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Special: लालफीताशाही में उलझा छत्तीसगढ़ के किसानों का सपना

नक्सली आतंक के नाम से प्रसिद्ध अदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर के लोग इन दिनों हर्बल खेती की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें बेहतर बाजार नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों में निराशा है. देखिये विशेष रिपोर्ट...

Bastar farmers not getting market to sell herbal products
लालफीताशाही में उलझ कर रह गया किसानों का सपना
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Published : Sep 10, 2020, 8:11 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में एक तरफ सरकार हर्बल खेती को बढ़ावा देने की बात कहती है तो वहीं दूसरी तरफ इन हर्बल खेती से बने प्रोडक्टस को बाजार देने में पीछे हट रही है. बस्तर के किसान हर्बल खेती की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें बेहतर बाजार नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों में निराशा है.

किसानों को काढ़ा बेचने के लिए नहीं मिल रहा बाजार

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने कोरोना को देखते हुए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काढ़ा बनाने और पीने के संबंध में जरूरी दिशा निर्देश जारी किए थे. ये काढ़ा जिन वस्तुओं को मिलाकर बनाया जाता है. उनकी खेती बस्तर में कई किसान बड़े पैमाने पर कर रहे हैं. इनमें से ज्यादातर किसान मां दंतेश्वरी हर्बल संस्था से जुड़े आदिवासी परिवार के लोग हैं. मां दंतेश्वरी हर्बल संस्था में बड़ी मात्रा में आयुर्वेदिक सामान उपलब्ध है.

अबतक नहीं मिली काढ़ा बनाने की अनुमति

कोरोना काल में काढ़े की मांग को देखते हुए मां दंतेश्वरी हर्बल ने भी छत्तीसगढ़ सरकार के खाद्य और औषधि विभाग को पत्र लिखकर इस तरह के काढ़ा बनाने और उसके व्यापारिक इस्तेमाल के संबंध में अनुमति मांगी थी, लेकिन अप्रैल से शुरू हुई ये प्रक्रिया आजतक पूरी नहीं हो पाई है. किसानों कहना है कि आज कई बड़ी कंपनियां बाहर से आकर प्रदेश में धड़ल्ले से अपना काढ़ा बेच रही है, लेकिन प्रदेश में ही उगाई गई उत्पाद से काढ़ा बनाकर बेचने के इच्छुक एक कृषक संस्था अनुमति की बाट जोह रहा है.

पड़ोसी राज्यों का दरवाजा खटखटाएंगे बस्तर के किसान
बस्तर के इन किसानों का साफ कहना है कि छत्तीसगढ़ में इस कदर अफसरशाही हावी है कि वे इससे तंग आ गए हैं. वे अपनी बात सीधे सरकार तक कैसे पहुंचाए समझ नहीं आ रहा है, ऐसे में उन्होंने अपने उत्पाद के लिए पड़ोसी राज्य ओडिशा से अनुमति लेने के बारे में भी विचार कर रहे हैं. इस बारे में जब प्रशासन का पक्ष जानने की कोशिश की तो कोई जवाब नहीं मिला है.

पढ़ें: रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए RSS के कार्यकर्ता पिला रहे काढ़ा


कितना फायदेमंद है इस तरह का काढ़ा
इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में है, ऐसे में हर व्यक्ति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को लेकर बहुत ज्यादा सजग हो गया है और वो हर उपाय कर रहा है जिससे कि वे और उसका परिवार इस महामारी से बचे रहें. आयुर्वेदिक कॉलेज रायपुर के डॉक्टर भी बताते है कि काढ़ा स्वस्थ्य रहने के लिए बेहद कारगर हैं, साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि कुछ राज्यों ने अपनी परिस्थिति और उपलब्धता के हिसाब से अलग अलग चीजें इसमें जोड़ी जा रही है.

बाजार में बढ़ी काढ़े की मांग

मेडिकल स्टोर में काम करने वाले शुभम निर्मलकर बताते हैं कि बाजार में काढ़े की मांग है. प्रदेश में इस वक्त करीब दर्जन भर कंपनी चूरण, टैबलेट और लिक्विड फार्म में काढ़ा बेच रही है. आज इस तरह के काढ़े देश के कई शहरों में तो चाय दुकानों में भी उपलब्ध है. ऐसे में इस काढ़ा को बनाने के लिए अनुमति मिलने में लेटलतीफी करना किसानों के लिए निराशाभरा साबित हो रहा है.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में एक तरफ सरकार हर्बल खेती को बढ़ावा देने की बात कहती है तो वहीं दूसरी तरफ इन हर्बल खेती से बने प्रोडक्टस को बाजार देने में पीछे हट रही है. बस्तर के किसान हर्बल खेती की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें बेहतर बाजार नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों में निराशा है.

किसानों को काढ़ा बेचने के लिए नहीं मिल रहा बाजार

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने कोरोना को देखते हुए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काढ़ा बनाने और पीने के संबंध में जरूरी दिशा निर्देश जारी किए थे. ये काढ़ा जिन वस्तुओं को मिलाकर बनाया जाता है. उनकी खेती बस्तर में कई किसान बड़े पैमाने पर कर रहे हैं. इनमें से ज्यादातर किसान मां दंतेश्वरी हर्बल संस्था से जुड़े आदिवासी परिवार के लोग हैं. मां दंतेश्वरी हर्बल संस्था में बड़ी मात्रा में आयुर्वेदिक सामान उपलब्ध है.

अबतक नहीं मिली काढ़ा बनाने की अनुमति

कोरोना काल में काढ़े की मांग को देखते हुए मां दंतेश्वरी हर्बल ने भी छत्तीसगढ़ सरकार के खाद्य और औषधि विभाग को पत्र लिखकर इस तरह के काढ़ा बनाने और उसके व्यापारिक इस्तेमाल के संबंध में अनुमति मांगी थी, लेकिन अप्रैल से शुरू हुई ये प्रक्रिया आजतक पूरी नहीं हो पाई है. किसानों कहना है कि आज कई बड़ी कंपनियां बाहर से आकर प्रदेश में धड़ल्ले से अपना काढ़ा बेच रही है, लेकिन प्रदेश में ही उगाई गई उत्पाद से काढ़ा बनाकर बेचने के इच्छुक एक कृषक संस्था अनुमति की बाट जोह रहा है.

पड़ोसी राज्यों का दरवाजा खटखटाएंगे बस्तर के किसान
बस्तर के इन किसानों का साफ कहना है कि छत्तीसगढ़ में इस कदर अफसरशाही हावी है कि वे इससे तंग आ गए हैं. वे अपनी बात सीधे सरकार तक कैसे पहुंचाए समझ नहीं आ रहा है, ऐसे में उन्होंने अपने उत्पाद के लिए पड़ोसी राज्य ओडिशा से अनुमति लेने के बारे में भी विचार कर रहे हैं. इस बारे में जब प्रशासन का पक्ष जानने की कोशिश की तो कोई जवाब नहीं मिला है.

पढ़ें: रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए RSS के कार्यकर्ता पिला रहे काढ़ा


कितना फायदेमंद है इस तरह का काढ़ा
इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में है, ऐसे में हर व्यक्ति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को लेकर बहुत ज्यादा सजग हो गया है और वो हर उपाय कर रहा है जिससे कि वे और उसका परिवार इस महामारी से बचे रहें. आयुर्वेदिक कॉलेज रायपुर के डॉक्टर भी बताते है कि काढ़ा स्वस्थ्य रहने के लिए बेहद कारगर हैं, साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि कुछ राज्यों ने अपनी परिस्थिति और उपलब्धता के हिसाब से अलग अलग चीजें इसमें जोड़ी जा रही है.

बाजार में बढ़ी काढ़े की मांग

मेडिकल स्टोर में काम करने वाले शुभम निर्मलकर बताते हैं कि बाजार में काढ़े की मांग है. प्रदेश में इस वक्त करीब दर्जन भर कंपनी चूरण, टैबलेट और लिक्विड फार्म में काढ़ा बेच रही है. आज इस तरह के काढ़े देश के कई शहरों में तो चाय दुकानों में भी उपलब्ध है. ऐसे में इस काढ़ा को बनाने के लिए अनुमति मिलने में लेटलतीफी करना किसानों के लिए निराशाभरा साबित हो रहा है.

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