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गजब बांसुरी: हवा में घुमाने से निकलती है धुन - narayanpur flute

अभी तक आपने ऐसी बांसुरी देखी होगी जिसमें मुंह से फूंक मारने पर धुन निकलती है. लेकिन आज हम आपको ऐसी जादुई बांसुरी के बारे में बताएंगे जो सिर्फ हवा में घुमाने पर बजने लगती है. ये बांसुरी बिल्कुल अलग है. अबूझमाड़ की इस जादुई बांसुरी के दीवाने आपको विदेश में भी मिलेंगे.

magical flute of narayanpur
जादुई बांसुरी
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Published : Apr 1, 2021, 3:17 PM IST

Updated : Apr 2, 2021, 8:08 AM IST

नारायणपुर: अबूझमाड़ की जादुई बांसुरी, जो मुंह से नहीं बल्कि हवा से बजती है. अब आप ये सोच रहे होंगे कि ये बांसुरी बनती कहां है, इसे बनाता कौन है और इसे खरीदता कौन है...तो इन सारे सवालों के जवाब पाने के लिए आपको चलना होगा बस्तर के नारायणपुर. यहां के गढ़बेंगाल गांव में आपको ये बांसुरी बनाने वाले और इसकी कहानी सुनाने वाले मिलेंगे.

नारायणपुर की जादुई बांसुरी

गढ़बेंगाल गांव जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर है. यहां रहने वाले पंडीराम मंडावी वर्षों से बांस की कई कलाकृतियां बनाते हैं. इन्हीं में से एक ये बांसुरी भी है. पंडीराम बताते हैं कि उन्होंने बचपन में अपने पिता को ये बांसुरी बनाते देखा था. पहले घर में इस्तेमाल करने के लिए इसे बनाया जाता था. उनके पिता रात में जब घोटुल जाते थे, तब इसे बजाते थे, जिससे सांप और जंगली जानवर रास्ते से हट जाएं. बाद में धीरे-धीरे लोगों ने इसे पसंद करना शुरू किया. जब डिमांड आने लगी तब उनका परिवार हवा से बजने वाली ये बांसुरी बनाने लगा. आज देश ही नहीं विदेश में भी इसे पसंद करने वाले लोग हैं.

flute
बांसुरी

VIDEO: सिर चकरा जाएगा कांकेर की बैलेंसिंग रॉक देखकर

कैसे बनती है ये बांसुरी और क्या लगता है सामान ? पंडीराम मंडावी के बेटे बीरेंद्र प्रताप मंडावी ने इसकी पूरी प्रोसेस बताई है. आप भी पढ़िए-

  • एक बांसुरी बनाने के लिए दो से ढाई फीट की बांस की जरूरत होती है.
  • बांस काटने के लिए आरी का प्रयोग किया जाता है.
  • बांस को छीलने के लिए स्टूल का उपयोग किया जाता है.
  • फिनिसिंग देने के लिए आउटर लेयर की जरूरत होती है.
  • बांस में छेद करने के लिए लोहे के रॉड का प्रयोग किया जाता है.
  • उसके बाद इसमें आखिरी में एक अलग-अलग टूल्स का उपयोग किया जाता है.
  • चाकू के इस्तेमाल से बांस के बांसुरी में डिजाइन का काम किया जाता है.
  • आखिरी प्रोसेस बनाने के लिए कोयला और लकड़ी से जलती हुए एक भट्टी की जरूरत होती है.
    magical flute of narayanpur
    हवा में बांसुरी बताता शिल्पकार

क्या है प्रोसेस ?

सबसे पहले सूखा बांस लेना होता है. बांस में अंगूठे के बराबर छेद होना जरूरी है. उसके बाद आरी की मदद से दो फीट का बांस काटा जाता है. फिर छड़ी को गरम करके गठान को छेदा जाता है. इसके बाद चेक करते हैं कि हवा आर-पार हो रही है या नहीं. इसके बाद आउटर लेयर क्लीन की जाती है, जिससे डिजाइन बनाई जा सके. सफाई होने के बाद तीन वॉशर लगाए जाते हैं. वॉशर में वैक्स लगाया जाता है. इसके बाद अलग-अलग चाकू को कोयले में गरम किया जाता है फिर बासुंरी पर डिजाइन बनाई जाती है.

craftsman gives shape to the flute
बांसुरी को आकार देता शिल्पकार

कितना लगता है समय ?

एक बांसुरी बनाने में दो से तीन घंटे लगते हैं लेकिन अगर कोई एक्सपर्ट हो तो इसे एक घंटे में भी बनाया जा सकता है. जितना काम मिलता है, उसके हिसाब से लोगों को लगाया जाता है.

इटली और रूस में भी दीवाने हुए लोग

पंडीराम मंडावी बताते हैं कि उनके यहां बनाई गई बांसुरी दूर-दूर तक मशहूर है. साल 1999 में इटली देश में ले जाने पर लोगों ने इस बासुरी को काफी पसंद किया. इसकी मांग भी काफी ज्यादा है. साल 2000 में इस बांसुरी को दिल्ली में लगे एक एग्जिबिशन में दिखाया गया था. जिसके बाद इसकी डिमांड भी काफी ज्यादा हुई. लगभग सारी बांसुरी बिक गई थी. उन्होंने बताया कि अपनी जादुई बांसुरी और कला के प्रदर्शन के लिए वे दो बार इटली और एक बार रूस की भी यात्रा कर चुके हैं.

बढ़ रही है डिमांड
पंडीराम मंडावी के बेटे बीरेंद्र प्रताप मंडावी का कहना है कि वे बांस के अलावा लकड़ी का भी काम करते हैं. लकड़ी के बहुत से सामान बनाते हैं. उन्होंने बताया कि उनके पिता पंडीराम मंडावी दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों के साथ ही कई बार विदेश भी गए हैं. हस्तशिल्प विकास बोर्ड नई दिल्ली कोलकाता और मुंबई से अक्सर एक्सपोर्ट हाउस की ओर से इसकी मांग की जाती है. उसके बाद रूस भी लेकर गए थे. वहां भी इस बांसुरी को बहुत अधिक पसंद किया गया था.

विदेश में एक हजार रुपए तक बिकती है बांसुरी

बांस काटने-छाटने उसमें फिनीशिंग करने के बाद डिजाइन बनाने में काफी समय लगता है, लेकिन उस हिसाब से उसका दाम नहीं मिलता है. एक बांसुरी सौ से तीन सौ रुपए तक बिकती है. पहले बांसुरी में कोई डिजाइन नहीं बनाते थे लेकिन अब बांस में कलाकारी करके डिजाइन भी बनाते हैं. इससे बाजार में अच्छा रेस्पॉन्स है. भले ही अबूझमाड़ क्षेत्र में इसकी कीमत नहीं मिलती हो, लेकिन विदेशों में इसे एक हजार रुपए में बेचा जाता है. इटली के मिलान शहर में तो ये बांसुरी हर घर की शोभा है. नई दिल्ली के एक एक्सपोर्ट हाउस ने हाल ही में दो हजार बांसुरी का ऑर्डर दिया है.

अनूठी पहल: अब पेड़ों पर भी दिखेगी छत्तीसगढ़िया संस्कृति की झलक

अब बांसुरी बनाने वाले कारीगर बहुत ही कम रह गए हैं. नई पीढ़ी अब बांसुरी बनाने का काम नहीं करना चाहती हैं. पंडीराम मंडावी ने बताया कि बांस के कारीगर और भी लोग हैं, लेकिन बांसुरी बनाने में ज्यादा रुचि नहीं लेते है. वे बताते हैं कि उनके बेटे मान सिंह, बीरेंद्र प्रताप मंडावी बांसुरी बनाना सीख रहे हैं. वे भी अब बांसुरी बना लेते हैं. पंडीराम मंडावी का कहना है कि इस कला को और भी लोग सीखें और इसे जीवित रखे. उन्होंने शासन-प्रशासन से इस ओर कदम बढ़ाने की अपील की है.

नारायणपुर: अबूझमाड़ की जादुई बांसुरी, जो मुंह से नहीं बल्कि हवा से बजती है. अब आप ये सोच रहे होंगे कि ये बांसुरी बनती कहां है, इसे बनाता कौन है और इसे खरीदता कौन है...तो इन सारे सवालों के जवाब पाने के लिए आपको चलना होगा बस्तर के नारायणपुर. यहां के गढ़बेंगाल गांव में आपको ये बांसुरी बनाने वाले और इसकी कहानी सुनाने वाले मिलेंगे.

नारायणपुर की जादुई बांसुरी

गढ़बेंगाल गांव जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर है. यहां रहने वाले पंडीराम मंडावी वर्षों से बांस की कई कलाकृतियां बनाते हैं. इन्हीं में से एक ये बांसुरी भी है. पंडीराम बताते हैं कि उन्होंने बचपन में अपने पिता को ये बांसुरी बनाते देखा था. पहले घर में इस्तेमाल करने के लिए इसे बनाया जाता था. उनके पिता रात में जब घोटुल जाते थे, तब इसे बजाते थे, जिससे सांप और जंगली जानवर रास्ते से हट जाएं. बाद में धीरे-धीरे लोगों ने इसे पसंद करना शुरू किया. जब डिमांड आने लगी तब उनका परिवार हवा से बजने वाली ये बांसुरी बनाने लगा. आज देश ही नहीं विदेश में भी इसे पसंद करने वाले लोग हैं.

flute
बांसुरी

VIDEO: सिर चकरा जाएगा कांकेर की बैलेंसिंग रॉक देखकर

कैसे बनती है ये बांसुरी और क्या लगता है सामान ? पंडीराम मंडावी के बेटे बीरेंद्र प्रताप मंडावी ने इसकी पूरी प्रोसेस बताई है. आप भी पढ़िए-

  • एक बांसुरी बनाने के लिए दो से ढाई फीट की बांस की जरूरत होती है.
  • बांस काटने के लिए आरी का प्रयोग किया जाता है.
  • बांस को छीलने के लिए स्टूल का उपयोग किया जाता है.
  • फिनिसिंग देने के लिए आउटर लेयर की जरूरत होती है.
  • बांस में छेद करने के लिए लोहे के रॉड का प्रयोग किया जाता है.
  • उसके बाद इसमें आखिरी में एक अलग-अलग टूल्स का उपयोग किया जाता है.
  • चाकू के इस्तेमाल से बांस के बांसुरी में डिजाइन का काम किया जाता है.
  • आखिरी प्रोसेस बनाने के लिए कोयला और लकड़ी से जलती हुए एक भट्टी की जरूरत होती है.
    magical flute of narayanpur
    हवा में बांसुरी बताता शिल्पकार

क्या है प्रोसेस ?

सबसे पहले सूखा बांस लेना होता है. बांस में अंगूठे के बराबर छेद होना जरूरी है. उसके बाद आरी की मदद से दो फीट का बांस काटा जाता है. फिर छड़ी को गरम करके गठान को छेदा जाता है. इसके बाद चेक करते हैं कि हवा आर-पार हो रही है या नहीं. इसके बाद आउटर लेयर क्लीन की जाती है, जिससे डिजाइन बनाई जा सके. सफाई होने के बाद तीन वॉशर लगाए जाते हैं. वॉशर में वैक्स लगाया जाता है. इसके बाद अलग-अलग चाकू को कोयले में गरम किया जाता है फिर बासुंरी पर डिजाइन बनाई जाती है.

craftsman gives shape to the flute
बांसुरी को आकार देता शिल्पकार

कितना लगता है समय ?

एक बांसुरी बनाने में दो से तीन घंटे लगते हैं लेकिन अगर कोई एक्सपर्ट हो तो इसे एक घंटे में भी बनाया जा सकता है. जितना काम मिलता है, उसके हिसाब से लोगों को लगाया जाता है.

इटली और रूस में भी दीवाने हुए लोग

पंडीराम मंडावी बताते हैं कि उनके यहां बनाई गई बांसुरी दूर-दूर तक मशहूर है. साल 1999 में इटली देश में ले जाने पर लोगों ने इस बासुरी को काफी पसंद किया. इसकी मांग भी काफी ज्यादा है. साल 2000 में इस बांसुरी को दिल्ली में लगे एक एग्जिबिशन में दिखाया गया था. जिसके बाद इसकी डिमांड भी काफी ज्यादा हुई. लगभग सारी बांसुरी बिक गई थी. उन्होंने बताया कि अपनी जादुई बांसुरी और कला के प्रदर्शन के लिए वे दो बार इटली और एक बार रूस की भी यात्रा कर चुके हैं.

बढ़ रही है डिमांड
पंडीराम मंडावी के बेटे बीरेंद्र प्रताप मंडावी का कहना है कि वे बांस के अलावा लकड़ी का भी काम करते हैं. लकड़ी के बहुत से सामान बनाते हैं. उन्होंने बताया कि उनके पिता पंडीराम मंडावी दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों के साथ ही कई बार विदेश भी गए हैं. हस्तशिल्प विकास बोर्ड नई दिल्ली कोलकाता और मुंबई से अक्सर एक्सपोर्ट हाउस की ओर से इसकी मांग की जाती है. उसके बाद रूस भी लेकर गए थे. वहां भी इस बांसुरी को बहुत अधिक पसंद किया गया था.

विदेश में एक हजार रुपए तक बिकती है बांसुरी

बांस काटने-छाटने उसमें फिनीशिंग करने के बाद डिजाइन बनाने में काफी समय लगता है, लेकिन उस हिसाब से उसका दाम नहीं मिलता है. एक बांसुरी सौ से तीन सौ रुपए तक बिकती है. पहले बांसुरी में कोई डिजाइन नहीं बनाते थे लेकिन अब बांस में कलाकारी करके डिजाइन भी बनाते हैं. इससे बाजार में अच्छा रेस्पॉन्स है. भले ही अबूझमाड़ क्षेत्र में इसकी कीमत नहीं मिलती हो, लेकिन विदेशों में इसे एक हजार रुपए में बेचा जाता है. इटली के मिलान शहर में तो ये बांसुरी हर घर की शोभा है. नई दिल्ली के एक एक्सपोर्ट हाउस ने हाल ही में दो हजार बांसुरी का ऑर्डर दिया है.

अनूठी पहल: अब पेड़ों पर भी दिखेगी छत्तीसगढ़िया संस्कृति की झलक

अब बांसुरी बनाने वाले कारीगर बहुत ही कम रह गए हैं. नई पीढ़ी अब बांसुरी बनाने का काम नहीं करना चाहती हैं. पंडीराम मंडावी ने बताया कि बांस के कारीगर और भी लोग हैं, लेकिन बांसुरी बनाने में ज्यादा रुचि नहीं लेते है. वे बताते हैं कि उनके बेटे मान सिंह, बीरेंद्र प्रताप मंडावी बांसुरी बनाना सीख रहे हैं. वे भी अब बांसुरी बना लेते हैं. पंडीराम मंडावी का कहना है कि इस कला को और भी लोग सीखें और इसे जीवित रखे. उन्होंने शासन-प्रशासन से इस ओर कदम बढ़ाने की अपील की है.

Last Updated : Apr 2, 2021, 8:08 AM IST
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