कोरिया: प्रदेश के ग्रामीण अंचलों के लोग छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. बारिश में गांव टापू में बदल जाते हैं लोग दाने-दाने को मोहताज होने लगते हैं, ठंड में ठिठुरन जान लेती है, तो गर्मी में बूंद-बूंद के लिए जंग लड़नी होती है. यही हाल जिले के कई गांवों का है.
जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर आदिवासी ग्राम पंचायत कछोड़ के लोग पानी की तलाश में जंगल जाते हैं और वहां से नाले में बह रहा पानी लेकर आते हैं. महिला हो, पुरुष हो या फिर बच्चा हर कोई जिंदगी गुजारने के लिए पैदल लंबी दूरी तय करता है फिर कहीं जाकर पानी नसीब होता है. यहां आदिवासी समाज के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए जंगल में भटक रहे हैं.
नाले का पानी लाते हैं ग्रामीण
ग्राम पंचायत कछोड़ के आश्रित ग्राम देवरा में सैंकड़ों की संख्या में आदिवासी पुरुष, महिला और बच्चे पानी की तलाश में जंगलों के बीच निकल जाते हैं और नाले से पानी लाकर अपनी जिंदगी बसर करते हैं.
जिम्मेदारों पर लगाए आरोप
यहां रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि कई साल पहले सरकार के द्वारा एक हैंडपंप लगाया गया था लेकिन आज तक उसकी रिपेयरिंग नहीं की जा सकी है. गांववालों का कहना है कि पानी की समस्या को लेकर किसी भी तरह की पहल जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने नहीं की.
ग्रामीणों को प्रशासन ने आश्वासन का झुनझुना पकड़ा दिया है. अफसर गांव में जल्द ही पानी के इंतजाम की बात कह रहे हैं.