ETV Bharat / state

SPECIAL: छत्तीसगढ़ में सरकारी और निजी अस्पतालों में बढ़ा सिजेरियन डिलीवरी का ट्रेंड

author img

By

Published : Feb 17, 2021, 4:49 PM IST

पिछले कुछ सालों में भारत में सिजेरियन डिलीवरी के केस में खासी बढ़ोतरी हुई है. छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां सरकारी अस्पतालों के मुकाबले निजी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी की संख्या में इजाफा हुआ है. सरकारी अस्पतालों में भी सिजेरियन डिलीवरी का ट्रेंड बढ़ा है. लेकिन उतना नहीं बढ़ा जितना निजी अस्पतालों में यह देखने को मिलता है.

cesarean-delivery
सिजेरियन डिलीवरी

रायपुर: पिछले कुछ सालों में भारत में सिजेरियन डिलीवरी के केस में खासी बढ़ोतरी हुई है. छत्तीसगढ़ में भी सिजेरियन डिलीवरी का ट्रेंड अस्पतालों में ज्यादा तेजी से बढ़ा है, लेकिन सरकारी की तुलना में प्राइवेट अस्पतालों में ये केस ज्यादा बढ़े हैं. शासकीय और निजी अस्पतालों में सिजेरियन प्रसव के आंकड़े में बड़ा अंतर है.सरकारी अस्पतालों में पहले के मुकाबले सिजेरियन डिलीवरी के केस ज्यादा आए हैं. लेकिन सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी ज्यादा हुई हैं.

छत्तीसगढ़ में सरकारी और निजी अस्पतालों में बढ़ा सिजेरियन डिलीवरी का ट्रेंड

डॉक्टर निजी अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी के बढ़ते मामलों के कई और कारण गिना रहे हैं. जिसमें उनका कहना है कि सरकारी अस्पतालों में ज्यादा भीड़ होने की वजह से लोग सिजेरियन डिलीवरी के लिए निजी अस्पताल में आते हैं. दूसरा सरकारी अस्पताल में भीड़ ज्यादा होने की वजह से प्रसूता को ज्यादा अंटेशन नहीं मिल पता. इस लिहाज से भी प्रसूता और मरीज निजी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं.

अंबेडकर अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की चिकित्सा विशेषज्ञ डॉक्टर ज्योति जायसवाल ने बताया कि डॉक्टरों के पास एक क्लीयर कट गाइडलाइन है कि किन केस में सिजेरियन ऑपरेशन किया जाना है और किन केसेज में नॉर्मल डिलीवरी के लिए प्रोसीड कर सकते हैं. जैसे यह कहा जाता है कि हॉस्पिटल में सिजेरियन डिलीवरी ज्यादा हो रही है, तो यह डिपेंड करता है कि कौन से हॉस्पिटल को आप देख रहे हैं. अगर आप टर्जरी केयर सेंटर में जाकर देखेंगे, तो उसमें ज्यादातर केसेज सिजेरियन के मिलेंगे, क्योंकि वह टर्जरी केयर सेंटर है और वहां रेफर केसेज ही ज्यादा आते हैं.

सेफ माना जाता है सिजेरियन ऑपरेशन

डॉक्टरों के मुताबिक सब चीज ठीक चल रही है, तो पेशेंट नॉर्मल डिलीवरी के लिए जाएगी. लेकिन अगर किसी तरह का रिस्क महिला को या बेबी को हो, तो उस सिचुएशन में सिजेरियन रेफर किया जाता है, क्योंकि अब यह काफी सेफ है. अगर सब कुछ सही चल रहा हो, तो डॉक्टर पेशेंट से भी पूछता है कि उन्हें नॉर्मल डिलीवरी चाहिए या सिजेरियन और पेशंट के मुताबिक डॉक्टर आगे का प्रोसेस करता है. सरकारी अस्पताल में भी सिजेरियन केस में प्रति वर्ष करीब 1 हजार केसों का इजाफा हुआ है. इस बात की तस्दीक ये आंकड़े कर रहे हैं.

राज्य के हॉस्पिटलों में सिजेरियन प्रसव की संख्या

वर्षसरकारी अस्पतालनिजी अस्पताल
2017-18 19,374 55,912
2018-19 20,179 55,222
2019-20 21,597 51,288
2020 (मार्च से जून) 5,899 9633

हर समय नॉर्मल डिलीवरी संभव नहीं

डॉक्टर ने कहा कि कुछ पर्टिकुलर रीजन होते हैं, जहां नॉर्मल डिलीवरी संभव ही नहीं है. उस स्थिति में सिजेरियन डिलीवरी होती है. सिजेरियन डिलीवरी करना है या नॉर्मल डिलीवरी करना है, यह डॉक्टर तय करता है, क्योंकि उस समय कई कॉम्प्लिकेशंस होते हैं, जिसके आधार पर ही डॉक्टर को फैसला लेना पड़ता है कि उन्हें नॉर्मल डिलीवरी करनी है या सिजेरियन.

डॉक्टर सिजेरियन डिलीवरी की तरफ क्यों जाते हैं.

  • प्रसव के दौरान मां को जितनी ताकत लगानी चाहिए, उतनी नहीं लगा पाती, इस वजह से डॉक्टर ज्यादातर सिजेरियन प्रसव की तरफ जाते हैं.
  • मान लीजिए डिलीवरी प्रोसेस नॉर्मल चल रहा है और बच्चे की धड़कन में कुछ समस्या होने लगती है, बच्चे को जल्दी बाहर निकालने की जरूरत है, लेकिन लेबर का पीरियड अभी लंबा है, यह काफी कॉमन इंडिकेशन है, जिसमें डॉक्टर सिजेरियन के लिए जाते हैं.
  • नॉर्मल डिलीवरी सेफ तो है लेकिन थोड़ा रिस्की भी है. इस वजह से कई पेरेंट्स चाहते हैं कि मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हो. इस वजह से डॉक्टर सिजेरियन प्रिफर करते हैं.
  • सोनोग्राफी में डॉक्टर जान लेते हैं कि बच्चे के जन्म के समय कोई कॉम्प्लिकेशंस है या नहीं. जिसके बाद वह फैसला लेते हैं कि बच्चे की डिलीवरी नॉर्मल हो या सिजेरियन.

सरकारी अस्पतालों में घटी सिजेरियन डिलीवरी

अक्सर यह सवाल उठते हैं कि सिजेरियन डिलीवरी से डॉक्टरों को ज्यादा फायदा होता है, इस पर एक्सपर्ट ने बताया कि जहां तक उनका अपना एक्सपीरियंस है, नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी में पैसे का डिफरेंस ज्यादा नहीं रहता है. अगर किसी महिला का पहला बेबी सिजेरियन से हुआ है, तो दूसरे बेबी के वक्त उसे कई तरह की समस्या होती है. महिला और बेबी की सेफ्टी एक बड़ा कंसर्न होता है. सिचुएशन को देखते हुए डॉक्टर फैसला लेते हैं कि नॉर्मल डिलीवरी की जाए या नहीं. पहले बेबी के समय सिजेरियन होने पर दूसरा बेबी भी सामान्यतः ऑपरेशन से ही होता है.

पेशेंट की परमिशन बेहद जरूरी

आम महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी को लेकर मिली-जुली राय रही. कुछ महिलाओं ने बताया कि उनके बच्चे का जन्म सिजेरियन से हुआ है. कुछ महिलाओं ने बताया कि उनके बच्चे का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से हुआ है. लेकिन दोनों ही सिचुएशन में डॉक्टर ने पहले महिला से डिलीवरी के समय यह पूछा कि वह बच्चा किस तरह जन्म देना चाहती है नॉर्मल या सिजेरियन. जिसके बाद महिला के जवाब देने पर डॉक्टर्स आगे का प्रोसेस करते हैं.

रायपुर: पिछले कुछ सालों में भारत में सिजेरियन डिलीवरी के केस में खासी बढ़ोतरी हुई है. छत्तीसगढ़ में भी सिजेरियन डिलीवरी का ट्रेंड अस्पतालों में ज्यादा तेजी से बढ़ा है, लेकिन सरकारी की तुलना में प्राइवेट अस्पतालों में ये केस ज्यादा बढ़े हैं. शासकीय और निजी अस्पतालों में सिजेरियन प्रसव के आंकड़े में बड़ा अंतर है.सरकारी अस्पतालों में पहले के मुकाबले सिजेरियन डिलीवरी के केस ज्यादा आए हैं. लेकिन सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी ज्यादा हुई हैं.

छत्तीसगढ़ में सरकारी और निजी अस्पतालों में बढ़ा सिजेरियन डिलीवरी का ट्रेंड

डॉक्टर निजी अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी के बढ़ते मामलों के कई और कारण गिना रहे हैं. जिसमें उनका कहना है कि सरकारी अस्पतालों में ज्यादा भीड़ होने की वजह से लोग सिजेरियन डिलीवरी के लिए निजी अस्पताल में आते हैं. दूसरा सरकारी अस्पताल में भीड़ ज्यादा होने की वजह से प्रसूता को ज्यादा अंटेशन नहीं मिल पता. इस लिहाज से भी प्रसूता और मरीज निजी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं.

अंबेडकर अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की चिकित्सा विशेषज्ञ डॉक्टर ज्योति जायसवाल ने बताया कि डॉक्टरों के पास एक क्लीयर कट गाइडलाइन है कि किन केस में सिजेरियन ऑपरेशन किया जाना है और किन केसेज में नॉर्मल डिलीवरी के लिए प्रोसीड कर सकते हैं. जैसे यह कहा जाता है कि हॉस्पिटल में सिजेरियन डिलीवरी ज्यादा हो रही है, तो यह डिपेंड करता है कि कौन से हॉस्पिटल को आप देख रहे हैं. अगर आप टर्जरी केयर सेंटर में जाकर देखेंगे, तो उसमें ज्यादातर केसेज सिजेरियन के मिलेंगे, क्योंकि वह टर्जरी केयर सेंटर है और वहां रेफर केसेज ही ज्यादा आते हैं.

सेफ माना जाता है सिजेरियन ऑपरेशन

डॉक्टरों के मुताबिक सब चीज ठीक चल रही है, तो पेशेंट नॉर्मल डिलीवरी के लिए जाएगी. लेकिन अगर किसी तरह का रिस्क महिला को या बेबी को हो, तो उस सिचुएशन में सिजेरियन रेफर किया जाता है, क्योंकि अब यह काफी सेफ है. अगर सब कुछ सही चल रहा हो, तो डॉक्टर पेशेंट से भी पूछता है कि उन्हें नॉर्मल डिलीवरी चाहिए या सिजेरियन और पेशंट के मुताबिक डॉक्टर आगे का प्रोसेस करता है. सरकारी अस्पताल में भी सिजेरियन केस में प्रति वर्ष करीब 1 हजार केसों का इजाफा हुआ है. इस बात की तस्दीक ये आंकड़े कर रहे हैं.

राज्य के हॉस्पिटलों में सिजेरियन प्रसव की संख्या

वर्षसरकारी अस्पतालनिजी अस्पताल
2017-18 19,374 55,912
2018-19 20,179 55,222
2019-20 21,597 51,288
2020 (मार्च से जून) 5,899 9633

हर समय नॉर्मल डिलीवरी संभव नहीं

डॉक्टर ने कहा कि कुछ पर्टिकुलर रीजन होते हैं, जहां नॉर्मल डिलीवरी संभव ही नहीं है. उस स्थिति में सिजेरियन डिलीवरी होती है. सिजेरियन डिलीवरी करना है या नॉर्मल डिलीवरी करना है, यह डॉक्टर तय करता है, क्योंकि उस समय कई कॉम्प्लिकेशंस होते हैं, जिसके आधार पर ही डॉक्टर को फैसला लेना पड़ता है कि उन्हें नॉर्मल डिलीवरी करनी है या सिजेरियन.

डॉक्टर सिजेरियन डिलीवरी की तरफ क्यों जाते हैं.

  • प्रसव के दौरान मां को जितनी ताकत लगानी चाहिए, उतनी नहीं लगा पाती, इस वजह से डॉक्टर ज्यादातर सिजेरियन प्रसव की तरफ जाते हैं.
  • मान लीजिए डिलीवरी प्रोसेस नॉर्मल चल रहा है और बच्चे की धड़कन में कुछ समस्या होने लगती है, बच्चे को जल्दी बाहर निकालने की जरूरत है, लेकिन लेबर का पीरियड अभी लंबा है, यह काफी कॉमन इंडिकेशन है, जिसमें डॉक्टर सिजेरियन के लिए जाते हैं.
  • नॉर्मल डिलीवरी सेफ तो है लेकिन थोड़ा रिस्की भी है. इस वजह से कई पेरेंट्स चाहते हैं कि मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हो. इस वजह से डॉक्टर सिजेरियन प्रिफर करते हैं.
  • सोनोग्राफी में डॉक्टर जान लेते हैं कि बच्चे के जन्म के समय कोई कॉम्प्लिकेशंस है या नहीं. जिसके बाद वह फैसला लेते हैं कि बच्चे की डिलीवरी नॉर्मल हो या सिजेरियन.

सरकारी अस्पतालों में घटी सिजेरियन डिलीवरी

अक्सर यह सवाल उठते हैं कि सिजेरियन डिलीवरी से डॉक्टरों को ज्यादा फायदा होता है, इस पर एक्सपर्ट ने बताया कि जहां तक उनका अपना एक्सपीरियंस है, नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी में पैसे का डिफरेंस ज्यादा नहीं रहता है. अगर किसी महिला का पहला बेबी सिजेरियन से हुआ है, तो दूसरे बेबी के वक्त उसे कई तरह की समस्या होती है. महिला और बेबी की सेफ्टी एक बड़ा कंसर्न होता है. सिचुएशन को देखते हुए डॉक्टर फैसला लेते हैं कि नॉर्मल डिलीवरी की जाए या नहीं. पहले बेबी के समय सिजेरियन होने पर दूसरा बेबी भी सामान्यतः ऑपरेशन से ही होता है.

पेशेंट की परमिशन बेहद जरूरी

आम महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी को लेकर मिली-जुली राय रही. कुछ महिलाओं ने बताया कि उनके बच्चे का जन्म सिजेरियन से हुआ है. कुछ महिलाओं ने बताया कि उनके बच्चे का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से हुआ है. लेकिन दोनों ही सिचुएशन में डॉक्टर ने पहले महिला से डिलीवरी के समय यह पूछा कि वह बच्चा किस तरह जन्म देना चाहती है नॉर्मल या सिजेरियन. जिसके बाद महिला के जवाब देने पर डॉक्टर्स आगे का प्रोसेस करते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.