रायपुर: कोरोना काल में सभी स्वास्थ्यकर्मी या कहें पूरा चिकित्सा जगत एक नई तरह की चुनौती से गुजर रहा है. डॉक्टर, सर्जन और नर्सिंग स्टाफ तो पहले ही इससे जूझ रहे हैं. लेकिन इनके अलावा मरीजों को बाहर से अस्पताल तक पहुंचाने वाले एंबुलेंस ड्राइवर, सहायक और कोविड-19 से मृत मरीजों के शव को सम्मानपूर्वक श्मशान घाट तक ले जाने वाले कर्मियों की भूमिका भी बेहद अहम है. जान का खतरा होने के बाद भी अस्पताल के बाहर रहने वाले ये कोरोना वॉरियर्स बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं.
राजधानी रायपुर में सरकारी शव वाहन मुफ्त में उपलब्ध है. लेकिन लगातार बढ़ते मौत के आंकड़ों को देखते हुए प्रशासन निजी संस्थाओं के संचालित शव वाहनों की भी मदद ले रहा है. निजी संस्था के शव वाहन कोरोना संक्रमण से मरने वालों के पार्थिव शरीर को अंतिम सफर तक पहुंचाते हैं. शवों को श्मशान तक पहुंचाने के लिए निजी संस्थाएं मामूली शुल्क ही ले रही है.
लगातार जिम्मेदारी निभा रहे एंबुलेंस ड्राइवर
किसे पता था कि ऐसा भी दौर आएगा जब कोई अपना चल बसेगा और परिवार उसे अंतिम विदाई भी नहीं दे पाएगा. कोरोना महामारी के इस विषम परिस्थिति ने अपनों को अपनों से दूर कर दिया. इस कठिन वक्त में ऐसे भी कोरोना वॉरियर्स हैं, जो अपनी जान की परवाह किए बिना कोविड मरीजों की मौत के बाद उनके शवों को अंतिम सफर तक लेकर जा रहे हैं. निजी संस्था के शव वाहन चालक बिना किसी स्वार्थ के इन शवों को मुक्तिधाम तक ले जाते हैं. वे कहते हैं कि ये उनका काम ही है. खुद का ख्याल रखते हुए शवों को मुक्तिधाम तक पहुंचाते हैं.
कोविड वैश्विक संक्रमण के बीच शव वाहन पर तैनात चालक भी जानते हैं कि इस दौर में ये काम जोखिम से भरा हुआ है. लेकिन वे अपनी जिम्मेदारी को हर परिस्थिति में निभाना चाह रहे हैं. सभी एंबुलेंस चालक स्वास्थ्य विभाग की दी गई गाइडलाइन का पूरी तरह से पालन कर रहे हैं.
शवों को मुक्तिधाम ले जाने के लिए तय है शुल्क
समाज सेवी संस्था 'बढ़ते कदम' के अध्यक्ष सुनील अमरानी बताते हैं कि उनकी संस्था के पास 5 स्वर्गरथ यानि शव वाहन हैं, जो 2005 से अपनी सेवा दे रही हैं. किसी की सामान्य मृत्यु होने पर शव को मुक्तिधाम तक ले जाने के लिए 500 रुपए लिया जाता है. ये शुल्क गाड़ियों के मेंटेनेंस, डीजल के खर्च और स्टाफ के लिए लिया जाता है.
उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके शव को मुक्तिधाम ले जाने के लिए 2 हजार रुपए का शुल्क लिया जाता है. गाड़ियों को सैनिटाइज करने और वाहन चालकों को PPE किट उपलब्ध कराने का खर्च इसमें जुड़ा होता है. शव वाहन के ड्राइवरों का इस स्थिति में खास ख्याल रखा जा रहा है. ये ध्यान रखा जा रहा है कि वाहन चालकों को सभी तरह की सुरक्षा व्यवस्था की सुविधा दी जा सके. जिसके लिए संस्था विशेष रूप से काम कर रही है.
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CMHO मीरा बघेल ने जानकारी देते हुए बताया कि रायपुर जिले में 11 सरकारी शव वाहन है. इनमें से दो वाहनों को कोविड-19 मरीज के शवों के लिए रखा गया है. सामान्य मरीजों के लिए 16 एंबुलेंस उपलब्ध है. उन्होंने बताया कि इन एंबुलेंस ड्राइवरों का खास ध्यान रखा जा रहा है. चालकों को उनकी सुरक्षा के लिए PPE किट, सैनिटाइजर और मास्क जैसी जरूरी चीजें दी जाती हैं. समय-समय पर उनका जांच परीक्षण कराया जाता है. CMHO ने कहा कि एंबुलेंस चालकों का स्वस्थ्य होना स्वास्थ्य विभाग के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि वर्तमान स्थिति को देखते हुए उनकी मदद से कोविड मरीजों के शव को श्मशान तक ले जाया जाता है.
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प्रदेश में कोरोना के मरीज लगातार बढ़ते जा रहे हैं. कोरोना संक्रमण से मौत के आंकड़ों में भी वृद्धि हुई है. रोजाना अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ रही है. इन सबके बीच मरीजों को घरों से अस्पतालों तक और मृत मरीजों के शवों को मुक्तिधाम पहुंचाने तक का काम करने वाले वाहन चालक अपने जान पर खेल कर ये काम कर रहे हैं. शासन-प्रशासन को जरूरत है कि इन चालकों की सुरक्षा के लिए तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जाए, जिससे ये सुचारू रूप से अपना काम कर सकें और उन्हें कम से कम संक्रमण का खतरा हो.