रायपुर: चरैवेति-चरैवेति सूत्र के साथ गतिमान अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी मंगलवार को राजधानी के शंकर नगर पहुंचे. पूज्य गुरुदेव के नगर विचरण से श्राावक समाज में विशेष उत्साह, श्रद्धा-भक्ति नजर आई. सिल्वर स्क्रिन मैरिज पैलेस से पूज्यवर ने श्रीराम मंदिर तक यात्रा की. इस दौरान कई श्रद्धालुओं ने उनके दर्शन किया और उनका आशीर्वाद लिया.
![Acharya Shri Mahashraman reached Shankar Nagar in Raipur on Tuesday](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-rpr-01-aacharya-mahasharman-dry-cg10001_24022021095328_2402f_1614140608_791.jpg)
'जो खुद को जीत ले वहीं सबसे बड़ा विजयी'
मंगल प्रवचन में आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा - इस संसार में युद्ध होते हैं. कहीं किसी से बदला लेने के लिए तो कहीं अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए युद्ध किए जाते है. उन्होंने कहा कि बाह्य युद्ध में दस लाख लोगों से भी जीत ले तो वह जीत नहीं है. जो खुद को जीत ले वहीं सबसे बड़ा विजयी होता है.अपनी आत्मा को जीतना सबसे बड़ी विजय है.व्यक्ति दूसरों से नहीं अपने आप से युद्ध करें. आत्मा से आत्मा को जीतने की कोशिश करें. क्रोध, मान, माया, लोभ को जीतना आत्म युद्ध है.
'स्वयं को जीतना ही बड़ी बात'
पूज्य प्रवर ने आगे कहा कि जीवन में घमंड, अहंकार नहीं होना चाहिए. अनेक रूपों में व्यक्ति में अहंकार आ सकता है.धन, पद, सत्ता इन सभी का कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए. व्यर्थ का दिखावा, प्रदर्शन नहीं करना चाहिए.जीवन में सरलता रखते हुए माया छल-कपट से भी बचने का प्रयास करें. जब जीवन में संतोष की साधना हो तो व्यक्ति लोभ को भी जीत सकता है.दूसरों से लड़ना तो छोटी बात है स्वयं को जीतना ही बड़ी बात होती है. कई-कई जन्मों की साधना से केवल ज्ञान प्राप्त होता है, मुक्ति प्राप्त होती है. उन्होंने कहा कि गुस्सा एक प्रकार की कमजोरी है. प्रतिकूलता में भी जो गुस्सा नहीं करता और क्षमा को धारण करता है वह वीर होता है. शांति, क्षमा की साधना से हम क्रोध को जीतने का प्रयास कर सकते है.
जगतगुरु शंकराचार्य का आशीर्वाद लेने सिवनी पहुंचे सीएम भूपेश बघेल
आराध्य के स्वागत में मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति अध्यक्ष महेन्द्र धाड़ीवाल, सुरेशचन्द्र धाड़ीवाल, शंकरनगर जैन श्रीसंघ अध्यक्ष प्रेमचन्द लुणावत, कमलादेवी धाड़़ीवाल, विजयादेवी धाड़ीवाल ने अपने भाव व्यक्त किये. धाड़ीवाल परिवार की बहनों ने भिक्षु अष्टकम और गितिका का संगान किया. इस अवसर पर समस्त धाड़ीवाल परिवार ने कुछ न कुछ त्याग ग्रहण कर गुरुचरणों में त्याग की भेंट अर्पित की.