रायगढ़ : तमनार के आस पास के 56 गांव में कोल माइंस लगाने वाली कंपनी की जनसुनवाई का ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया है. जहां लोग भूखे मर जाने को तैयार हैं लेकिन, अपने घर, जमीन और जंगल छोड़ने को नहीं. 'जय जवान जय किसान' के नारे लगाते ग्रामीण महाराष्ट्र की महाजैनको कंपनी से सैकड़ों साल पुरानी संस्कृति, समाज, घर और सबसे ज्यादा दिन-ब-दिन खत्म होती जा रहे पर्यावरण को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
यह पहली बार नहीं है, जब छत्तीसगढ़ के आदिवासी ग्रामीणों ने जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ी हो. इससे पहले भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों ने अदानी समूह की कंपनी से बैलाडिला के नंदीराज पर्वत को बचाने के लिए संघर्ष किया था.
विरोध प्रदर्शन कर रहे यह ग्रामीण रायगढ़ जिले के तमनार के आस पास के 56 गांव से अपने रोजमर्रा के कामों को छोड़कर भरी बरसात में सुबह से खड़े होकर डटकर महाजैनको और आदानी समूह का विरोध कर रहे हैं. ग्रामीण किसी कीमत पर विस्थापना नहीं चाहते हैं. उनका कहना है कि 'हम में से कइयों ने अपनी जमीन खो दी है, पर अब हम अपने गांव और घर नहीं खो सकते हैं'. रोजगार के बिना हम रहने को तैयार हैं, लेकिन अब अपनी जमीन और जंगल किसी के नाम नही करेंगे. पहले से चल रही फैक्ट्रियों ने पूरे क्षेत्र के पर्यावरण को प्रभावित किया है. लोग दमा जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं'.
दिलचस्प बात यह है कि अप्रैल 2018 मे प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तमनार में जनसुनवाई के विरोध में पद यात्रा की थी, लेकिन आज इन ग्रामीण आदिवासियों का साथ कोई नजर नहीं आ रहा.
अब देखना यह होगा कि आदिवासियों की ये आवाज सरकार के कानों तक पहुंच सकेगी. पर्यावरण और रुपयों की लड़ाई में किसकी जीत होगी.