रायपुर: अनचाहे गर्भ से निजात पाने के लिए अक्सर महिलाएं गर्भपात की गोली मेडिकल स्टोर से सीधे लेकर सेवन कर लेती हैं. लेकिन ऐसा करना खतरनाक साबित हो सकता है. गर्भपात की गोली के कई साइडइफेक्ट होते हैं. इसे डॉक्टरी सलाह के बाद ही सेवन करना चाहिए. कई बार ऐसा होता है कि महिला जिस दवा का सेवन कर रही होती है, उसके बारे में पता न होने से अधिक रक्तस्राव होता है. इस रक्तस्राव में महिला की मौत भी हो सकती है.
आ सकती है ऐसी परेशानी: मेडिकल स्टोर में आसानी से मिलने वाले गर्भपात की गोलियों के सेवन से कई तरह की शारीरिक परेशानियां आ सकती है. जैसे-जी मचलना, सिरदर्द, चक्कर आना, दस्त, पेट दर्द, हद से ज्यादा रक्तस्राव. कई बार ये परेशानियां शरीर के लिए घातक सिद्ध हो जाता है.
क्या कहतीं हैं स्त्री रोग विशेषज्ञ: डॉक्टर भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रुचि गुप्ता का कहना है कि "अबॉर्शन पिल्स के कारण एक्स्ट्रा ब्लीडिंग हो सकती है. कई बार ऐसे केसेज में पेशेंट को खून चढ़ाना पड़ता है. ऐसे पेशेंट को अर्जेंट सफाई करानी पड़ती है. कई बार ऐसा होता है कि ब्लीडिंग होकर भी महिला प्रेगनेंसी कंटिन्यू करती है. इन अबॉर्शन का असर आने वाले बच्चे पर पड़ता है. ऐसी कंडीशन में जन्मे बच्चे का अंग-भंग होने सहित कई परेशानी हो सकती हैं. ऐसे में चिकित्सीय सलाह के बाद ही अबॉर्शन पिल्स का सेवन करना चाहिए."
न करें पिल्स को रिपीट: अक्सर महिला के अबॉर्शन के समय डॉक्टर ये चेक करते हैं कि कंसिविंग टाइम कितना हुआ है. टाइम के अकॉर्डिंग ही मेडिसिन दी जाती है. महिला का उम्र भी सही होना चाहिए. इसलिए डॉक्टर के सलाह के बाद ही अबॉर्शन पिल्स का सेवन करना चाहिए. क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि महिला को पता नहीं होता है कि उसकी प्रेग्नेंसी कहां तक पहुंची है और कितनी पुरानी है. अगर 2 हफ्ते पुरानी है तो यूट्रस के अंदर है. ऐसी कंडीशन में यह पिल्स जानलेवा हो सकती है. इस पिल्स को रिपीट कभी नहीं करना चाहिए.
पीरियड पर पड़ता है गोलियों का असर: अबॉर्शन पिल्स के गलत सेवन से पीरियड के दौरान काफी समस्या हो सकती है. जैसे अधिक खून का बहाव होना, महीनों तक पीरियड में रक्तस्राव होना, पीरियड के खून के साथ खून का थक्का बाहर आना. गर्भपात की गोलियां शरीर की प्रेगनेंसी हार्मोन प्रोजेस्टेरोन का बनना बंद कर देती है, जिसके कारण पीरियड में ब्लीडिंग अधिक होता है. कई बार गोलियों के असर के बावजूद भ्रूण पूरी तरह से बाहर नहीं आ पाता. ऐसे केस में चिकित्सकों को ऑपरेशन करना पड़ता है.