ETV Bharat / state

बस्तर में किसानों के ठोस आय का साधन बन रही काली मिर्च की खेती

कोंडागांव जिले के जड़कोंगा गांव की राजकुमारी मरकाम समेत कई किसान मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के माध्यम से जैविक खेती की ओर अग्रसर हुए हैं. राजकुमारी ने अपने घर की बाड़ी बाड़ी में लगे साल के पेड़ों पर काली मिर्च के 25 पौधे लगाए, इन पौधों से 20 किलो काली मिर्च की खेती हुई है.

Bastar
काली मिर्च की खेती से बदल रही बस्तर की तकदीर
author img

By

Published : Aug 29, 2021, 11:12 PM IST

Updated : Aug 30, 2021, 7:47 AM IST

रायपुर: बस्तर प्रायः नक्सल और सुरक्षा बलों की मुठभेड़ गोलाबारी और दुखद मौतों के चलते खबरों में आता है. लेकिन हम लगातार इस क्षेत्र में हो रहे सकारात्मक बदलाव की खबरें भी समाज के सामने लाने की कोशिश करते रहे हैं. इसी कड़ी में यहां के आदिवासी ग्रामीणों द्वारा काली मिर्च की खेती और कम पौधों से आच्छा उत्पादन कैसे कर रहे हैं. इसकी जानकारी दे रहे हैं.

छोटे प्रयासों से बदल रही बस्तर की तस्वीर
कोंडागांव जिले के जड़कोंगा गांव की राजकुमारी मरकाम समेत कई किसान मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के माध्यम से जैविक खेती की ओर अग्रसर हुए. राजकुमारी ने अपने घर की बाड़ी में लगे साल के पेड़ों पर काली मिर्च के 25 पौधे लगाए, इन पौधों से उन्हे इस साल 20 किलो काली मिर्च की पैदावार हुई. राजकुमारी ने इस काली मिर्च को 500 रुपए की दर से बेच है. मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग कुमार ने बताया कि स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया के द्वारा तय की गई आज की तारीख पर काली मिर्च का थोक मूल्य 300-350 रुपए किलो दर्शाया गया है. जबकि मा दंतेश्वरी हर्बल समूह की ओर से नवाचारी किसानों को प्रोत्साहन के लिए 500 रुपए प्रति किलो की दर से तत्काल भुगतान करवाया गया.

बस्तर कैसे पहुंची काली मिर्च

गौरतलब है कि अब तक काली मिर्च की खेती भारत में केवल केरल तथा उसके आसपास के इलाके में ही सदियों से हो रही है, इसके अलावा अन्य क्षेत्रों में इसकी खेती अब तक सफल नहीं हो पाई थी. बस्तर में इसे सफल कर दिखाया है पिछले पच्चीस वर्षों से जैविक तथा औषधीय कृषि कार्य में लगी संस्था मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ने सोने पर सुहागा किया है. प्रयोगशाला परीक्षणों से अब यह सिद्ध हो गया है, कि बस्तर की इस काली मिर्च के औषधीय तत्व पिपराइजिन लगभग 16% ज्यादा पाया जा रहा है.

मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के प्रमुख डॉ राजाराम त्रिपाठी ने पिछले बीस वर्षों की कड़ी मेहनत कर काली मिर्च की इस नई प्रजाति एमडीबी16 के विकास के जरिए यह सिद्ध कर दिखाया. केरल ही नहीं बल्कि भारत के शेष भागों में भी उचित देखभाल से इस विशेष प्रजाति की काली मिर्च की सफल और उच्च लाभदायक खेती की जा सकती है. बस्तर में इस तरह के प्रयास और सफलता की कहानी और लोगों को प्रेरित करती है. साथ ही जानकारों का मानना है कि, नक्सल समस्या से तभी उबरा जा सकता है जब आम लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी.

रायपुर: बस्तर प्रायः नक्सल और सुरक्षा बलों की मुठभेड़ गोलाबारी और दुखद मौतों के चलते खबरों में आता है. लेकिन हम लगातार इस क्षेत्र में हो रहे सकारात्मक बदलाव की खबरें भी समाज के सामने लाने की कोशिश करते रहे हैं. इसी कड़ी में यहां के आदिवासी ग्रामीणों द्वारा काली मिर्च की खेती और कम पौधों से आच्छा उत्पादन कैसे कर रहे हैं. इसकी जानकारी दे रहे हैं.

छोटे प्रयासों से बदल रही बस्तर की तस्वीर
कोंडागांव जिले के जड़कोंगा गांव की राजकुमारी मरकाम समेत कई किसान मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के माध्यम से जैविक खेती की ओर अग्रसर हुए. राजकुमारी ने अपने घर की बाड़ी में लगे साल के पेड़ों पर काली मिर्च के 25 पौधे लगाए, इन पौधों से उन्हे इस साल 20 किलो काली मिर्च की पैदावार हुई. राजकुमारी ने इस काली मिर्च को 500 रुपए की दर से बेच है. मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग कुमार ने बताया कि स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया के द्वारा तय की गई आज की तारीख पर काली मिर्च का थोक मूल्य 300-350 रुपए किलो दर्शाया गया है. जबकि मा दंतेश्वरी हर्बल समूह की ओर से नवाचारी किसानों को प्रोत्साहन के लिए 500 रुपए प्रति किलो की दर से तत्काल भुगतान करवाया गया.

बस्तर कैसे पहुंची काली मिर्च

गौरतलब है कि अब तक काली मिर्च की खेती भारत में केवल केरल तथा उसके आसपास के इलाके में ही सदियों से हो रही है, इसके अलावा अन्य क्षेत्रों में इसकी खेती अब तक सफल नहीं हो पाई थी. बस्तर में इसे सफल कर दिखाया है पिछले पच्चीस वर्षों से जैविक तथा औषधीय कृषि कार्य में लगी संस्था मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ने सोने पर सुहागा किया है. प्रयोगशाला परीक्षणों से अब यह सिद्ध हो गया है, कि बस्तर की इस काली मिर्च के औषधीय तत्व पिपराइजिन लगभग 16% ज्यादा पाया जा रहा है.

मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के प्रमुख डॉ राजाराम त्रिपाठी ने पिछले बीस वर्षों की कड़ी मेहनत कर काली मिर्च की इस नई प्रजाति एमडीबी16 के विकास के जरिए यह सिद्ध कर दिखाया. केरल ही नहीं बल्कि भारत के शेष भागों में भी उचित देखभाल से इस विशेष प्रजाति की काली मिर्च की सफल और उच्च लाभदायक खेती की जा सकती है. बस्तर में इस तरह के प्रयास और सफलता की कहानी और लोगों को प्रेरित करती है. साथ ही जानकारों का मानना है कि, नक्सल समस्या से तभी उबरा जा सकता है जब आम लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी.

Last Updated : Aug 30, 2021, 7:47 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.