रायपुर: जैविक खेती या ऑर्गेनिक फार्मिंग खेती का वो तरीका है, जो कार्बनिक तत्वों के जरिए किया जाता है. जैविक खेती में पौधे, पौधे के अवशेषों या जैविक अवशेषों का इस्तेमाल कर फसल का उत्पादन किया जाता है.
"जैविक खेती एक ऐसा तरीका है. जिसमें पशुधन जैसे गाय के गोबर जिसे नाडेप खाद के रूप में जाना जाता है. उसका इस्तेमाल खेती में किया जाता है. इसके अलावा केंचुआ खाद ,जंगल की पत्तियों और घास फूस का उपयोग करके किसान इसे मिट्टी में मिलाते हैं. इसके साथ ही कई किसान खेतों में धान की फसल लेने के बाद पैरा को उसी खेत में डाल देते हैं. इन फसलों के अवशेष को मिट्टी में डालकर फिर से इसकी जुताई करके उसी खेत में कंपोस्टिंग की जाती है. फिर जब फसल का उत्पादन लिया जाता है, तो यही जैविक खेती कहलाती है. जैविक खेती का महत्वपूर्ण भाग केंचुआ है." -डॉ घनश्याम साहू, कृषि वैज्ञानिक आईजीकेवी रायपुर
"जमीन में जब जीवांश की मात्रा बढ़ाई जाती है, तो कहीं ना कहीं केंचुए की मात्रा भी बढ़ती है. पहले के समय में किसान को ही भूमि पुत्र कहा जाता था. लेकिन अब अतिशयोक्ति नहीं है, कि किसान अपनी आवश्यकता के लिए अपनी जमीन का इतना अधिक दोहन कर रहा है. परंपरागत या सतत खेती के लिए जमीन को छोड़ नहीं पा रहा है." -डॉ घनश्याम साहू, कृषि वैज्ञानिक आईजीकेवी रायपुर
"वर्तमान समय में केंचुआ भूमि पुत्र के रूप में जाना जाता है. क्योंकि केचुआ मिट्टी को पलटने के साथ-साथ भुरभुरा बनाता है, और उसमें जीवांश की मात्रा भी छोड़ते जाता है. ऐसे में किसानों को हरा चारा ,घास, धान, गेहूं का पैरा, मूंग और उड़द का पैरा भी उपयोग करते हैं " -डॉ घनश्याम साहू, कृषि वैज्ञानिक आईजीकेवी रायपुर
" इस खेती में,रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं के बराबर किया जाता है, तो फसल में कीट आदि का प्रकोप नहीं के बराबर रहता है. इसके साथ ही फसल का उत्पादन भी अधिक होता है. जैविक उत्पाद के दाम 2 गुने होते हैं. किसान अगर जैविक खेती करता है, तो उसके उत्पाद का उसे दोगुना मूल्य मिलता है. किसानों के लिए आने वाला फ्यूचर जैविक खेती का है." -डॉ घनश्याम साहू, कृषि वैज्ञानिक आईजीकेवी रायपुर
रासायनिक खाद बेहद नुकसानदायक: आजादी और हरित क्रांति के बाद से लगातार रासायनिक खाद का उपयोग होता रहा है. खाद्यान्न फसल में भारत अग्रणी रहा है. लेकिन कहीं ना कहीं रासायनिक खाद की मात्रा वापस हमें हमारे भोजन में मिलती है. जो काफी नुकसानदायक होती है.