रायपुर : तमिलनाडु के कुन्नूर में वेलिंगटन आर्मी सेंटर में प्रशिक्षण के दौरान एक हेलीकॉप्टर होटल के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया (Army Helicopter Crash). न्यूज एजेंसी Asian News International (ANI) के मुताबिक CDS बिपिन रावत (Chief of Defence Staff Bipin Rawat) और उनकी पत्नी समेत सेना के कुछ उच्च अधिकारी भी उसमें सवार थे. इस दुर्घटना में सीडीएस बिपिन रावत की मौत हो गई. सेना के इस हेलीकॉप्टर में सीडीएस बिपिन रावत और उनकी पत्नी समेत कुल 14 लोग सवार थे.
31 दिसंबर 2019 को संभाली थी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की कमान
सेना में 42 साल अपनी सेवा देने वाले बिपिन रावत की लाइफ काफी दिलचस्प रही है. उन्हें तीनों साझा सेनाओं की कमान यूं ही नहीं मिली थी. साल 2016 में सेना प्रमुख बने जनरल बिपिन रावत ने 31 दिसंबर 2019 को इस पद से रिटायर होकर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (Chief of Defense Staff) की कमान संभाली थी. वो देश के पहले ऐसे इंसान थे, जिन्हें भारतीय CDS अधिकारी बनाया गया था. सीडीएस यानि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अधिकारी होता है, जो थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों के बीच तालमेल का कार्य करता है. साथ ही रक्षा मंत्री और गृहमंत्री का मुख्य सलाहकार भी होता है. सेना में अलग-अलग पदों पर रहते हुए उनके पास युद्ध और सामान्य परिस्थितियों का पर्याप्त अनुभव था.
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सेंट एडवर्ड स्कूल शिमला से हुई थी इनकी शुरुआती पढ़ाई
16 मार्च 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जनरल बिपिन रावत का जन्म हुआ था. इनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सेना में रह चुके थे. वे लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुए थे. बिपिन रावत का बचपन फौजियों के बीच ही बीता, जबकि अपनी शुरुआती पढ़ाई उन्होंने सेंट एडवर्ड स्कूल शिमला से की थी. स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद बिपिन रावत ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून में एडमिशन ले लिया था. यहां उनका परफोर्मेंस देखते हुए पहले सम्मान पत्र SWORD OF HONOUR से सम्मानित किया गया था. फिर उन्होंने अमेरिका में पढ़ाई का मन बनाया. अमेरिका में उन्होंने सर्विस स्टाफ कॉलेज से ग्रेजुएट किया. साथ में उन्होंने हाई कमांड कोर्स भी किया.
सुरक्षा मामलों पर भी लिखते रहे थे, 2011 में सीसीएसयू ने दी थी पीएचडी की उपाधि
बिपिन रावत सुरक्षा मामलों पर भी लगातार लिखते रहे थे. उनके आलेख देश के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए. उन्होंने मिलिट्री मीडिया स्ट्रेटजी स्टडीज में भी रिसर्च पूरा किया था. साल 2011 में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी (Chaudhary Charan Singh University) ने उनको पीएचडी की उपाधि दी थी.
16 दिसंबर 1978 से शुरू हुआ था सैन्य सफर
अमेरिका से लौटने के बाद बिपिन रावत ने आर्मी में शामिल होने का मन बनाया था. 16 दिसंबर 1978 को उन्हें गोरखा 11 राइफल्स की 5वीं बटालियन में शामिल किया गया था. यहीं से उनका सैन्य सफर शुरू हुआ. यहां उन्होंने आर्मी की कार्प्स, जीओसी-सी, साउदर्न कमांड, आईएमए देहरादून, मिलिट्री ऑपरेशन्स डाइरेक्टोरेट में लॉजिस्टिक्स स्टाफ ऑफिसर के पद पर भी काम किया.
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ऊंची चोटियों के युद्ध में हासिल थी महारत
सीडीएस बिपिन रावत को ऊंची चोटियों की लड़ाई में महारत हासिल थी. उन्होंने आतंकवाद और उग्रवादी गतिविधियों से निपटने के लिए कई ऑपरेशन भी चलाए थे. इसी कारण उन्हें काउंटर इंसर्जेंसी (Counter insurgency ) का विशेषज्ञ भी माना जाता था. नॉर्थ-ईस्ट में चीन से सटे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर उन्होंने एक इंफैंट्री बटालियन को कमांड भी किया था. कश्मीर घाटी में वे राष्ट्रीय राइफल्स और इंफैंट्री डिवीजन के कमांडिंग ऑफिसर भी रहे थे.
जवाबी कार्रवाई के एक्सपर्ट थे बिपिन रावत
साल 2016 में उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत के नेतृत्व में 29 सितंबर 2016 को पाकिस्तान के आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी. इस सर्जिकल स्ट्राइक को बिपिन रावत ने ट्रेंड पैरा कमांडों के माध्यम से अंजाम दिया था.
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जानिये सीडीएस रावत के सेवा काल की उपलब्धि
- उरी में ही सेना के कैंप और पुलवामा में सीआरपीएफ पर हुए हमले में कई जवानों के शहीद होने के बाद सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी.
- आर्मी सर्विस के दौरान उन्होंने एलओसी, चीन बॉर्डर और नॉर्थ-ईस्ट में एक लंबा समय गुजारा था.
- बिपिन रावत ने कश्मीर घाटी में पहले नेशनल राइफल्स में ब्रिगिडेयर और बाद में मेजर-जनरल के तौर पर इंफेंट्री डिवीजन की कमान संभाली थी.
- साउथ कमांड की कमान संभालते हुए उन्होंने पाकिस्तान से सटी पश्चिमी सीमा पर मैकेनाइजड-वॉरफेयर के साथ-साथ एयरफोर्स और नेवी के साथ बेहतर तालमेल बिठाया था.
- चाइनीज बॉर्डर पर बिपिन रावत कर्नल के तौर पर इंफेंट्री बटालियन की कमान भी संभाली थी.
- बिपिन रावत को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) में 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' से नवाजा गया था.
- रावत चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष के साथ-साथ भारतीय सेना के 27वें सेनाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था.