रायपुर: छत्तीसगढ़ पुलिस और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार पुलिस मुख्यालय में राज्य स्तरीय वर्कशॉप का आयोजन किया गया. वर्कशॉप में अनाधिकृत जमा के स्वीकार, चिटफंड और पॉन्जी स्कीम से संबंधित विशेषज्ञों से जानकारी ली गई. कार्यक्रम में पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा (Director General of Police Ashok Juneja) ने कहा कि आज के कार्यशाला के माध्यम से छत्तीसगढ़ पुलिस के अधिकारियों को गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों( एनबीएफसी) के अनाधिकृत जमा और गड़बड़ियों के बारे में जानकारी मिल पायेगी. एनबीएफसी कंपनियों का रेगुलेशन, सुपरविजन, सर्विलांस रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और सेबी के विशेषज्ञ अधिकारियों से आपको बहुत सी जानकारी मिल पायेगी जो प्रकरणों में सहायक होगी.
चिटफंड को लेकर प्रशासन सतर्क
डीजीपी ने कहा कि चिटफंड कंपनियों की धोखाधड़ी के मामलों में छत्तीसगढ़ में तेजी से कार्रवाई हो रही (Action intensified in Chhattisgarh in cases of irregular financial fraud) है. न्यायालय के माध्यम से डायरेक्टर्स की संपत्ति कुर्क करके पीड़ितों को पैसा वापस कराया जा रहा है. वर्कशॉप में बताया गया कि किसी भी वित्तीय अनियमितता के मामले में मनी ट्रेल करना महत्वपूर्ण होता है. इस बीच चिटफंड कंपनियों के फर्जीवाड़े के संबंध में विशेषज्ञों ने बताया कि जब भी कोई कंपनी वित्तीय धोखाधड़ी करती है, तो वहां डमी डायरेक्टर की संभावना ज्यादा होती है. पुलिस के सामने यहीं से असली चुनौती शुरू होती जाती है कि फर्जीवाड़ा करने वाले मूल लोगों तक कैसे पहुंचा जाये. पुलिस की इस चुनौती को मनी ट्रेल के माध्यम से सुलझाया जा सकता है. मनी ट्रेल करके जांच एजेंसी पता कर सकती है कि धोखाधड़ी के पैसे का अंतिम लाभ किस व्यक्ति या संस्था को पहुंचा है.
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मनी ट्रेल से वित्तीय धोखाधड़ी पर रोक (Money trail to stop financial fraud)
विशेषज्ञों ने वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों पर फॉरेंसिक ऑडिट के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि सभी कंपनियां में ऑडिट एक सामान्य प्रक्रिया है, किसी वित्तीय वर्ष में स्टेटुअरी ऑडिट सभी कंपनियों में होता है. लेकिन जब किसी वित्तीय गड़बड़ी का पता लगाना हो तब फॉरेंसिक ऑडिट करना पड़ता है. इससे विस्तृत रूप से किसी वित्तीय धोखाधड़ी या गड़बड़ी का पता लगाया जा सकता है. जो भी कंपनी भारत देश में संचालित हैं उन सभी को कंपनी एक्ट 2013 के अनुरूप कार्य करना होता है.
ट्रस्टी नियुक्त करना अनिवार्य
इस एक्ट में स्पष्ट है कि किस प्रकार की कंपनियां पब्लिक से पैसा जमा करा सकती है. जो भी कंपनियां पब्लिक से पैसा जमा करा रहीं है, नियमानुसार उन्हें ट्रस्टी नियुक्त करना अनिवार्य होता है. कंपनी द्वारा डिपॉजिट लेते समय ग्राहक को रसीद देना अनिवार्य है. सभी कंपनियों को प्रत्येक वर्ष अपने वास्तिवक ओनर की घोषणा करना अनिवार्य रहता है. किसी कंपनी के डायरेक्टर का पता करने के लिये एमसीए पोर्टल पर एसबीओ फॉर्म की सहायता ली जा सकती है. विशेषज्ञों ने बताया कि यदि कंपनी ने जमाकर्ता के साथ धोखाधड़ी की है तो जमाकर्ता कंपनी पर केस कर सकता है. इसके साथ ही कंपनी का प्रमोशन करने वाले प्रमोटर यदि उसे कंपनी द्वारा की जाने वाली धोखाधड़ी की जानकारी हो तो उस पर भी जिम्मेदारी तय की जा सकती है.
ये थे मौजूद
वर्कशॉप में एडीजी प्रशासन हिमांशु गुप्ता, आईजी सीआईडी सुशील चंद्र द्विवेदी, डीआईजी यूबीएस चौहान, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की क्षेत्रीय निदेशक श्रीमती ए सिवगामी, उपमहाप्रबंधक सत्यनारायण मिश्रा, सहायक विधि सलाहकार दयानंद गुंड, प्रबंधक प्रखर जामने, प्रबंधक सुश्री अनुजा देशमुख, सेबी के क्षेत्रीय अधिकारी बीजे दिलीप, सीए अभिषेक महावर उपस्थित थे.