रायपुर: सावन के पहले शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 1 अगस्त को है. इस दिन लोग सावन पूर्णिमा का व्रत भी रखते हैं. मंगलवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के प्रीति योग विष्कुंभ और बवकरण आनंद योग में ये पूर्णिमा मनाई जाएगी. यह पूर्णिमा व्रत की शुक्ल पूर्णिमा या अधिक मास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर सूर्य नमस्कार के साथ दिन की शुरुआत करनी चाहिए.
ऐसे करें ध्यान: सुबह-सुबह स्नान करने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए. पूर्ण मनोयोग से श्री हरि विष्णु को चित्त में एकाग्र रूप में धारण कर ध्यान करना चाहिए. इस ध्यान से क्षमताएं विकसित होती है. परमात्मा का अनुग्रह प्राप्त होता है. ईश्वर की कृपा मिलती है. कहते हैं कि ईश्वर की छवि को ध्यान में रखकर उनसे कुछ मांगने पर मनोकामना पूरी होती है.
अधिक मास की पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और अच्छे कामों को करने का प्रयोजन होता है. इस दिन दान, धर्म करने से खास लाभ मिलता है. पितरों, पूर्वजों को स्मरण करते हुए दान पुण्य करना चाहिए. साथ ही जरूरतमंदों को दान दें. -पंडित विनीत शर्मा, ज्योतिष एवं वास्तुविद
दूध और गन्ने के रस से करें अभिषेक: यह पूर्णिमा मुख्य रूप से व्रत उपवास और अनुष्ठान की पूर्णिमा मानी जाती है. इस दिन अच्छे काम को शुरू किया जाना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इस दिन से आप कोई भी शुभ काम शुरू कर सकते हैं. इस दिन भगवान भोलेनाथ को पूरी श्रद्धा से स्मरण करना चाहिए. पूर्णिमा के दिन भगवान भोलेनाथ जी का जलाभिषेक करना चाहिए. अगर क्षमता हो तो दूध या फिर गन्ने के रस से भी अभिषेक कर सकते हैं.
ऐसे करें श्रृंगार: इस दिन भगवान भोलेनाथ को अबीर, गुलाल, परिमल, श्वेत चंदन, रक्त चंदन, गोपी चंदन अर्पित करें. शिवजी को धतूरा, बेलपत्र, आंक का फूल बेहद पसंद है. इसे भी अर्पित करें. साथ ही दूब की माला से बाबा का सुंदर श्रृंगार करें. सावन पूर्णिमा के दिन भोलेनाथ जी का श्रृंगार करने के बाद शिवजी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
श्रृंगार का अलग महत्व: इस दिन भोलेनाथ को रुद्राक्ष की माला, सुंदर पुष्पों की माला, श्वेत पुष्पों की माला, नीले पुष्पों की माला अर्पित की जाती है. भगवान भोलेनाथ जी का सुबह और शाम विधिपूर्वक अलग-अलग श्रृंगार कर पूजने से हर मनोकामना पूरी होती है. इस दिन शिव चालीसा, शिव तांडव स्त्रोत, रुद्राष्टकम, लिंगाष्टकम, शिवास्टकम, शिव स्त्रोत, पंचाक्षरी मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र पढ़ने का विधान है.