रायपुर: माता औषधियों के रूप में भक्तों को आत्मिक और शारीरिक बल प्रदान करती हैं. आइए जानते हैं, ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा से कि कौन कौन सी औषधि में माता का वास होता है.
मां शैलपुत्री: हरड़ औषधि आयुर्वेद में प्रधान औषधि मानी जाती है. यह वात, पित्त, कफ आदि को नियंत्रित करती हैं. यह हेमवती कहलाती हैं. माता शैलपुत्री जो हिमालय राज्य की सुकन्या है. उनका स्वरूप हरड़ में मिलता है. हरड़ एक बहुमूल्य औषधि है, जो शरीर के सभी अंगों के लिए संतुलित रूप में उपयोगी हैं. संपूर्ण शरीर हरड़ से बलयुक्त और रोग मुक्त होता है.
मां ब्रह्मचारिणी: ब्राह्मी औषधि में ब्रह्मचारिणी माता का रूप मिलता है. ब्राम्ही बुद्धिमता मेधा प्रदान करता है. इन्हें सरस्वती भी कहा जाता है. याददाश्त स्मृति आदि बढ़ाने में ब्राह्मी का उपयोग किया जाता है. ब्राह्मी अनेक औषधीय गुणों से युक्त औषधि है. आयुर्वेद में इनका विशेष महत्व बताया गया है.
चंद्रघंटा: चंदूसुर औषधि में नवदुर्गा का चंद्रघंटा स्वरूप मिलता है. यह धनिया की तरह दिखता है, जो आंख, चर्म रोग और वात आदि में यह लाभदायक है. दस्त में भी इसका उपयोग किया जाता है.
कुष्मांडा: देवी का स्वरूप पेठे में देखने को मिलता है. पेठा रखिए से निर्मित होता है और रखिया आयुर्वेद की दृष्टि से बहुत ही बहुमूल्य और उत्तम कोटि का फल है. रखिए के माध्यम से शरीर पुष्ट होता है. नवरात्रि में इसका जूस पीना हितकारी माना गया है. पेठे का उपयोग प्रसाद के रूप में मिष्ठान की तरह किया जाता है. पेठे का भोग माता कुष्मांडा को लगाते हैं. पूजा में इनका उपयोग मनोरथ पूर्ण करते हैं.
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स्कंद माता: अलसी में स्कंदमाता का स्वरूप देखने को मिलता है. अलसी एक बहु उपयोगी, स्वास्थ्य के लिए हितकर और शरीर के लिए लाभकारी पदार्थ है. पंचमी के दिन अलसी का उपयोग करना चाहिए. यह शरीर के लिए लाभदायक होता है. अलसी शरीर को दुरुस्त रखता है. अलसी का नियमित सेवन करने पर विभिन्न तरह की बीमारियों में लाभ मिलता है. इसमें ओमेगा 7 जैसे पदार्थ पाए जाते हैं.
मां कात्यायनी: देवी का स्वरूप मोइया पत्ते में मिलता है. मोइया एक बहुमूल्य और बहुगुणों से संपन्न औषधि है. वात, पित्त और कफ के रोगों से निपटने में यह लाभदायक होता है.
माता कालरात्रि: देवी कालरात्रि का स्वरूप नागदौन औषधि में मिलता है. यह महिलाओं से संबंधित बीमारियों में लाभदायक है. बवासीर, सूजन, कैंसर आदि में भी इसका उपयोग होता है. माता कालरात्रि की सातवें दिन पूजा की जाती है. इस पूजन में नागदौन को भी रखा जाता है.
माता महागौरी: महागौरी का रूप तुलसी पत्र में देखने को मिलता है. तुलसी अनेक औषधिय गुणों से युक्त पत्र है. तुलसी का पौधा समस्त वास्तु विकारों को दूर करता है. तुलसी से समस्त वास्तु के दोष, विघ्न और बाधाएं समाप्त होती है. साथ ही तुलसी की सुगंधित हवा प्राणियों को अपूर्व बल प्रदान करती है. तुलसी में मेधा और स्मृति बढ़ाने के अनेक तत्व पाए जाते हैं. यह चयापचय, शुगर आदि में लाभदायक है.
सिद्धिदात्री: शतावरी औषधि में सिद्धिदात्री माता का स्वरूप देखने को मिलता है. शतावरी महिलाओं के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि मानी जाती है. यह महिलाओं का बल है. यह महिलाओं को ऊर्जा, शक्ति, तेज और आयु प्रदान करती है. यह प्रजनन क्षमता, जनन अंगों के लिए बहुत लाभदायक है. महिलाओं को इससे सभी तरह के लाभ मिलते हैं. महिला संबंधित बीमारियों में शतावरी का व्यापक उपयोग होता है. शतावरी महिलाओं की सबसे श्रेष्ठ मित्र मानी गई है. नवमी का दिन वैसे भी कुंवारी कन्याओं और महिलाओं का ही माना जाता है.