रायगढ़: जिला मुख्यालय से महज 40 से 45 किलोमीटर दूर बसा है भीकमपुरा और साल्हेओना गांव. यहां लगभग 40 परिवार ऐसे हैं, जो सांप को बीन पर नचाकर अपना पेट पालते हैं. सपेरा समाज में एक खास मान्यता यह है कि शादी-ब्याह के दौरान ये लोग अपनी बेटियों को दहेज में 14 जहरीले नागों का उपहार भेंट करते हैं. शासन के कड़े रुख और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रतिबंध के बाद इनकी परंपरा तो रुक गई, लेकिन सांप दिखाकर कुछ रुपए कमाना आज भी इनका पेशा बना हुआ है. सांपों की बदौलत इनका घर चलता है. हालात तो पहले से ही खराब हैं, लेकिन अब सपेरा परिवारों के सामने कोरोना संक्रमण काल में जीवकोपार्जन और पेट भरने की समस्या खड़ी हो गई है.
ईटीवी भारत ने जब सपेरों की बस्ती में जाकर हालात देखे, तो प्रशासन की योजनाएं धरातल पर दम तोड़ती नजर आई. ना रहने के लिए पक्का मकान, साफ-सफाई में अव्यवस्था, ना ही बेहतर इलाज की व्यवस्था. वहां का मंजर देखकर यही लगा कि प्रशासन इनके साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है. सपेरों ने बताया कि वन विभाग की सख्ती के बाद उन्होंने सांप पकड़ना बंद कर दिया है. सांप दिखाकर कुछ कमाई हो जाती थी. वह भी पूरी तरह से बंद हो गई है. बदले में प्रशासन से उम्मीद थी कि रोजगार मिलेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना से घर मिलेगा, राशन कार्ड बनेगा और बुढ़ापे में वृद्धावस्था पेंशन मिलेगी, लेकिन सारी उम्मीदें झूठी साबित हुई. लगभग दो दशक पहले ये परिवार कोरबा के वनांचल क्षेत्रों में निवास करते थे.
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पेट पालना मुश्किल
सपेरों ने बताया कि जब शादी होती थी, तब घर में बिटिया को 7 जोड़ी यानी 14 जहरीले नाग देते थे. इसके पीछे मान्यता यह थी कि बेटी के घर में कभी भी धन की कमी नहीं हो. जब भी आर्थिक तंगी होती थी, तब सांप दिखाकर वे अपना और अपने परिवार की गुजर-बसर बसर कर लेते थे. आज वे समाज की मुख्यधारा में लौटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ना शासन का सहयोग मिल रहा है और ना ही किसी जनप्रतिनिधि का. कोरोना संक्रमण ने जीना और बेहाल कर दिया है. घर में भूखे मरने की नौबत आ गई है. ऐसे में ये परिवार अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.