कोरिया: जिले की गरीब आदिवासी महिलाएं अब सशक्त बनने की राह पर हैं. ये महिलाएं ना सिर्फ अब समूह से जुड़कर अपनी जिंदगी संवार रही है. बल्कि इसमें भी नई उपलब्धि हासिल कर रही है. ग्राम पंचायत लोहारी की महिलाएं प्राकृतिक चीजों से साबुन बना कर उन्हें बेचकर दिल्ली तक पहुंच रही है. महिलाओं ने कर्मा ब्रांड से साबुन तैयार किया. अब तक 2 हजार साबुन बेच भी चुकी हैं.
समूह की महिलाएं बना रही प्राकृतिक साबुन
जिले की आदिवासी महिलाएं समूह के माध्यम से साबुन बनाकर ना सिर्फ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक कर रही हैं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली में प्राकृतिक चीजों से बने साबुन का परचम भी लहरा चुकी हैं. दिल्ली में हुए कार्यक्रम में आदिवासी महिला समूह की तरफ से बनाए गए 1 हजार साबुन बेच भी चुकी हैं. जिसकी कुल कीमत 1 लाख रुपये थी. इसके अलावा 1 हजार साबुन अलग से भी बेच चुकी हैं. प्राकृतिक साबुन होने की वजह से इसकी डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है.
'समूह से जुड़कर बने आत्मनिर्भर'
समूह की महिला हिनाजरिया का कहना है कि समुह से जुड़कर उन्हें पहले साबुन बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. अब वे साबुन बनाने का काम कर रही है. जिससे उनकी आजीविका अच्छे से चल रही है. हिनाजरिया ने बताया कि पहले वे सिर्फ घर में ही रहती थी. अब इस योजना के माध्यम से जुड़कर घर से बाहर निकल रहे हैं. इस काम के जरिए वे अब अपना और परिवार का खर्च उठा पा रही है. उसने बताया कि अब उन्हें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है.
'जब घरवालों ने साथ छोड़ा तब समूह ने दिया सहारा'
धर्म कुंवर का कहना है कि आज वे इस मुकाम पर सिर्फ समूह की वजह से ही पहुंची है. ETV भारत से बात करते हुए धर्मकुंवर ने बताया कि उसके पति की मृत्यु होने के बाद परिवारवालों ने उसका साथ छोड़ दिया. उस पर छोटे बच्चों को पालने की भी जिम्मेदारी थी. खाने के भी लाले पड़ गए थे. गांव वालों और आस-पास के लोगों ने राशन दिया. धीरे-धीरे समूह से जुड़ती गई. अब आज साबुन बनाकर और दूसरे काम कर अच्छी तरह से अपने बच्चों का लालन-पालन कर रही है.
'महिलाओं में सहनशक्ति के साथ ही बेहतर प्लानिंग की क्षमता'
कृषि विज्ञान केंद्र से महिलाओं को दिया साबुन बनाने का प्रशिक्षण
कोरिया कृषि विज्ञान केंद्र से दो महिला स्वसहायता समूह जुड़े हुए है. लोहारी और सलका गांव की आदिवासी महिलाएं जुड़ी हुई है. पहले ये महिलाएं समूह से जुड़कर खाद बनाना, सब्जियां उगाना जैसे काम करती थी. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक रंजीत सिंह राजपूत ने बताया कि केंद्र की तरफ से महिलाओं को साबुन बनाने का काम सिखाया जा रहा है. जिसमें उन्हें काफी लाभ भी हो रहा है. हस्त निर्मित साबुन की मार्केट में काफी डिमांड है.
'कर्मा ब्रांड से बनाया जा रहा साबुन'
राजपूत ने बताया कि महिलाओं के हस्त निर्मित साबुन को कर्मा नाम का ब्रांड दिया गया है. जिसमें पूरी तरह से नेचुरल चीजों का इस्तेमाल हो रहा है. लेमनग्रास, सुगंध तेल, ऐलोवेरा, हल्दी का तेल इस्तेमाल कर रहे है. रंग भी नेचुरल लिए जा रहे हैं.
ऑनलाइन कमर्शियल साइट्स के जरिए मार्केटिंग
कर्मा ब्रांड से बने साबुन की मार्केटिंग ऑनलाइन कमर्शियल साइट्स के जरिए की जा रही है. जिससे देश-विदेश में इनके प्रोडक्ट आसानी से बेचे जा सके. खादी इंडिया की वेबसाइट और ट्राइफेड इंडिया की वेबसाइट के जरिए भी इनकी ब्रांडिंग हो रही है. इसके साथ ही लोकल स्तर पर भी प्रोडेक्ट बेचे जा रहे हैं.
दिल्ली में 1000 साबुन की बिक्री
शुरुआती दौर में ही इन प्राकृतिक साधनों की मांग बढ़ रही है. कुछ दिन पहले दिल्ली में हुए एक सेमिनार में महिला स्वसहायता समूह के बनाए कर्मा ब्रांड के 1000 साबुन बेचे गए. आने वाले समय में इन साबुनों की काफी मांग बढ़ेगी जिससे निश्चित ही इन महिलाओं का जीवन स्तर बदलेगा.