महासमुंद: छत्तीसगढ़ में दिवाली पर्व पर गौरी-गौरा पूजन का विशेष महत्व है. गौरी-गौरा पूजन महासमुंद जिले के नगर, कस्बों और गांवों में धूमधाम से मनाया गया. लक्ष्मी पूजन के दूसरे दिन गौरी-गौरा की बारात निकालकर गौरा चौक में मूर्तियां स्थापित की जाती है. जहां सभी लोग पहुंचकर भगवान शिव-पार्वती की पूजा कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं. गौरी-गौरा विवाह छत्तीसगढ़ की गोंड, बैगा जनजातिय समुदायों में खास महत्व रखता है. सयम के साथ इनकी यह परंपराएं समाज का हिस्सा हो गई. अब सभी समाज के लोग उत्साह पूर्वक इस उत्सव में शामिल होते हैं.
इस उत्सव के में लोग एक दिन पहले यानि दिवाली की शाम को सामूहिक रूप से लोक गीत गाते हुए गांव के तालाब जाते हैं. जहां से परंपरा के अनुसार विशेष मिट्टी लाई जाती है. फिर उस मिट्टी से रात में गौरी (पार्वती) और गौरा (शिव जी) की मूर्ति बनाकर सजाया जाता है. इसे कुंवारी लड़कियां सिर पर कलश सहित रखकर गांव का भ्रमण करती हैं.
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विवाह के दौरान गाया जाता है गौरी-गौरा गीत
गांव भ्रमण के बाद गौरी-गौरा विवाह का कार्यक्रम होता है. महिलाएं इस दौरान लोक गीत गाती हैं. जिसे गौरी-गौरा गीत कहा जाता है. परंपरा के अनुसार सभी रस्मों के बाद लोकगीत और गाजे बाजे के साथ फिर से भगवान गौरी-गौरा को लेकर गांव की सभी गलियों से जाया जाता है. फिर, मूर्तियों को तालाब में विसर्जित किया जाता है.