महासमुंद: कोरोना वायरस के संक्रमण के दौरान हुए लॉकडाउन में जहां घर लौटे मजदूरों के लिए मनरेगा योजना संजीवनी की तरह काम आई. वहीं इसी मनरेगा में जमकर भ्रष्टाचार का मामले भी सामने आ रहा है. ताजा मामला महासमुंद जिले के कापा गांव का है, जहां के ग्रामीणों की आंखें सड़क का इंतजार करते-करते थक गई है. ग्रामीणों का आरोप है कि 5 साल पहले लाखों रुपए की लागत से रोड पुलिया बनाने की स्वीकृति दी गी थी, लेकिन ग्राम पंचायत के पदाधिकारियों ने आधा-अधूरा काम करवा कर लाखों रुपए का भुगतान करवा लिया है. ग्रामीणों का कहना है कि शिकायत के बाद आला अधिकारियों ने कार्रवाई का आश्वाशन तो दिया था, लेकिन इस ओर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
महासमुंद मुख्यालय से 11 किलोमीटर की दूरी पर बसा ग्राम कापा में मनरेगा के तहत 7 लाख 56 हजार की लागत से पुल और सड़क निर्माण कराया जाना था, लेकिन गांव में अब तक न तो सड़क बनी और न ही पुल का निर्माण हुआ. ग्रामीण अधिकारियों से शिकायत करते-करते थक गए है. ग्रामीणों का कहना है कि सड़क का तो अता-पता नहीं है लेकिन कागजों में लेबर भुगतान के नाम पर 5 लाख 42 हजार का भुगतान किया गया है. इसी तरह 2015 में दोबारा टोरी नाला पर पुलिया निर्माण के नाम पर 8 लाख 19 हजार स्वीकृति मिली और मनरेगा के साइट पर काम भौतिक स्तर पर पूरा बताकर 68 हजार का भुगतान किया गया है पर पुलिया का कहीं अता-पता नहीं है.
पढ़ें: EXCLUSIVE : मजदूरों की रोटी 'डकार' गए जिम्मेदार, 9 महीने से नहीं मिली मनरेगा की मजदूरी
अधूरा विकास कार्य
इसी तरह कारा में पठान डबरी पहुंच मार्ग के लिए पुलिया का निर्माण कराया जाना था. 2016-2017 में पुलिया निर्माण के लिए 9 लाख 72 हजार की स्वीकृति दी गई थी जिसका काम भी पूरा दिखा कर 6 लाख 25 हजार का भुगतान करवा लिया गया है. ग्रामीणों का आरोप है कि ये पुल और सड़क केवल कागजों में ही नजर आ रहे है. यहां के लोग आज 4 साल बाद भी पानी के रास्ते आने-जाने को मजबूर है. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में दर्जनों विकास कार्य अधूरा पड़ा है पर कोई सुध लेने वाला नहीं है