रायपुर :आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल की एकादशी तक चातुर्मास का प्रभाव रहता है. इस समय श्री हरि विष्णु की आराधना, शिवजी की पूजा, भगवान गणेश जी की आराधना और माता दुर्गा की पूजा उपासना या और यज्ञ हवन किया जाता है. चातुर्मास भक्ति भावना, श्रद्धा कथा, श्रवण वेदों के पा,ठ उपनिषद और पुराण के पाठ के लिए जानी जाती है.
चातुर्मास में कैसा करें भोजन : पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "इस संपूर्ण चातुर्मास की अवधि में भोजन संतुलित रूप से लेना चाहिए. दिनचर्या संयमित रहनी चाहिए. संपूर्ण चातुर्मास की अवधि में सूर्य नमस्कार, चंद्र नमस्कार से शरीर को सिद्ध किया जाता है. इसके साथ ही इस चातुर्मास की अवधि में अनुलोम विलोम ,प्रणव प्राणायाम, ओमकार प्राणायाम, उदगीत प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम करना सर्वोत्तम माना गया है. इसी चातुर्मास की अवधि में पंढरपुर यात्रा होती है. देवोत्थान एकादशी के समय ही विट्ठल महाराज की संपूर्ण श्रद्धा और आस्था से पूजा की जाती है."
विष्णु को समर्पित है चातुर्मास : यह संपूर्ण मास श्री हरि विष्णु को विशिष्ट प्रिय माना गया है. इस अवधि में लक्ष्मी नारायण भगवान, शिव सागर में योग निद्रा में रहते हैं. विष्णु जी के समस्त साधकों को योगनिद्रा का अभ्यास इस अवधि में करना चाहिए. इस संपूर्ण अवधि को चातुर्मास काल भी कहा जाता है. इस समय विवाह जैसे कार्य वर्जित माने जाते हैं. इसके साथ ही इस पूरी अवधि में सावन, भादो, अश्विन और कार्तिक आदि मास मनाए जाते हैं. सर्वप्रथम श्रावण मास मनाया जाता है. जिसमें भगवान भोलेनाथ अनादि शंकर की पूजा पूरे उत्साह से की जाती है. सावन की अवधि में ज्योतिर्लिंग का दर्शन, पशुपतिनाथ का दर्शन एवं कैलाशपति जाना शुभ माना जाता है. इस वर्ष सावन 2 महीने का होगा. प्रथम श्रावण मास और द्वितीय श्रावण मास कुल मिलाकर 8 सावन सोमवार के व्रत इस वर्ष मनाए जाएंगे."
ज्ञात, अज्ञात सभी पितरों का करें तर्पण : इस समय ज्ञात,अज्ञात समस्त पितरों का तर्पण किया जाता है. यहां पितरों को स्मरण करने का महापर्व रहता है. चातुर्मास की अवधि में ही मां दुर्गा घट स्थापना के साथ अपने वाहन में आकर 9 दिनों के लिए विराजती हैं. यह चातुर्मास भक्ति भावना, पूजा-पाठ, यज्ञ हवन, अभिषेक के लिए शुभ मानी जाती है. इस संपूर्ण अवधि में सात्विक होकर तीर्थों का दर्शन करना चाहिए. ज्योतिर्लिंगों के दर्शन हेतु सावन का शुभ महीना परम शुभ माना जाता है. चातुर्मास काल में ही कर्म योगी किसान अन्न का उत्पादन करता है.