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अलविदा 2019: किस पार्टी के लिए लकी और किसके लिए अनलकी रहा ये साल ?

साल 2019 राजनीति के लिए बहुत ही अच्छा रहा. साल 2019 में मुख्यमंत्री बघेल के कई फैसलों ने राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा.

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Published : Dec 30, 2019, 4:49 PM IST

Updated : Dec 31, 2019, 7:43 AM IST

रायपुर: वर्ष 2019 ने छत्तीसगढ़ की सियासी किताब में कई नए पन्ने जोड़े. कोई राजनीति के आसमान पर चमका, तो किसी के सितारे गर्दिश में रहे. छत्तीसगढ़ के लिए आर्थिक, सामाजिक के साथ-साथ साल 2019 राजनीतिक रूप से भी काफी दिलचस्प रहा.

अलविदा 2019

भूपेश बघेल की मजबूत हुई पकड़
2018 में कांग्रेस सरकार की छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राष्ट्रीय स्तरीय नेता बनकर उभरे थे. साल 2019 में मुख्यमंत्री बघेल के कई फैसलों ने राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. इसमें आदिवासियों की जमीन वापसी, दलित-आदिवासी और ओबीसी आरक्षण जैसे फैसले ने सीएम बघेल को सामाजिक रूप से एक अलग पहचान दिलाई. इसके अलावा सरकार द्वारा शुरू की गई योजना नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी योजना की तारीफ भी विश्व स्तर पर हुई.

बीजेपी का नया दांव
2018 के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बीजेपी का लोकसभा में नया फार्मूला भी देशभर में सुर्खियों में रहा. बीजेपी ने कभी चुनाव न हारने वाले रमेश बैस जैसे दिग्गज का भी टिकट काट दिया. जिसका लाभ बीजेपी को मिला और 2018 में मिली करारी शिकस्त के बाद 2019 में 11 में से 9 सीटें जीतकर शानदार वापसी की.

नक्सली हमले में विधायक की हत्या
मई, साल 2013 में झीरम कांड में कांग्रेस के कई दिग्गजों की शहादत के बाद 2019 भी छत्तीसगढ़ की राजनीति के लिए ठीक नहीं रहा. 2013 के बाद 2019 में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के नेता पर हमला किया. इसमें बस्तर से बीजेपी के एकमात्र विधायक को अपनी जान गंवानी पड़ी. उनके साथ 5 जवानों की भी जान गई. नक्सलियों का ये हमला भी देश भर में छाया रहा और कांग्रेस सरकार में बीजेपी विधायक की मौत पर सरकार राष्ट्रीय पटल पर बैकफुट पर नजर आई.

रमेश बैस का राज्यपाल बनना
तीन दशक से छत्तीसगढ़ की राजनीति का बड़ा चेहरा रमेश बैस एक बार फिर सुर्खियों में तब आए, जब केंद्र की बीजेपी सरकार ने उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल नियुक्त किया. इससे पहले टिकट कटने पर भी वे काभी सुर्खियों में रहे थे, लेकिन अचानक राज्यपाल के लिए नियुक्त होने की खबर ने सबको चौंका दिया. बैस के लिए ये दूसरा मौका था, सियासत में वापसी का.

राम भक्त कांग्रेसी सरकार!
आम तौर पर बीजेपी को हिंदू और हिंदुत्व की पार्टी कहा जाता है. जिस तरह अयोध्या में राम मंदिर को लेकर बीजेपी ने देशभर के राम भक्तों का ध्रुवीकरण किया था. अचानक छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ में भगवान राम के पद चिन्हों को चिन्हित कर राम वन गमन सर्किट बनाने का ऐलान कर बीजेपी से प्रदेश में ये मुद्दा छीनने की कोशिश की. राजनीतिक गलियारे में छत्तीसगढ़ सरकार का ये फैसला भी काफी सुर्खियों में रहा.

उप-चुनाव में कांग्रेस की वापसी
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस इसी साल वापसी में भी कामयाब रही. विधानसभा के लिए हुए उप-चुनाव में कांग्रेस न सिर्फ वापसी की, बल्कि बस्तर की एक मात्र सीट पर जीती बीजेपी से उसकी सीट छीनने में भी कामयाब रही. कांग्रेस ने उप-चुनाव में दंतेवाड़ा और चित्रकोट विधानसभा में शानदार वापसी करते हुए बीजेपी को एक बार फिर करारी शिकस्त दी.

नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस का दबदबा
कांग्रेस के लिए लोकसभा में झटके के अलावा राजनीतिक रूप से 2019 काफी बेहतर रहा. विधानसभा उपचुनाव में वापसी के बाद निकाय चुनाव फिर से कांग्रेस ने अपना जलवा दिखाया. प्रदेश की 10 नगर निगम में से कांग्रेस ने 4 में पूर्ण बहुमत से साथ 5 नगर निगम में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

रायपुर: वर्ष 2019 ने छत्तीसगढ़ की सियासी किताब में कई नए पन्ने जोड़े. कोई राजनीति के आसमान पर चमका, तो किसी के सितारे गर्दिश में रहे. छत्तीसगढ़ के लिए आर्थिक, सामाजिक के साथ-साथ साल 2019 राजनीतिक रूप से भी काफी दिलचस्प रहा.

अलविदा 2019

भूपेश बघेल की मजबूत हुई पकड़
2018 में कांग्रेस सरकार की छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राष्ट्रीय स्तरीय नेता बनकर उभरे थे. साल 2019 में मुख्यमंत्री बघेल के कई फैसलों ने राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. इसमें आदिवासियों की जमीन वापसी, दलित-आदिवासी और ओबीसी आरक्षण जैसे फैसले ने सीएम बघेल को सामाजिक रूप से एक अलग पहचान दिलाई. इसके अलावा सरकार द्वारा शुरू की गई योजना नरवा, गरुवा, घुरवा और बाड़ी योजना की तारीफ भी विश्व स्तर पर हुई.

बीजेपी का नया दांव
2018 के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बीजेपी का लोकसभा में नया फार्मूला भी देशभर में सुर्खियों में रहा. बीजेपी ने कभी चुनाव न हारने वाले रमेश बैस जैसे दिग्गज का भी टिकट काट दिया. जिसका लाभ बीजेपी को मिला और 2018 में मिली करारी शिकस्त के बाद 2019 में 11 में से 9 सीटें जीतकर शानदार वापसी की.

नक्सली हमले में विधायक की हत्या
मई, साल 2013 में झीरम कांड में कांग्रेस के कई दिग्गजों की शहादत के बाद 2019 भी छत्तीसगढ़ की राजनीति के लिए ठीक नहीं रहा. 2013 के बाद 2019 में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के नेता पर हमला किया. इसमें बस्तर से बीजेपी के एकमात्र विधायक को अपनी जान गंवानी पड़ी. उनके साथ 5 जवानों की भी जान गई. नक्सलियों का ये हमला भी देश भर में छाया रहा और कांग्रेस सरकार में बीजेपी विधायक की मौत पर सरकार राष्ट्रीय पटल पर बैकफुट पर नजर आई.

रमेश बैस का राज्यपाल बनना
तीन दशक से छत्तीसगढ़ की राजनीति का बड़ा चेहरा रमेश बैस एक बार फिर सुर्खियों में तब आए, जब केंद्र की बीजेपी सरकार ने उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल नियुक्त किया. इससे पहले टिकट कटने पर भी वे काभी सुर्खियों में रहे थे, लेकिन अचानक राज्यपाल के लिए नियुक्त होने की खबर ने सबको चौंका दिया. बैस के लिए ये दूसरा मौका था, सियासत में वापसी का.

राम भक्त कांग्रेसी सरकार!
आम तौर पर बीजेपी को हिंदू और हिंदुत्व की पार्टी कहा जाता है. जिस तरह अयोध्या में राम मंदिर को लेकर बीजेपी ने देशभर के राम भक्तों का ध्रुवीकरण किया था. अचानक छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ में भगवान राम के पद चिन्हों को चिन्हित कर राम वन गमन सर्किट बनाने का ऐलान कर बीजेपी से प्रदेश में ये मुद्दा छीनने की कोशिश की. राजनीतिक गलियारे में छत्तीसगढ़ सरकार का ये फैसला भी काफी सुर्खियों में रहा.

उप-चुनाव में कांग्रेस की वापसी
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस इसी साल वापसी में भी कामयाब रही. विधानसभा के लिए हुए उप-चुनाव में कांग्रेस न सिर्फ वापसी की, बल्कि बस्तर की एक मात्र सीट पर जीती बीजेपी से उसकी सीट छीनने में भी कामयाब रही. कांग्रेस ने उप-चुनाव में दंतेवाड़ा और चित्रकोट विधानसभा में शानदार वापसी करते हुए बीजेपी को एक बार फिर करारी शिकस्त दी.

नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस का दबदबा
कांग्रेस के लिए लोकसभा में झटके के अलावा राजनीतिक रूप से 2019 काफी बेहतर रहा. विधानसभा उपचुनाव में वापसी के बाद निकाय चुनाव फिर से कांग्रेस ने अपना जलवा दिखाया. प्रदेश की 10 नगर निगम में से कांग्रेस ने 4 में पूर्ण बहुमत से साथ 5 नगर निगम में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

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Body:यह केवल बाइट है स्क्रिप्ट अलग भेजी गई है ।

बाइट - अनिल द्विवेदी ( वरिष्ठ पत्रकार )


Conclusion:
Last Updated : Dec 31, 2019, 7:43 AM IST
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