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आखिर चंद महीनों में क्यों बदल गया छत्तीसगढ़ के वोटर्स का मन ?

लोकसभा चुनाव के दौरान कौन-कौन से मुद्दे रहे छत्तीसगढ़ में हावी. विधानसभा चुनाव में करिश्मा करने वाली कांग्रेस की क्यों हुई करारी हार. क्या रही बीजेपी की जीत की वजह इन मु्द्दों पर ETV भारत ने रविकांत कौशिक से की बात.

रविकांत कौशिक, वरिष्ठ पत्रकार
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Published : May 24, 2019, 10:42 PM IST

रायपुर: नरेन्द्र दामोदर दास मोदी पर 2014 के मुकाबले देश का प्यार 2019 में और ज्यादा बरसा है. छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी की झोली में जमकर वोट डाले गए. हालांकि नतीजों की बात करें तो छत्तीसगढ़ के निर्माण के बाद से पहली बार ऐसा हुआ जब प्रदेश से कांग्रेस के दो सांसद एक साथ लोकसभा में बैठें नजर आएंगे.

रविकांत कौशिक, वरिष्ठ पत्रकार


बीजेपी ने नए चेहरों पर लगाया दांव
बता दें कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 11 में से 2 सीटें जीतने में कामयाब रही है. ये चुनाव छत्तीसगढ़ के लिहाज से इस लिए भी दिलचस्प नजर आ रहा था क्योंकि बीजेपी की ओर से उतारे जा रहे सारे प्रत्याशी नए थे.


सभी सांसदों के टिकट कटे
बीजेपी ने अपने सभी दस सांसदों का टिकट काट दिया था. वहीं हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में मिली कामयाबी के बाद कांग्रेस प्रदेश में बड़ी कामयाबी को लेकर आश्वस्त थी.


भाजपा की जीत के कारण
छत्तीसगढ़ को भाजपा का अभेद गढ़ माना जाता है. लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद यहां की ग्यारह सीटों पर कांग्रेस के लिए नई उम्मीदें जगी थी, लेकिन जनता ने कमल को ही पसंद किया. इसकी बड़ी वजह रही जो कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव के दौरान घर में बैठे थे, इस बार उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी.


इस मुद्दे पर हुई वोटिंग
संघ कार्यकर्ता रणनीति बनाकर अंतिम व्यक्ति तक ये पहुंचाने में कामयाब रहे कि ये चुनाव देश का चुनाव है. यहां स्थानीय मुद्दों को छोड़ देशहित में वोट डाले गए. साथ ही ये समझाने में भी सफल रहे कि इस वक्त मोदी से बेहतर विकल्प देश के लिए कोई नहीं है.


लो प्रोफाइल नाम लड़ रहे चुनाव
राष्ट्रवाद का मुद्दा और प्रधानमंत्री मोदी की छवि भी लोगों के सिर चढ़कर बोला इस बार चुनाव के सभी 11 सीटों पर लो प्रोफाइल नाम चुनाव लड़ रहे थे. एक भी ऐसा नाम नहीं था जो प्रदेश स्तर पर अपनी पहचान रखता हो. यानी सभी सीटों पर प्रत्याशी नाम के लिए थे असल में मैदान में नरेन्द्र मोदी थे और स्थानीय मुद्दे गौण थे गांव गांव तक सर्जिकल स्ट्राइक एयर स्ट्राइक आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा होती रही.


नतीजों का छत्तीसगढ़ पर असर
इस चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ पर पड़ने वाले संभावित असर की बात करें तो जिस तरह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राजनैतिक शैली रही है और पीएम मोदी जिस तरह जवाब देते हैं अगर इसे नजर में रखा जाए तो हो सकता है कई मुद्दों पर राज्य और केन्द्र के बीच टकराहट नजर आए. हालांकि हम उम्मीद करते हैं कि ऐसी स्थिति न बने लेकिन इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता .


इन नेताओं को मिल सकती है अहम जिम्मेदारी
इसके अलावा डॉ रमन सिंह जैसे बड़े नेता केन्द्र की राजनीति में लौट सकते हैं. इससे भी प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर में बदलाव आ सकता है. जबकि कुछ आदिवासी नेता मसलन नंदकुमार साय और विष्णुदेव साय, रामविचार नेताम सरोज पांडे को भी अहम जिम्मेदारी मिल सकती है. जबकि युवाओं का एक बड़ा वर्ग पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी को भी मोदी की कोर टीम में देखना चाह रहे हैं. हालांकि भाजपा और मोदी की टीम में किसे जगह मिलेगी ये सिर्फ नरेन्द्र मोदी औ अमित शाह ही जानते हैं.

रायपुर: नरेन्द्र दामोदर दास मोदी पर 2014 के मुकाबले देश का प्यार 2019 में और ज्यादा बरसा है. छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी की झोली में जमकर वोट डाले गए. हालांकि नतीजों की बात करें तो छत्तीसगढ़ के निर्माण के बाद से पहली बार ऐसा हुआ जब प्रदेश से कांग्रेस के दो सांसद एक साथ लोकसभा में बैठें नजर आएंगे.

रविकांत कौशिक, वरिष्ठ पत्रकार


बीजेपी ने नए चेहरों पर लगाया दांव
बता दें कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 11 में से 2 सीटें जीतने में कामयाब रही है. ये चुनाव छत्तीसगढ़ के लिहाज से इस लिए भी दिलचस्प नजर आ रहा था क्योंकि बीजेपी की ओर से उतारे जा रहे सारे प्रत्याशी नए थे.


सभी सांसदों के टिकट कटे
बीजेपी ने अपने सभी दस सांसदों का टिकट काट दिया था. वहीं हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में मिली कामयाबी के बाद कांग्रेस प्रदेश में बड़ी कामयाबी को लेकर आश्वस्त थी.


भाजपा की जीत के कारण
छत्तीसगढ़ को भाजपा का अभेद गढ़ माना जाता है. लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद यहां की ग्यारह सीटों पर कांग्रेस के लिए नई उम्मीदें जगी थी, लेकिन जनता ने कमल को ही पसंद किया. इसकी बड़ी वजह रही जो कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव के दौरान घर में बैठे थे, इस बार उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी.


इस मुद्दे पर हुई वोटिंग
संघ कार्यकर्ता रणनीति बनाकर अंतिम व्यक्ति तक ये पहुंचाने में कामयाब रहे कि ये चुनाव देश का चुनाव है. यहां स्थानीय मुद्दों को छोड़ देशहित में वोट डाले गए. साथ ही ये समझाने में भी सफल रहे कि इस वक्त मोदी से बेहतर विकल्प देश के लिए कोई नहीं है.


लो प्रोफाइल नाम लड़ रहे चुनाव
राष्ट्रवाद का मुद्दा और प्रधानमंत्री मोदी की छवि भी लोगों के सिर चढ़कर बोला इस बार चुनाव के सभी 11 सीटों पर लो प्रोफाइल नाम चुनाव लड़ रहे थे. एक भी ऐसा नाम नहीं था जो प्रदेश स्तर पर अपनी पहचान रखता हो. यानी सभी सीटों पर प्रत्याशी नाम के लिए थे असल में मैदान में नरेन्द्र मोदी थे और स्थानीय मुद्दे गौण थे गांव गांव तक सर्जिकल स्ट्राइक एयर स्ट्राइक आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा होती रही.


नतीजों का छत्तीसगढ़ पर असर
इस चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ पर पड़ने वाले संभावित असर की बात करें तो जिस तरह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राजनैतिक शैली रही है और पीएम मोदी जिस तरह जवाब देते हैं अगर इसे नजर में रखा जाए तो हो सकता है कई मुद्दों पर राज्य और केन्द्र के बीच टकराहट नजर आए. हालांकि हम उम्मीद करते हैं कि ऐसी स्थिति न बने लेकिन इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता .


इन नेताओं को मिल सकती है अहम जिम्मेदारी
इसके अलावा डॉ रमन सिंह जैसे बड़े नेता केन्द्र की राजनीति में लौट सकते हैं. इससे भी प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर में बदलाव आ सकता है. जबकि कुछ आदिवासी नेता मसलन नंदकुमार साय और विष्णुदेव साय, रामविचार नेताम सरोज पांडे को भी अहम जिम्मेदारी मिल सकती है. जबकि युवाओं का एक बड़ा वर्ग पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी को भी मोदी की कोर टीम में देखना चाह रहे हैं. हालांकि भाजपा और मोदी की टीम में किसे जगह मिलेगी ये सिर्फ नरेन्द्र मोदी औ अमित शाह ही जानते हैं.

Intro:आखिऱ चंद महीनों में ही क्यों बदल गया छत्तीसगढ़ के वोटर्स का मन….
रायपुJ. नरेन्द्र दामोदर दास मोदी पर 2014 के मुकाबले देश का प्यार 2019 में और ज्यादा बरसा है. छत्तीसगढ़ में भी जमकर वोट भाजपा की झोली में डाले. हालांकि नतीजों की बात करें तो छत्तीसगढ़ के निर्माण के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है कि प्रदेश से कांग्रेस के दो सांसद एक साथ लोकसभा में बैठें नजर आएंगे. यानि 11 में से 2 सीट इस बार कांग्रेस जीतने में कामयाब रही है. ये चुनाव छत्तीसगढ़ के लिहाज से इस लिए भी दिलचस्प नजर आ रहा था क्योंकि भाजपा की ओर से उतारे जा रहे सारे प्रत्याशी नए थे. भाजपा ने अपने सभी दस सांसदों का टिकट काट दिया था. वहीं हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में मिली कामयाबी के बाद कांग्रेस प्रदेश में बड़ी कामयाबी को लेकर आश्वस्त थी.
भाजपा की जीत के कारण –
छत्तीसगढ़ को भाजपा का अभेद गढ़ माना जाता है. लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद यहां की ग्यारह सीटों पर कांग्रेस के लिए नई उम्मीदें जगी लेकिन जनता ने कमल को ही पसंद किया. इसकी बड़ी वजह रही जो कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव के दौरान घर बैठे थे वे पूरी ताकत झोंक दी. संघ कार्यकर्ताओं ने रणनीति बनाकर अंतिम व्यक्ति तक ये पहुंचाने में कामयाब रहे कि ये चुनाव देश का चुनाव है यहां स्थानीय मुद्दों को छोड़ देशहित में वोट डालें , साथ ही ये समझाने में भी सफल रहे कि इस वक्त मोदी से बेहतर विकल्प देश के लिए कोई नहीं है.
राष्ट्रवाद का मुद्दा और प्रधानमंत्री मोदी की छवि भी लोगों के सर चढ़कर बोला इस बार चुनाव के सभी 11 सीटों पर लो प्रोफाइल नाम चुनाव लड़ रहे थे. एक भी ऐसा नाम नहीं था जो प्रदेश स्तर पर अपनी पहचान रखता हो. यानी सभी सीटों पर प्रत्याशी नाम के लिए थे असल में मैदान में नरेन्द्र मोदी थे और स्थानीय मुद्दे गौण थे गांव गांव तक सर्जिकल स्ट्राइक एयर स्ट्राइक आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा होती रही ।
नतीजों का छत्तीसगढ़ पर असर-
इस चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ पर पड़ने वाले संभावित असर की बात करें तो जिस तरह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की राजनैतिक शैली रही है और पीएम मोदी जिस तरह जवाब देते हैं अगर इसे नजर में रखा जाए तो हो सकता है कई मुद्दों पर राज्य और केन्द्र के बीच टकराहट नजर आए. हालांकि हम उम्मीद करते हैं कि ऐसी स्थिति न बने लेकिन इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता .
इसके अलावा डॉ रमन सिंह जैसे बड़े नेता केन्द्र की राजनीति में लौट सकते हैं. इससे भी प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर में बदलाव आ सकता है. जबकि कुछ आदिवासी नेता मसलन नंदकुमार साय और विष्णुदेव साय, रामविचार नेताम सरोज पांडे को भी अहम जिम्मेदारी मिल सकती है. जबकि युवाओं का एक बड़ा वर्ग पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी को भी मोदी की कोर टीम में देखना चाह रहे हैं. हालांकि भाजपा और मोदी की टीम में किसे जगह मिलेगी ये सिर्फ नरेन्द्र मोदी औ अमित शाह ही जानते हैं.

बाइट- रविकांत कौशिक, वरिष्ठ पत्रकार (इसी स्लग से प्रवीण सिंह के मोजो से भेजी गई है )Body:भाजपा के जीत के छत्तीसगढ़ के नजरिए से क्या मायने Conclusion:
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