महासमुंद: आज हमारी पहुंच चांद तक हो गई है. उस हिसाब से तमीज-ओ-तहजीब में भी हमें आगे होना चाहिए. लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. जात-पाति, ऊंच-नीच, आडंबर और अहंकार इंसानों को इंसानों से दूर कर रहा है. ऐसा ही मामला सोमवार को महासमुंद में देखने को मिला. धार्मिक आयोजन में विवाद होने पर समाज ने एक परिवार पर जुर्माना लगाया. जुर्माना नहीं दिया तो समाज ने हुक्का पानी बंद कर दिया. तकरीबन एक साल बाद उसी परिवार के मुखिया की मौत हो गई. देखने तो कई लोग आए लेकिन अर्थी को कंधा देने से पीछे हट गए. पति के दाह संस्कार के लिए जब कोई आगे नहीं आया तो पत्नी ने दूसरे गांव में ब्याही बेटियों को बुलाया.
बेटियों ने अर्थी को दिया कंधा, दाह संस्कार कराया: ये पूरा मामला महासमुंद के बागबाहरा थाना क्षेत्र का है. 75 साल के हिरण साहू की मौत के बाद उनका बेटे तामेश्वर साहू और दो शादीशुदा बेटियों ने उनकी अर्थी को कंधा देकर मुक्तिधाम पहुंचाया. भाई के साथ मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार भी किया. हैरानी की बात यह है कि पूरा गांव और रिश्तेदार इस मौके पर मूक बनकर खड़े रहे, लेकिन किसी ने भी इस परिवार की मदद नहीं की.
एक साल पहले समाज ने किया था हुक्का पानी बंद: पिछले साल अक्टूबर माह में एक धार्मिक आयोजन के दौरान सालडबरी गांव के पटेल का हिरण साहू और उनके परिवारवालों से विवाद हो गया है. इस विवाद के बाद परिवार को जुर्माना भरने के लिए कहा गया. जुर्माना न भरने पर पूरे परिवार का हुक्का पानी बंद करते हुए गांव से बहिष्कृत कर दिया गया.
दोनों बेटियों को बुलाकर कराया अंतिम संस्कार: लगभग 3 एकड़ की खेती से परिवार चलाने वाले इस परिवार की मानें तो जब घर के मुखिया की मौत हुई तो मदद के लिए कोई नहीं आया. मृतक हिरण साहू की पत्नी बीना साहू का कहना है कि जब पति की मौत के बाद कोई भी कंधा देने नहीं आया तो दूसरे गांवों से बेटियों को बुलाकर अंतिम संस्कार कराया. इसके बाद परिजनों ने पुलिस को मामले की जानकारी देकर मदद की गुहार लगाई. पूरे मामले में पुलिस ने कार्रवाई की बात कही है.
पीड़ित परिवार ने जानकारी दी है. जांच के बाद मामले में कार्रवाई की जाएगी. -आकाश राव, एएसपी, महासमुंद
और भी परिवार हैं समाज से बहिष्कृत: ग्राम पंचायत खड़ादरहा का आश्रित गांव सालडबरी के आबादी की बात की जाए तो लगभग 800 लोग यहां रहते हैं. इस गांव में साहू और आदिवासी लोग रहते हैं. इस पीड़ित परिवार के अलावा एक अन्य साहू परिवार और 8 आदिवासी परिवार भी गांव से बहिष्कृत हैं. हालांकि इसकी भनक जिला प्रशासन को नहीं है.