रायगढ़: एक ओर जहां जिले को बेटी 'बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान' के तहत सम्मानित किया गया है. वहीं दूसरी ओर जिले में गुमशुदा नाबालिग बालक-बालिकाओं के आकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. लोग आज भी अपने बच्चों के लौटकर आने का इंतेजार कर रहे हैं. जनवरी 2001 से मार्च 2019 तक 104 नाबालिगों की गुमशुदगी की सूचना दर्ज हुई है.
ये है आंकड़े
गुमशुदा नाबालिग बालक-बालिकाओं की आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. जिले में 2001 से मार्च 2019 तक कुल 104 नाबालिगों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई है. इसमें 22 लड़के और 82 लड़कियां शामिल हैं 22 लड़कों का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है जबकि 82 लड़कियों में से अभी तक पुलिस केवल 11 लड़कियों को ही खोज पाई है. ऐसे में पुलिस की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में आ रही है.
104 में से केवल 11 बालिकाओं का लगा पता
बता दें कि 2019 में 'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' के लिए रायगढ़ जिले को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया गया. ऐसे में रायगढ़ जिले में ही 71 नाबालिग बलिकाओं के गुम होने की सूचना चौंकाने वाली है. पूरे मामले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिषेक वर्मा ने बताया कि जिले में अब तक 104 गुमशुदगी की सूचना दर्ज हुई है, जिसमें से 82 नाबालिग बालिका जबकि 22 बालक हैं. इनमें से पुलिस अब तक केवल 11 बालिकाओं को ही अब तक खोज पाई है. आशंका है कि इनमें से ज्यादातर बच्चे मानव तस्करी का शिकार हुए या नशे के दलदल में धंस गए.
अगवा बच्चों में ज्यादातार आदिवासी बाहुल्य के बच्चे शामिल
मानवाधिकार संरक्षण के सदस्य जेस्सी फिलिप ने बताया कि ज्यादातर अगवा होने की शिकायतें धर्मजयगढ़ और लैलूंगा क्षेत्र से आती हैं क्योंकि आदिवासी बाहुल्य इलाका होने की वजह से शिक्षा का अभाव होता है और वहां पर लोग भोले भाले होते हैं जिससे लोगों के बहकावे में आसानी से आ जाते हैं और लालच में अपने घर और अपनी जगह को छोड़कर कहीं बाहर चले जाते हैं. उनका कहना है कि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि ग्रामीण हिम्मत करके अगर पुलिस के पास आ भी जाते हैं तो पुलिस के द्वारा उनकी शिकायत लिखी नहीं जाती. ऐसे में उनका मनोबल टूट जाता है और दोबारा वे पुलिस के पास आने से घबराते हैं.