बिलासपुर : निलंबन के मामले पर सुनवाई (Hearing of suspension case in Bilaspur High Court) करते हुए हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण बात कही है. छोटी सजा में निलंबन अवधि का वेतन भत्ता नहीं दिया जाता है तो वह दोगुनी सजा के रूप में मानी जाएगी. सुनवाई के दौरान निलंबन अवधि का पूरा लाभ दिये जाने के लिए जारी एकल पीठ के आदेश बरकरार रखा गया है.
एनटीपीसी में कार्यरत था मेघराज
याचिकाकर्ता मेघराज एनटीपीसी सीपत में कार्यरत था. उसके खिलाफ दो आरोप के साथ आरोप पत्र जारी किया गया. साथ में विभागीय जांच के लिए आदेश करते हुए निलंबित कर दिया गया. विभागीय जांच के बाद एक आरोप को सिद्ध मानते हुए उसके एक वेतन वृद्धि इंक्रीमेंट को तत्काल प्रभाव से रोकने का आदेश दिया गया. यह आदेश भी दिया गया कि याचिकाकर्ता को जीवनयापन भत्ता के अतिरिक्त वेतन एवं अन्य लाभ की पात्रता नहीं होगी. इसके बाद उसने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी. सुनवाई के बाद जस्टिस संजय अग्रवाल की एकल पीठ ने आदेश किया कि याचिकाकर्ता को छोटी सजा के लायक पाया गया है. स्थायी आदेश की कंडिका 29 के तहत निलंबन अवधि का वेतन और अन्य लाभ से वंचित करने के आदेश गलत हैं. इसलिए याचिकाकर्ता को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ निलंबन अवधि का समस्त लाभ दिया जाए.
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एनटीपीसी सीपत ने लगाई थी रिट याचिका
इस आदेश के खिलाफ एनटीपीसी सीपत ने हाईकोर्ट की डबल बेंच में रिट अपील की. शुरुआती सुनवाई के बाद एकल पीठ के आदेश पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया. याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता ने बताया कि केंद्र सरकार ने एक परिपत्र जारी किया है. अगर आरोप पत्र दीर्घशास्ति के लिए दिये गए और अंत में लघुशास्ति आरोपित की जाए तो कर्मचारी को निलंबन अवधि का पूरा लाभ प्राप्त करने का अधिकार है. सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने याचिका स्वीकार करते हुए निलंबन अवधि का संपूर्ण लाभ देने के लिए जारी हुई एकल पीठ के आदेश को सही माना है.