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SPECIAL: बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ, लहलहाने लगी फसल

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Published : Sep 8, 2020, 2:07 PM IST

Updated : Sep 9, 2020, 2:32 PM IST

महासमुंद के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने 17 एकड़ पथरीली और बंजर जमीन पर खेती कर उसका कायापलट ही कर दिया है. मनरेगा और कृषि विज्ञान केंद्र के प्रयासों से ग्रामीण किसानों की जिंदगी में एक नई रोशनी भर गई है.

farming on barren land
बंजर जमीन पर खेती

महासमुंद: जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर भलेश्वर गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और कृषि विज्ञान केंद्र के प्रयासों से 15 एकड़ क्षेत्र में पौधशाला तैयार की गई है. यहां पौधा नर्सरी संचालित की जा रही है. फलों का बगीचा भी तैयार किया गया है. कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक ने 5 साल की कड़ी मेहनत से 15 किस्म की फलों की पौधा शाला तैयार की है. कृषि विज्ञान केंद्र में काम कर रहे किसानों के लिए ये बंजर भूमि अब उपजाऊ होकर मील का पत्थर साबित हो रही है.

बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ

यहां 50 एकड़ का कृषि केंद्र पथरीला था, लेकिन कृषि के आधुनिक और प्राचीन तरीकों से इस भूमि को उपजाऊ बनाया गया और किसानों को खेती के नए तरीके सिखाए गए. जिससे किसानों को फयदा मिल रहा है.

मजदूरों को मिला रोजगार

कृषि विज्ञान केंद्र महासमुंद ने 5 साल पहले मनरेगा श्रमिकों की मदद से 34 लाख 9000 की लागत से बनी इस पौधशाला की शुरुआत की है. पिछले ढाई साल से इस पौधशाला में तैयार 1 लाख 59 हजार पौधे किसानों को बागवानी विस्तार के लिए दिए गए. इस परियोजना से पिछले 5 सालों में 402 परिवारों को 12 हजार 84 लोगों को रोजगार मिला है. कुल 20 लाख 18 हजार रुपए का मजदूरी भुगतान भी किया गया है.

Agricultural Science Center Mahasamund
कृषि विज्ञान केंद्र महासमुंद

पढ़ें: SPECIAL: आत्मनिर्भर बन रहीं गांव की महिलाएं, पसीने की सिंचाई से बंजर जमीन पर उगाई सब्जियां


भलेश्वर में 15 एकड़ भूमि का चिन्हांकन कर झाड़ियों की सफाई, गड्ढों की भराई और समतलीकरण कर सालों से बंजर पड़ी भूमि को उपयोग के लायक बनाया गया. साल भर बाद इस परियोजना के दूसरे चरण में उद्यानिकी पौधों के रोपण के लिए लेआउट तैयार कर गड्ढों की खुदाई की गई. इसमें वैज्ञानिक पद्धति अपनाते हुए गड्ढे इस तरह खोदे गए कि दो पौधों के बीच की दूरी के साथ ही दो कतार के बीच 5 मीटर की दूरी बनी रहे. प्रक्षेत्र को 15 भागों में विभाजित कर अलग-अलग फलदार पौधों का रोपण किया गया. इसमें अनार, अमरूद, नींबू, सीताफल, बेर, मूंगा, अंजीर, चीकू, आम, जामुन, कटहल, आंवला, बेल, संतरा, करौंदा, लसोड़ा और इमली के पौधों की रोपाई की गई.

Planting Women
पौधरोपण करती महिलाएं

किसानों को किया गया पौधों का वितरण

2018-19 में 4 हजार 793 किसानों को 65 हजार 700 पौधों का वितरण किया गया. 2019-20 में 13 हजार 72 किसानों को 1 लाख 1100 पौधों का वितरण किया गया. पिछले ढाई साल में 18 हजार 210 किसानों को 16 लाख से ज्यादा का पौधों का वितरण किया. इसके साथ ही चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 345 किसानों को 5 हजार 97 पौधों का वितरण किया गया. इसके अलावा गौठानों में भी पौधे लगाए गए हैं.

papaya tree
पपीते का पेड़

दलहन की फसल लगाकर जमीन को बनाया जा रहा उपजाऊ

पिछले ढाई साल में 1 लाख 69 हजार किसानों को पौधों का वितरण किया गया. कृषि विज्ञान केंद्र ने 3 बोर कराया था जो फेल हो चुके हैं. दो बोर पर पूरी खेती ग्राफ्टिंग विधि की मदद से की जा रही है. इस बंजर भूमि को खेती लायक बनाने के लिए झाड़ों के बीच में दलहन की फसल लगाई जा रही है. इससे मिट्टी में नाइट्रोजन की बढ़त होगी. इस बार 60 हजार पौधे तैयार हुए हैं. वहीं इस मिट्टी में नाइट्रोजन 120 किलो, 7 किलो से ज्यादा का फास्फोरस और 140 किलो के आसपास पोटाश का उपयोग किया गया है. इस पूरी योजना से जहां किसान को फायदा हो रहा है, वहीं करोना काल में मजदूरों को भी रोजगार मिल रहा है.

Laborers farming on barren land
बंजर जमीन पर खेती करते मजदूर

महासमुंद: जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर भलेश्वर गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और कृषि विज्ञान केंद्र के प्रयासों से 15 एकड़ क्षेत्र में पौधशाला तैयार की गई है. यहां पौधा नर्सरी संचालित की जा रही है. फलों का बगीचा भी तैयार किया गया है. कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक ने 5 साल की कड़ी मेहनत से 15 किस्म की फलों की पौधा शाला तैयार की है. कृषि विज्ञान केंद्र में काम कर रहे किसानों के लिए ये बंजर भूमि अब उपजाऊ होकर मील का पत्थर साबित हो रही है.

बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ

यहां 50 एकड़ का कृषि केंद्र पथरीला था, लेकिन कृषि के आधुनिक और प्राचीन तरीकों से इस भूमि को उपजाऊ बनाया गया और किसानों को खेती के नए तरीके सिखाए गए. जिससे किसानों को फयदा मिल रहा है.

मजदूरों को मिला रोजगार

कृषि विज्ञान केंद्र महासमुंद ने 5 साल पहले मनरेगा श्रमिकों की मदद से 34 लाख 9000 की लागत से बनी इस पौधशाला की शुरुआत की है. पिछले ढाई साल से इस पौधशाला में तैयार 1 लाख 59 हजार पौधे किसानों को बागवानी विस्तार के लिए दिए गए. इस परियोजना से पिछले 5 सालों में 402 परिवारों को 12 हजार 84 लोगों को रोजगार मिला है. कुल 20 लाख 18 हजार रुपए का मजदूरी भुगतान भी किया गया है.

Agricultural Science Center Mahasamund
कृषि विज्ञान केंद्र महासमुंद

पढ़ें: SPECIAL: आत्मनिर्भर बन रहीं गांव की महिलाएं, पसीने की सिंचाई से बंजर जमीन पर उगाई सब्जियां


भलेश्वर में 15 एकड़ भूमि का चिन्हांकन कर झाड़ियों की सफाई, गड्ढों की भराई और समतलीकरण कर सालों से बंजर पड़ी भूमि को उपयोग के लायक बनाया गया. साल भर बाद इस परियोजना के दूसरे चरण में उद्यानिकी पौधों के रोपण के लिए लेआउट तैयार कर गड्ढों की खुदाई की गई. इसमें वैज्ञानिक पद्धति अपनाते हुए गड्ढे इस तरह खोदे गए कि दो पौधों के बीच की दूरी के साथ ही दो कतार के बीच 5 मीटर की दूरी बनी रहे. प्रक्षेत्र को 15 भागों में विभाजित कर अलग-अलग फलदार पौधों का रोपण किया गया. इसमें अनार, अमरूद, नींबू, सीताफल, बेर, मूंगा, अंजीर, चीकू, आम, जामुन, कटहल, आंवला, बेल, संतरा, करौंदा, लसोड़ा और इमली के पौधों की रोपाई की गई.

Planting Women
पौधरोपण करती महिलाएं

किसानों को किया गया पौधों का वितरण

2018-19 में 4 हजार 793 किसानों को 65 हजार 700 पौधों का वितरण किया गया. 2019-20 में 13 हजार 72 किसानों को 1 लाख 1100 पौधों का वितरण किया गया. पिछले ढाई साल में 18 हजार 210 किसानों को 16 लाख से ज्यादा का पौधों का वितरण किया. इसके साथ ही चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 345 किसानों को 5 हजार 97 पौधों का वितरण किया गया. इसके अलावा गौठानों में भी पौधे लगाए गए हैं.

papaya tree
पपीते का पेड़

दलहन की फसल लगाकर जमीन को बनाया जा रहा उपजाऊ

पिछले ढाई साल में 1 लाख 69 हजार किसानों को पौधों का वितरण किया गया. कृषि विज्ञान केंद्र ने 3 बोर कराया था जो फेल हो चुके हैं. दो बोर पर पूरी खेती ग्राफ्टिंग विधि की मदद से की जा रही है. इस बंजर भूमि को खेती लायक बनाने के लिए झाड़ों के बीच में दलहन की फसल लगाई जा रही है. इससे मिट्टी में नाइट्रोजन की बढ़त होगी. इस बार 60 हजार पौधे तैयार हुए हैं. वहीं इस मिट्टी में नाइट्रोजन 120 किलो, 7 किलो से ज्यादा का फास्फोरस और 140 किलो के आसपास पोटाश का उपयोग किया गया है. इस पूरी योजना से जहां किसान को फायदा हो रहा है, वहीं करोना काल में मजदूरों को भी रोजगार मिल रहा है.

Laborers farming on barren land
बंजर जमीन पर खेती करते मजदूर
Last Updated : Sep 9, 2020, 2:32 PM IST
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