रायपुर: छत्तीसगढ़ में भी कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने पिछले 1 महीने से लॉकडाउन लगा हुआ है. इस लॉकडाउन ने हर वर्ग के लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है. बस संचालकों से लेकर बस के ड्राइवर,कंडक्टर, मुंशी और हेल्पर्स की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है. ने जैसे-तैसे अपना परिवार पाल रहे हैं. अब इनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है.
छत्तीसगढ़ में लगभग 15,000 बसें संचालित होती है. इन बसों में काम करने वाले लोगों की संख्या लगभग 52 हजार है. इस 1 महीने के लॉकडाउन के दौरान बस मालिकों को लगभग 100 करोड़ रुपये का नुकसान सहना पड़ा है. बस में काम करने वाले ड्राइवर, कंडक्टर, हेल्पर, मुंशी और क्लीनर को शासन-प्रशासन या फिर बस मालिकों की तरफ से कोई राशि या आर्थिक मदद भी नहीं मिल पाई है. जिसके कारण इन लोगों में आक्रोश भी देखा जा रहा है.
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परिवहन मंत्री से मिला सिर्फ आश्वासन
राजधानी के पंडरी बस स्टैंड स्थित बस कर्मचारी कल्याण समिति के लोगों से जब ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो इन कर्मचारियों का गुस्सा सरकार और बस संचालकों पर फूट पड़ा. कर्मचारियों का कहना है कि सरकार और बस संचालकों की ओर से इन्हें कोई राहत या मदद नहीं मिल रही है. जिसके कारण रोजी-रोटी चलाना भी अब मुश्किल हो गया है. परिवार चलाने के लिए अब इन लोगों को दूसरों से कर्ज लेना पड़ रहा है. परिवहन मंत्री से मिलकर गुजारा भत्ता की मांग की गई थी, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिला.
घर चलाने बेचने पड़ रहे जेवरात
बस कर्मचारी कल्याण समिति का कहना है कि बस मालिक छत्तीसगढ़ के ड्राइवर और कंडक्टर को प्राथमिकता ना देकर दूसरे राज्य के ड्राइवर और कंडक्टर को बुलाकर अपनी बसों का संचालन कर रहे हैं. जिसके कारण छत्तीसगढ़ के ड्राइवर और कंडक्टर की स्थिति पहले से ज्यादा खराब हो गई है. हालात यह हो गए हैं कि परिवार पालने के लिए घर में रखें जेवरात भी बेचने पड़ रहे हैं.
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बस मालिकों को भी नुकसान
लॉकडाउन की वजह से बसों के बंद होने से जहां एक ओर बस कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति खराब हुई है. वहीं दूसरी बस मालिकों की माली हालत भी कुछ ठीक नहीं है. यातायात महासंघ के महासचिव कमल पांदरे का कहना है कि लॉकडाउन में बस खड़ी है, नुकसान हो रहा है. यात्री नहीं मिलने के कारण भी नुकसान बस मालिकों को सहना पड़ रहा है. बस की किस्त भी चुका पाना बस मालिकों के लिए अब असंभव होता जा रहा है.