समाज में अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन साल में इस खास दिन भिक्षा मांगने की परंपरा रही है. इस लोकपर्व के माध्यम से आप छत्तीसगढ़ की परंपराओं की गहराई का अंदाजा लगा सकते हैं.

धान मांगने की परंपरा

जानकार मानते हैं कि 'हमारे पूर्वजों ने खुद के अहंकार को मारने के लिए इस लोकपर्व की शुरुआत की थी'. माना जाता है कि देने वाला मांगने वाले से बड़ा होता है तभी तो इस दिन अपने आसपास के गली मोहल्लों में धान मांगकर हम अपने अहंकार को मार सकते हैं.

ग्रामीण इलाकों में छेरछेरा से मिले अनाज और राशि से गांव में छोटे मोटे सार्वजनिक काम किए जाते है या सार्वजनिक उत्सव ही मना लिया जाता है. पौष पूर्णिमा की सुबह आप ग्रामीण इलाकों में बाल टोलियों को ये कहते हुए सुन सकते हैं.

cher chera the folk festival of chhattisgarh
लोकपर्व छेरछेरा

'छेर छेरा.. माई कोठी के धान ल हेर हेरा…'

कई गांवों में मान्यता है कि छेरछेरा पुन्नी के मौके पर धान दान देना शुभ होता है. दान देने वाले किसान की कोठी हमेशा भरी रहती है.

पढ़ें :'पहले खुद हिंदी से प्रेम करना सीखिए, तभी विश्व हिंदी दिवस होगा सार्थक'

इस लोकपर्व से जुड़ी हुई एक और कथा

इस पर्व के साथ एक कथा ये भी जुड़ी हुई है कि जिसे कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय ने मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्धकला की शिक्षा ली थी. कल्याण साय लगभग आठ साल तक राज्य से दूर रहे.

शिक्षा लेने के बाद जब वे रतनपुर आए तो लोगों ने उनका स्वागत किया. राजा की गैर मौजूदगी में उनकी पत्नी रानी फुलकैना ने आठ साल तक राजकाज संभाला था. इतने समय बाद अपने पति को पाकर रानी ने दोनों हाथों से सोने-चांदी के सिक्के प्रजा में लुटाए. इसके बाद राजा कल्याण साय ने उपस्थित राजाओं को निर्देश दिए कि आज के दिन को हमेशा त्योहार के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन किसी के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाएगा.

पढ़ें :छत्तीसगढ़ में टैक्स फ्री हुई फिल्म 'छपाक'

लोकपर्व को छत्तीसगढ़ ने संजो कर रखा

छेर छेरा त्योहार के साथ और भी जन कथाएं जुड़ी है. लेकिन सभी कथाओं का अंत दान की परंपरा के निर्रवहन पर जोर देता है. यही तो खुबसूरती है इस लोकपर्व की जिसे छत्तीसगढ़ के लोगों ने संजो कर रखा है.

Intro:छत्तीसगढ़ में पौष महीने के पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है… इस दिन बच्चे और बड़े घर घर जाकर भिक्षा मांगते हैं… वैसे तो आमतौर पर भीख मांगना समाज में अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन साल में इस खास दिन भिक्षा मांगने की परंपरा रही है… इस लोकपर्व के माध्यम से आप छत्तीसगढ़ की परंपराओं की गहराई का अंदाजा लगा सकते हैं…. जानकार मानते हैं कि हमारे पूर्वजों ने खुद के अहंकार को मारने के लिए इसकी शुरुआत की थी… माना जाता है कि देने वाला बड़ा होता है… तभी तो इस दिन अपने आसपास के गली मोहल्लों में धान मांगकर हम अपने अहंकार को मार सकते हैं…. Body:ग्रामीण इलाकों में छेरछेरा से मिले अनाज और राशि से गांव में छोटे मोटे सार्वजनिक काम किए जाते थे… या सार्वजनिक उत्सव ही मना लिया जाता है…। पौष पूर्णिमा की सुबह आप ग्रामीण इलाको में बाल टोलियों को ये कहते हुए सन सकते हैं….. छेर छेरा माई कोठी के धान ल हेरा… कई गांवों में मत है कि छेरछेरा पुन्नी के मौके पर धान दान देना शुभ होता है… दान देने वाले किसान की कोठी हमेशा भरी रहती है…।
वैसे इस पर्व के साथ एक कथा भी जुड़ी है जिसे संक्षेप में आपको बताते हैं… बताया जाता है कि कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय ने मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्धकला की शिक्षा ली थी।
कल्याण साय लगभग आठ साल तक राज्य से दूर रहे। शिक्षा लेने के बाद जब वे रतनपुर आए तो लोगों ने उनका स्वागत किया राजा की गैर मौजूदगी में उनकी पत्नी रानी फुलकैना ने आठ साल तक राजकाज सम्भाला था, इतने समय बाद अपने पति को पाकर रानी ने दोनों हाथों से सोने-चांदी के सिक्के प्रजा में लुटाए। इसके बाद राजा कल्याण साय ने उपस्थित राजाओं को निर्देश दिए कि आज के दिन को हमेशा त्योहार के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन किसी के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाएगा।
Conclusion:इस तरह इस त्योहार के साथ ये जन कथा भी जुड़ी है… जो भी तीज त्योहार की इस धरती का ये पर्व भी आपसी भाईचारे का संदेश लेकर आता है….।
Last Updated : Jan 10, 2020, 8:09 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.