कोई नहीं बांटना चाहता था राशन
राशन दुकान के बंद होने की वजह से घमंडी पंचायत में रहने वाले लोगों के भूखे मरने की नौबत आ गई थी, क्योंकि इस पंचायत में कोई भी शख्स राशन बांटने को तैयार नहीं था. नक्सलियों का खौफ तो इस गांव में हमेशा से बना रहता है.
करना पड़ता है पैदल सफर
दरअसल घमंडी पंचायत का राशन दुकान यहां से 45 किलोमीटर दूर सोनपुर गांव में खोला गया है, यहां रहने वाले लोग लगभग डेढ़ दिन तक पैदल सफर करते हैं, इसके बाद वो सोनपुर पहुंचते हैं, वहां से अपना राशन उठाते हैं और फिर पैरों से ही 45 किलोमीटर का फासला नापते हैं, तब कहीं जाकर वापस अपनी मंजिल तक पहुंच पाते हैं.
गांव में नहीं है सड़क
नारायणपुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में जाने के लिए रास्ता नहीं है, जिसकी वजह से यहां के लोगों को पैदल ही सफर करना पड़ता है. लोगों ने बताया कि, करीब 2 महीने तक उनके पास राशन नहीं था. गांव में कोई दुकान भी नहीं है, जहां से रोजमर्रा का सामान खरीदा जा सके.
60 किलोमीटर तक चलना पड़ता है पैदल
जिंदगी जीने के लिए जरूरी रसद जुटाने के लिए यहां के लोग 60 किलोमीटर दूर नारायणपुर मुख्यालय आते हैं और फिर नारायणपुर और घमंडी के बीच पड़ने वाले सोनपुर बाजार से वो जरूरी सामान खरीद कर अपने साथ ले जाते हैं.
जंगल ही है एकमात्र सहारा
खाने के लिए अनाज नहीं होने के कारण लोग जंगलों के सहारे जीने को मजबूर हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में न तो ज्यादा खेती होती है और न ही, रोजगार के कोई साधन हैं.
गांव में नहीं जाता कोई वाहन
लोग कड़ी मेहनत करके खुद ही फसल उगाते हैं, जो बहुत कम मात्रा में होती है. इन क्षेत्रों में न तो ट्रैक्टर जा पाता है ना ही कोई दूसरा उपकरण, जिसकी वजह से लोगों को अपने हाथों से काम करना पड़ता है.
नक्सलियों ने की थी हत्या
गांव में 113 राशन कार्डधारी हैं, जिन्हें सरकार की ओर से राशन मुहैया कराया जाता है. 19 फरवरी को नक्सलियों ने राशन देने वाले सेल्समैन की हत्या कर दी थी, उसके बाद से यहां कोई राशन बांटने वाला नहीं था. लोग राशन के लिए दर-दर भटकने को मजबूर थे.
दोबारा बंटना शुरू हुआ राशन
कड़ी धूप और पैदल यात्रा में छोटे दुधमुंहे बच्चों के साथ राशन खरीदने आते थे, जहां से उन्हें खाली हाथ ही वापस जाना पड़ता था. यह सिलसिला लगातार चल रहा था. सरकार ने बड़ी मुश्किल से राशन की दुकान खोली और दोबारा राशन बांटना शुरू किया.