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जल, जंगल और जमीन को बचाने उतरे आदिवासी, बरसात में भी डटकर किए विरोध

महाजेनको की जनसुनवाई के विरोध में लोगों ने सुनवाई स्थल का घेराव कर दिया है.

महाजेनको की जनसुनवाई के विरोध में लोगों ने सुनवाई स्थल का घेराव कर दिया है.
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Published : Sep 29, 2019, 12:11 AM IST

रायगढ़ : तमनार के आस पास के 56 गांव में कोल माइंस लगाने वाली कंपनी की जनसुनवाई का ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया है. जहां लोग भूखे मर जाने को तैयार हैं लेकिन, अपने घर, जमीन और जंगल छोड़ने को नहीं. 'जय जवान जय किसान' के नारे लगाते ग्रामीण महाराष्ट्र की महाजैनको कंपनी से सैकड़ों साल पुरानी संस्कृति, समाज, घर और सबसे ज्यादा दिन-ब-दिन खत्म होती जा रहे पर्यावरण को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

यह पहली बार नहीं है, जब छत्तीसगढ़ के आदिवासी ग्रामीणों ने जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ी हो. इससे पहले भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों ने अदानी समूह की कंपनी से बैलाडिला के नंदीराज पर्वत को बचाने के लिए संघर्ष किया था.

विरोध प्रदर्शन कर रहे यह ग्रामीण रायगढ़ जिले के तमनार के आस पास के 56 गांव से अपने रोजमर्रा के कामों को छोड़कर भरी बरसात में सुबह से खड़े होकर डटकर महाजैनको और आदानी समूह का विरोध कर रहे हैं. ग्रामीण किसी कीमत पर विस्थापना नहीं चाहते हैं. उनका कहना है कि 'हम में से कइयों ने अपनी जमीन खो दी है, पर अब हम अपने गांव और घर नहीं खो सकते हैं'. रोजगार के बिना हम रहने को तैयार हैं, लेकिन अब अपनी जमीन और जंगल किसी के नाम नही करेंगे. पहले से चल रही फैक्ट्रियों ने पूरे क्षेत्र के पर्यावरण को प्रभावित किया है. लोग दमा जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं'.

दिलचस्प बात यह है कि अप्रैल 2018 मे प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तमनार में जनसुनवाई के विरोध में पद यात्रा की थी, लेकिन आज इन ग्रामीण आदिवासियों का साथ कोई नजर नहीं आ रहा.
अब देखना यह होगा कि आदिवासियों की ये आवाज सरकार के कानों तक पहुंच सकेगी. पर्यावरण और रुपयों की लड़ाई में किसकी जीत होगी.

रायगढ़ : तमनार के आस पास के 56 गांव में कोल माइंस लगाने वाली कंपनी की जनसुनवाई का ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया है. जहां लोग भूखे मर जाने को तैयार हैं लेकिन, अपने घर, जमीन और जंगल छोड़ने को नहीं. 'जय जवान जय किसान' के नारे लगाते ग्रामीण महाराष्ट्र की महाजैनको कंपनी से सैकड़ों साल पुरानी संस्कृति, समाज, घर और सबसे ज्यादा दिन-ब-दिन खत्म होती जा रहे पर्यावरण को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

यह पहली बार नहीं है, जब छत्तीसगढ़ के आदिवासी ग्रामीणों ने जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ी हो. इससे पहले भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों ने अदानी समूह की कंपनी से बैलाडिला के नंदीराज पर्वत को बचाने के लिए संघर्ष किया था.

विरोध प्रदर्शन कर रहे यह ग्रामीण रायगढ़ जिले के तमनार के आस पास के 56 गांव से अपने रोजमर्रा के कामों को छोड़कर भरी बरसात में सुबह से खड़े होकर डटकर महाजैनको और आदानी समूह का विरोध कर रहे हैं. ग्रामीण किसी कीमत पर विस्थापना नहीं चाहते हैं. उनका कहना है कि 'हम में से कइयों ने अपनी जमीन खो दी है, पर अब हम अपने गांव और घर नहीं खो सकते हैं'. रोजगार के बिना हम रहने को तैयार हैं, लेकिन अब अपनी जमीन और जंगल किसी के नाम नही करेंगे. पहले से चल रही फैक्ट्रियों ने पूरे क्षेत्र के पर्यावरण को प्रभावित किया है. लोग दमा जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं'.

दिलचस्प बात यह है कि अप्रैल 2018 मे प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तमनार में जनसुनवाई के विरोध में पद यात्रा की थी, लेकिन आज इन ग्रामीण आदिवासियों का साथ कोई नजर नहीं आ रहा.
अब देखना यह होगा कि आदिवासियों की ये आवाज सरकार के कानों तक पहुंच सकेगी. पर्यावरण और रुपयों की लड़ाई में किसकी जीत होगी.

Intro:रायगढ़ जिले के तमनार स्थित बलेसर ग्राम पंचायत में महाजनको जनसुनवाई आयोजित की गई जिसमें हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने अपना विरोध जताया। 12 ग्राम पंचायत में भू विस्थापन के लिए रखा गया है जनसुनवाई। ग्रामीणों के द्वारा सुबह 5:00 बजे से ही जनसुनवाई स्थल में पहुंचकर मुख्य द्वार को बंद कर दिया गया और अपना सहयोग देने के लिए जा रहे हैं अंदर ग्रामीणों को भी रोक लिए।

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Body: जिले के लैलूंगा विधानसभा क्षेत्र के तमनार में 12 गांव को कोयला खनन के लिए भू विस्थापन किए जाना है इसीलिए शुक्रवार को जनसुनवाई रखी गई थी ग्रामीणों ने इस जनसुनवाई का विरोध करते हैं सुबह 5:00 बजे से मुख्य गेट को रोक के रख लिया और सुनवाई में जाने वाले अन्य ग्रामीणों को रोका।
छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित बैलाडीला की सबसे ऊंची पहाड़ी नंदिराज के उत्खनन को लेकर भी आदिवासियों ने अडानी का विरोध किया था जिसमें अडानी ग्रुप को वापस हटाना पड़ा था।

बता दे की अप्रैल 2018 में तत्कालीन पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल ने तमनार में ही पदयात्रा करते हुए जनसुनवाई का विरोध किया था। अब लोगों का कहना है कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया बनने के बाद शासन के तरफ से किसी ने भी इस जनसुनवाई का विरोध नहीं किया।


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