महासमुंद: कोरोना संकट काल में महामुंद के शिक्षकों का वेतन और सरकारी स्कूलों के बच्चों को सूखा राशन तो जरूर मिल रहा है, लेकिन स्कूलों में काम करने वाले रसोइयों के घर का चुल्हा भी नहीं जल पा रहा है. आरोप है कि अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से रसोइए को 5 महीने उनका मानदेय नहीं मिला है. कोरोना महामारी की वजह से स्कूल संचालित नहीं हो रहे हैं. लिहाज़ा मिड डे मिल भी नहीं बनाया जा रहा है. ऐसे में स्कूलों में खाना बनाने वाले रसोइयों की मुश्किल बढ़ गई है.
1200 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से मानदेय पाने वाले रसोइयों को सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो चुका है. परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना भी अब उनके लिए मुश्किल हो गया है. रसोइए शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर मनमानी करने का आरोप लगा रहे हैं. वहीं आला अधिकारी रसोइयों के मानदेय नहीं मिलने की शिकायत ETV भारत के माध्यम से पता चलने की बात कहते हुए जल्द भुगतान करने की बात कर रहे हैं.
साहूकारों से कर्ज लेने को मजबूर रसोइए
महासमुंद जिले में 1 हजार 304 प्राथमिक स्कूल और 499 मिडिल स्कूल संचालित है. इन स्कूलों में बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन बनाने के लिए 3 हजार 698 रसोईया पदस्थ हैं. जिन्हें हर महीने 1200 रुपए का मानदेय दिया जाता है.
लॉकडाउन के कारण स्कूल संचालित नहीं है, लेकिन सूखा राशन पैक कराकर वितरित किया जा रहा है. लेकिन 5 महीने इन रसोइयों को एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी गई है, जिसके कारण इन खाना बनाने वाली महिलाओं के परिवार के सामने भूखे मरने की स्थिति आ गई है. जिसके बावजूद इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. इन रसोइयों को दो वक्त के खाने के लिए अब साहूकारों और दुकानदारों से मजबूरी में कर्ज लेना पड़ रहा है. उनका कहना है कि शिक्षा विभाग में मानदेय देने को लेकर शिकायत की गई है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.
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कोरोना महामारी में शासन गरीब तबके के लोगों को रोजगार, राशन और आर्थिक मदद करने का दावा कर रही है, लेकिन इन रसोइयों को 5 महीने से मानदेय नहीं मिलना प्रशासनिक कार्य प्रणाली और उनके दावों की पोल खोलती है.