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किसान आंदोलन: गतिरोध दूर करने इस बड़े नेता ने दिए ये सुझाव

केंद्र सराकर द्वारा लाए तीनों कृषि कानूनों को लेकर भारतीय कृषक महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने 7 सुझाव दिए हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार इन सात सूत्रीय सुझावों को मान कर कानून में संशोधन को तैयार हो जाती है तो न केवल किसानों का आंदोलन खत्म होगा बल्कि देश की कृषि व्यवस्था में व्यापक सुधार देखने को मिलेगा.

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किसान आंदोलन को लेकर डॉ राजाराम त्रिपाठी ने दिए 7 सुझाव
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Published : Dec 30, 2020, 3:59 PM IST

Updated : Dec 30, 2020, 4:13 PM IST

रायपुर: भारतीय कृषि व किसानों की दशा सुधारने के लिए केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि सुधार कानून लाए गए हैं. इसे लेकर देशभर के किसान आक्रोशित और आंदोलित हैं, लेकिन भारतीय कृषक महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि ये कहना उचित नहीं होगा कि ये तीनों कानून कृषि व किसानों के हितों के पूरी तरह से प्रतिकूल हैं.

साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि इन कानूनों में कई सुधारों की जरूरत है. भारतीय कृषक महासंघ ने तीनों कानूनों के लागू होने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को सात सूत्रीय सुझाव पत्र भेजा था. जब ये सुझाव भेजा गया था तब तीनों कृषि कानूनों का मात्र अध्यादेश ही लाया गया था. आइफा के राष्ट्रीय संयोजक ने बताया कि उनके दिए गए सुझावों पर ध्यान नहीं दिया गया और केंद्र सरकार के द्वारा उन अध्यादेशों को संसद के मानसून सत्र में पारित करा कर कानून का रूप दे दिया गया.

डॉ त्रिपाठी ने कहा कि आइफा ने देश के चारों जोन के जोनल संयोजकों और 45 किसान संगठनों के साथ वर्चुअल संवाद कर यह सुझाव पत्र तैयार किया था. अब उन्हीं मुद्दों व आशंकाओं को लेकर किसान पिछले कई दिनों से आंदोलन कर रहे हैं.

दिल्ली में आंदोलन को समर्थन देने पहुंचा छत्तीसगढ़ के किसानों का जत्था

आइफा ने दिए थे ये 7 सुझाव-
  • सरकार एमएसपी की गारंटी मौखिक या लिखित देने के बजाय इसे कृषि सुधार कानून में शामिल कर संवैधानिक प्रारूप दे सकती है.
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत खेती करने वाले किसानों के हितों को सुरक्षित करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है.
  • फसल न होने या बर्बाद होने पर कॉन्ट्रैक्ट देने वाली कंपनी तो फसल बीमा योजना के तहत अपने नुकसान की भरपाई कर लेगी, लेकिन किसानों के श्रम व जमीन के किराये का क्या होगा? इस समस्या का समाधान भी कानून के तहत निकालना होगा.
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित विवादों के निपटान की व्यवस्था एसडीएम/डीएम के अंतर्गत न होकर इसके लिए अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था की जानी चाहिए.
  • कृषि जीएसटी के दायरे से बाहर है, लेकिन उक्त कानून के तहत कृषि एक सेवा व्यवसाय के रूप में उल्लेखित किया गया है, लिहाजा कृषि के जीएसटी के दायरे में भी आने की आशंका है.
  • उक्त कानून के तहत गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेस को स्पष्टता के साथ वर्णित नहीं किया गया है. ऐसे में कांट्रैक्ट फार्मिंग कराने वाली कंपनियां ज्यादा उपज हासिल करने के लिए अनियंत्रित रसायनिक खाद का इस्तेमाल कर खेती की उर्वरकता को नष्ट कर देगी और सस्टनेबल फार्मिंग (टिकाऊ खेती) की अवधारणा विफल हो जाएगी.
  • कृषि व मूल्य लागत आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाना अब आवश्यक हो गया है तथा एमएसएम का निर्धारण स्वामीनाथन समीति की अनुशंसा सी-2 प्लस के तहत किये जाने का प्रावधान कानून के अंतर्गत किया जाए.

भारतीय कृषक महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि अगर सरकार इन सात सूत्रीय सुझावों को मान कर कानून में संशोधन को तैयार हो जाती है तो न केवल किसानों का आंदोलन खत्म होगा बल्कि देश की कृषि व्यवस्था में व्यापक सुधार देखने को मिलेगा.

रायपुर: भारतीय कृषि व किसानों की दशा सुधारने के लिए केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि सुधार कानून लाए गए हैं. इसे लेकर देशभर के किसान आक्रोशित और आंदोलित हैं, लेकिन भारतीय कृषक महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि ये कहना उचित नहीं होगा कि ये तीनों कानून कृषि व किसानों के हितों के पूरी तरह से प्रतिकूल हैं.

साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि इन कानूनों में कई सुधारों की जरूरत है. भारतीय कृषक महासंघ ने तीनों कानूनों के लागू होने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को सात सूत्रीय सुझाव पत्र भेजा था. जब ये सुझाव भेजा गया था तब तीनों कृषि कानूनों का मात्र अध्यादेश ही लाया गया था. आइफा के राष्ट्रीय संयोजक ने बताया कि उनके दिए गए सुझावों पर ध्यान नहीं दिया गया और केंद्र सरकार के द्वारा उन अध्यादेशों को संसद के मानसून सत्र में पारित करा कर कानून का रूप दे दिया गया.

डॉ त्रिपाठी ने कहा कि आइफा ने देश के चारों जोन के जोनल संयोजकों और 45 किसान संगठनों के साथ वर्चुअल संवाद कर यह सुझाव पत्र तैयार किया था. अब उन्हीं मुद्दों व आशंकाओं को लेकर किसान पिछले कई दिनों से आंदोलन कर रहे हैं.

दिल्ली में आंदोलन को समर्थन देने पहुंचा छत्तीसगढ़ के किसानों का जत्था

आइफा ने दिए थे ये 7 सुझाव-
  • सरकार एमएसपी की गारंटी मौखिक या लिखित देने के बजाय इसे कृषि सुधार कानून में शामिल कर संवैधानिक प्रारूप दे सकती है.
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत खेती करने वाले किसानों के हितों को सुरक्षित करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है.
  • फसल न होने या बर्बाद होने पर कॉन्ट्रैक्ट देने वाली कंपनी तो फसल बीमा योजना के तहत अपने नुकसान की भरपाई कर लेगी, लेकिन किसानों के श्रम व जमीन के किराये का क्या होगा? इस समस्या का समाधान भी कानून के तहत निकालना होगा.
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित विवादों के निपटान की व्यवस्था एसडीएम/डीएम के अंतर्गत न होकर इसके लिए अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था की जानी चाहिए.
  • कृषि जीएसटी के दायरे से बाहर है, लेकिन उक्त कानून के तहत कृषि एक सेवा व्यवसाय के रूप में उल्लेखित किया गया है, लिहाजा कृषि के जीएसटी के दायरे में भी आने की आशंका है.
  • उक्त कानून के तहत गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेस को स्पष्टता के साथ वर्णित नहीं किया गया है. ऐसे में कांट्रैक्ट फार्मिंग कराने वाली कंपनियां ज्यादा उपज हासिल करने के लिए अनियंत्रित रसायनिक खाद का इस्तेमाल कर खेती की उर्वरकता को नष्ट कर देगी और सस्टनेबल फार्मिंग (टिकाऊ खेती) की अवधारणा विफल हो जाएगी.
  • कृषि व मूल्य लागत आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाना अब आवश्यक हो गया है तथा एमएसएम का निर्धारण स्वामीनाथन समीति की अनुशंसा सी-2 प्लस के तहत किये जाने का प्रावधान कानून के अंतर्गत किया जाए.

भारतीय कृषक महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि अगर सरकार इन सात सूत्रीय सुझावों को मान कर कानून में संशोधन को तैयार हो जाती है तो न केवल किसानों का आंदोलन खत्म होगा बल्कि देश की कृषि व्यवस्था में व्यापक सुधार देखने को मिलेगा.

Last Updated : Dec 30, 2020, 4:13 PM IST
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