नारायणपुर/कांकेर : पूरे छत्तीसगढ़ में 9 अगस्त का दिन विश्व आदिवासी दिवस के तौर पर मनाया जाता है.लेकिन बस्तर में आदिवासियों ने इस दिन को दूसरे तरीके से मनाया.सर्व आदिवासी समाज ने संभाग के कई जिलों में आक्रोश रैली निकालकर अपना विरोध जताया. नारायणपुर में बाइक रैली के बाद विशाल पदयात्रा निकाली गई. जिसमें समाज के पुरुष, महिला और युवतियों ने पारंपरिक वेशभूषा साथ कार्यक्रम में हिस्सा लिया.
क्यों मनाया गया आक्रोश दिवस ? : आपको बता दें कि पूरे देश में आदिवासियों के साथ आपराधिक घटनाएं हो रही है.आदिवासियों के शोषण और अत्याचार के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है. जिससे आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में है.इसके विरोध में सर्व आदिवासी समाज ने नाराजगी जाहिर की.साथ ही 9 अगस्त को आक्रोश दिवस की तरह मनाने का निर्णय लिया. आपको बता दें 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में आदिवासियों के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा के लिए हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. इस दौरान आदिवासी समाज ने अपना गुस्सा जाहिर किया.
देशभर में आदिवासियों के साथ हो रहे घटनाओं को लेकर इस बार आक्रोश रैली के साथ ही कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. सरकार से मांग है कि जितने भी आदिवासियों के ऊपर अत्याचार किया जा रहा है. उसे बंद किया जाए और तुरंत निराकरण किया जाए. -वासुदेव भारद्वाज, युवा प्रभाग अध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज
हमारे देश में महिलाओं के ऊपर अत्याचार हो रहा है. आदिवासियों के ऊपर उत्पीड़न हो रहा है.उनके जल जंगल जमीन को छीना जा रहा है. इसके प्रति सभी सरकार से हम आक्रोशित हैं. आक्रोश के रूप में सर्व आदिवासी दिवस का त्योहार को मना रहे हैं. -सदाराम ठाकुर संरक्षक सर्व आदिवासी समाज
कांकेर में भी मनाया गया आक्रोश दिवस : कांकेर जिला मुख्यालय में भी जिले के गांव-गांव से हजारों आदिवासी इकट्ठा हुए.इस दौरान कांकेर गोंडवाना भवन से मेला भाठा ग्राउंड तक आक्रोश रैली निकाली गई. आदिवासी समाज के नेता सुमेर सिंह नाग की माने तो भारत के कई राज्यों में आदिवासी समुदाय लगातार अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं. देशभर के आदिवासी समुदाय में दहशत और डर का माहौल पैदा किया जा रहा है. कई ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जो सभी राज्यों के लिए लगभग एक समान हैं. आदिवासी समुदाय को लगने लगा है कि मणिपुर की जातीय हिंसा की आग कहीं अन्य प्रदेशों में तो नहीं फैलने वाली है. UCC जैसे राष्ट्रव्यापी मुद्दे से आदिवासी समुदाय अपने लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं से कहीं दूर तो नहीं हो रहा है.इन्ही सब कारणों की वजह से आक्रोश रैली निकाली गई.
क्या है आदिवासी समाज की मांग : आक्रोश रैली के दौरान सर्व आदिवासी समाज ने सरकार से अपील की है.
- मणिपुर में आदिवासियों के साथ हो रही हिंसा,अमानवीय कृत्य,महिलाओं के साथ घोर आपत्तिजनक दुर्व्यवहार को रोका जाए. दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर राज्य में शांति बहाली की जाए.
- समान नागरिक संहिता बिल (यूसीसी) को आदिवासी वर्ग से पृथक रखा जाए. आदिवासी समुदाय अपने अलग रीति-रिवाज, परम्परा और रुढ़ि से शासित होने वाला समुदाय है. यूसीसी लागू होने पर आदिवासी संस्कृति और परंपरा विलुप्त होगी. पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा.
- पर्यावरण और वनों की सुरक्षा हेतु वन संरक्षण कानून में संशोधन किया जाए. अनुसुचित जनजातीय क्षेत्रों से पृथक करके संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित हो.
- PESA कानून के मंशा के मुताबिक हर राज्य सरकार आदिवासियों को अधिकार दे.पेसा कानून में किसी भी तरह का बदलाव ना करें.पेसा कानून में बनाए गए ग्राम सभा में सचिव नियुक्त करने का अधिकार मिले.
- स्थानीय भर्ती में स्थानीय लोगों को ही प्राथमिकता मिले,बाहरी लोगों को भर्ती में शामिल ना किया जाए.
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आदिवासी नेताओं की माने तो मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं के बीच कैसे विश्व आदिवासी दिवस हर्षोल्लास से मनाया जा सकता है. इसलिए देश के लगभग सभी आदिवासी समुदाय के लोग इस दिवस को आक्रोश रैली के रूप में मनाने के लिए मजबूर हो रहे हैं.