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संत रविदास के 10 दोहे, जो आपको जिंदगी की बड़ी सीख देंगे - संत रविदास जयंती

आज संत रविदास की 643वीं जयंती है. उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी और समाज को नई दिशा देने की कोशिश की थी.

Sant Ravidas
संत रविदास
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Published : Feb 9, 2020, 1:50 PM IST

Updated : Feb 9, 2020, 10:43 PM IST

रायपुर: 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' लिखने वाले संत रविदास को कौन नहीं जानता. सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लिखे उनके दोहे लोगों को याद हैं. 9 फरवरी को संत रविदास की 643वीं जयंती है, ऐसे में उनके लिखे 10 दोहे हम आपके लिए लेकर आए हैं. जिन्हें पढ़ना और समझना जरूरी है क्योंकि इनसे आपको सीख मिलेगी.

संत रविदास के 10 दोहे, जो आपको जिंदगी की बड़ी सीख देंगे

1- मन चंगा तो कठौती में गंगा
इस दोहे में संत रविदास कहते हैं कि जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे बर्तन) में भी आ जाती हैं.

2- जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

इस दोहे में संत रविदास जी कहते हैं कि केले के तने को छीला जाए तो पत्ते के नीचे पत्ता मिलता है, पेड़ खत्म हो जाता है लेकिन अंत में हाथ कुछ नहीं आता. वे कहते हैं कि ठीक इसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है. इंसान खत्म हो जाता है लेकिन जाति खत्म नहीं होती.

3- रैदास कहै जाकै हृदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।

इस दोहे में संत रविदास जी ईश्वर की महिमा बता रहे हैं. वे कहते हैं कि जिसके ह्दय में दिन-रात राम के नाम का वास होता है, वह ह्दय स्वयं राम के समान होता है. रविदास कहते हैं कि राम के नाम में इतनी शक्ति होती है कि व्यक्ति को कभी गुस्सा नहीं आता और वो कभी कामभावना का शिकार नहीं होता है.

4- रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।

इस दोहे में संत रविदास जी कहना चाहते हैं कि कोई भी इंसान जन्म लेने से ऊंच-नीच नहीं होता बल्कि कर्म ही उसे उच्च और नीच बनाते हैं.

5 - एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय।।

संत रविदास जी कहते हैं कि सभी कामों को अगर हम एक साथ शुरू करते हैं तो हमें कभी उनमें सफलता नहीं मिलती है. ठीक उसी प्रकार अगर किसी पेड़ की एक एक टहनी और पत्ती को सींचा जाये और उसकी जड़ को सूखा छोड़ जाए तो कोई मतलब नहीं निकलेगा, वो सूखा रह जाएगा.

6- रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

इस दोहे में संत रविदास जी कहते हैं कि मुश्किल परिस्थितियों में आपकी कमाई गई दौलत के अलावा और कोई मददगार नहीं होता है. वे कहते हैं कि सूरज भी तालाब का पानी सूख जाने के बाद कमल को सूखने से नहीं बचा पाता.

7- ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।
पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।।

इस दोहे में संत रविदास जी कहना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति को उसके पद के हिसाब से मत पूजिए. वे कहते हैं कि व्यक्ति को गुण से हिसाब से पूजना चाहिए. संत रविदास कहते हैं कि कोई ऐसा व्यक्ति है जो किसी पूजनीय पद (Post) पर तो नहीं है, पर उसमें पूजनीय गुण है तो उसे अवश्य ही पूजना चाहिए.

8- करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।।

इस दोहे में रविदास कहते हैं कि आदमी को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नहीं छोड़नी चाहिए. वे कहते हैं कि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य.

9- मन ही पूजा मन ही धूप।
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।

इस दोहे में संत रविदास कहते हैं कि निर्मल मन में ही ईश्वर का वास होता है. वे कहते हैं कि अगर उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है.

10- कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।

इस दोहे में संत रविदास ने कहा कि राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही ईश्वर की बात करते हैं, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं.

रायपुर: 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' लिखने वाले संत रविदास को कौन नहीं जानता. सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लिखे उनके दोहे लोगों को याद हैं. 9 फरवरी को संत रविदास की 643वीं जयंती है, ऐसे में उनके लिखे 10 दोहे हम आपके लिए लेकर आए हैं. जिन्हें पढ़ना और समझना जरूरी है क्योंकि इनसे आपको सीख मिलेगी.

संत रविदास के 10 दोहे, जो आपको जिंदगी की बड़ी सीख देंगे

1- मन चंगा तो कठौती में गंगा
इस दोहे में संत रविदास कहते हैं कि जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे बर्तन) में भी आ जाती हैं.

2- जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

इस दोहे में संत रविदास जी कहते हैं कि केले के तने को छीला जाए तो पत्ते के नीचे पत्ता मिलता है, पेड़ खत्म हो जाता है लेकिन अंत में हाथ कुछ नहीं आता. वे कहते हैं कि ठीक इसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है. इंसान खत्म हो जाता है लेकिन जाति खत्म नहीं होती.

3- रैदास कहै जाकै हृदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।

इस दोहे में संत रविदास जी ईश्वर की महिमा बता रहे हैं. वे कहते हैं कि जिसके ह्दय में दिन-रात राम के नाम का वास होता है, वह ह्दय स्वयं राम के समान होता है. रविदास कहते हैं कि राम के नाम में इतनी शक्ति होती है कि व्यक्ति को कभी गुस्सा नहीं आता और वो कभी कामभावना का शिकार नहीं होता है.

4- रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।

इस दोहे में संत रविदास जी कहना चाहते हैं कि कोई भी इंसान जन्म लेने से ऊंच-नीच नहीं होता बल्कि कर्म ही उसे उच्च और नीच बनाते हैं.

5 - एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय।।

संत रविदास जी कहते हैं कि सभी कामों को अगर हम एक साथ शुरू करते हैं तो हमें कभी उनमें सफलता नहीं मिलती है. ठीक उसी प्रकार अगर किसी पेड़ की एक एक टहनी और पत्ती को सींचा जाये और उसकी जड़ को सूखा छोड़ जाए तो कोई मतलब नहीं निकलेगा, वो सूखा रह जाएगा.

6- रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

इस दोहे में संत रविदास जी कहते हैं कि मुश्किल परिस्थितियों में आपकी कमाई गई दौलत के अलावा और कोई मददगार नहीं होता है. वे कहते हैं कि सूरज भी तालाब का पानी सूख जाने के बाद कमल को सूखने से नहीं बचा पाता.

7- ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।
पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।।

इस दोहे में संत रविदास जी कहना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति को उसके पद के हिसाब से मत पूजिए. वे कहते हैं कि व्यक्ति को गुण से हिसाब से पूजना चाहिए. संत रविदास कहते हैं कि कोई ऐसा व्यक्ति है जो किसी पूजनीय पद (Post) पर तो नहीं है, पर उसमें पूजनीय गुण है तो उसे अवश्य ही पूजना चाहिए.

8- करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।।

इस दोहे में रविदास कहते हैं कि आदमी को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नहीं छोड़नी चाहिए. वे कहते हैं कि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य.

9- मन ही पूजा मन ही धूप।
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।

इस दोहे में संत रविदास कहते हैं कि निर्मल मन में ही ईश्वर का वास होता है. वे कहते हैं कि अगर उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है.

10- कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।

इस दोहे में संत रविदास ने कहा कि राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही ईश्वर की बात करते हैं, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं.

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ravidas ke dohe


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Last Updated : Feb 9, 2020, 10:43 PM IST
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