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सादगी के साथ मनाया गया छत्तीसगढ़ का 'फ्रेंडशिप डे' भोजली तिहार

जनकपुर में पारंपरिक भोजली त्योहार सादगी के साथ मनाया गया. छत्तीसगढ़ में भोजली त्योहार को फ्रेंडशिप डे भी कहा जाता है. लोग कान में भोजली खोंसकर एक-दूसरे से दोस्ती करते हैं. इसे भोजली बदना कहते हैं.

traditional Bhojali festival
भोजली तिहार
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Published : Aug 5, 2020, 10:54 AM IST

कोरिया: भरतपुर विकासखंड के जनकपुर में पारंपरिक भोजली त्योहार सादगी के साथ मनाया गया. दोस्ती, आदर और विश्वास के इस प्रतीक पर्व पर भरतपुर के गांवों में खासा उत्साह नजर आया. बता दें कि भोजली गेहूं का पौधा होता है. इस पौधे को छोटे-छोटे टोकरी में मिट्टी डालकर बोया जाता है. इसके बाद इस टोकरी को घर के किसी अंधेरे कोने में रख दिया जाता है.

इसके बाद छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं सिर पर भोजली लेकर विसर्जन के लिए लोकगीत गाते हुए निकलती हैं. भोजली गीत छत्तीसगढ़ की और एक पहचान है. छत्तीसगढ़ की बहुएं ये गीत सावन के महीने में गाती हैं. सावन के महीना में चारों ओर हरियाली दिखाई पड़ती है. बहू कभी अकेली गाती है तो कभी सभी के साथ मिलकर. छत्तीसगढ़ के नन्हे बच्चे पलते हैं इस सुरीले माहौल में और इसीलिए वे उस सुर को ताउम्र अपने साथ लेकर चलते हैं, जिन्दगी जीते हैं इन्हीं सुरों के बल पर.

traditional Bhojali festival
छत्तीसगढ़ का 'फ्रेंडशिप डे' भोजली तिहार

पढ़ें-EXCLUSIVE: छत्तीसगढ़ी में रामचरितमानस 'छत्तीसगढ़ी के रमायन'

खेत के बीच से जब बच्चे गुजरते हैं स्कूल की ओर, खेतों में महिलाएं धान निराती है और गाती हैं भोजली यानी भो-जली. इसका अर्थ है भूमि में जल हो. इस गीत के माध्यम से यही कामना करती हैं महिलाएं. भोजली के जरिए प्रकृति की पूजा की जाती है.

''पानी बिना मछरी
पवन बिना धाने
सेवा बिना भोजली के
तरसे पराने''

इन वाक्यों का अर्थ है 'क्या पानी के बिना मछली रह सकती है? नहीं रह सकती, धान हवा के बिना नहीं रहता, ठीक उसी तरह हम भी भोजली देवी की सेवा करने के लिए तरसते हैं. महिलाएं धान, गेहूं, जौ या उड़द के थोड़े दाने को एक टोकनी में बोती है. उस टोकनी में खाद मिट्टी पहले रखती हैं. उसके बाद सावन के शुक्ल नवमी को बो देती हैं. जब पौधे उगते हैं, उसे भोजली देवी कहा जाता है.

भोजली सेवा करती हैं महिलाएं

इसका अर्थ है भोजली के पास बैठकर गीत गाना. महिलाएं रक्षाबन्धन के बाद भोजली को नदी में विसर्जित कर देती हैं. अगर नदी आसपास नहीं है तो किसी नाले या तालाब में भोजली को बहा दिया जाता है.

छत्तीसगढ़ में भोजली दोस्ती भी होती है

छत्तीसगढ़ में भोजली त्योहार को फ्रेंडशिप डे भी कहा जाता है. लोग कान में भोजली खोंसकर एक-दूसरे से दोस्ती करते हैं. इसे भोजली बदना कहते हैं. पूरी जिन्दगी दोस्ती के सूत्र में बंधने का वादा किया जाता है. भोजली को मंदिरों में चढ़ाया जाता है, बड़ों को देकर प्रणाम किया जाता है. आमतौर पर पौधे का रंग हरा होता है, लेकिन भोजली का रंग सुनहरा होता है. इस मौके पर खास व्यंजन बनते हैं, नृत्य और संगीत होता है.

कोरिया: भरतपुर विकासखंड के जनकपुर में पारंपरिक भोजली त्योहार सादगी के साथ मनाया गया. दोस्ती, आदर और विश्वास के इस प्रतीक पर्व पर भरतपुर के गांवों में खासा उत्साह नजर आया. बता दें कि भोजली गेहूं का पौधा होता है. इस पौधे को छोटे-छोटे टोकरी में मिट्टी डालकर बोया जाता है. इसके बाद इस टोकरी को घर के किसी अंधेरे कोने में रख दिया जाता है.

इसके बाद छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं सिर पर भोजली लेकर विसर्जन के लिए लोकगीत गाते हुए निकलती हैं. भोजली गीत छत्तीसगढ़ की और एक पहचान है. छत्तीसगढ़ की बहुएं ये गीत सावन के महीने में गाती हैं. सावन के महीना में चारों ओर हरियाली दिखाई पड़ती है. बहू कभी अकेली गाती है तो कभी सभी के साथ मिलकर. छत्तीसगढ़ के नन्हे बच्चे पलते हैं इस सुरीले माहौल में और इसीलिए वे उस सुर को ताउम्र अपने साथ लेकर चलते हैं, जिन्दगी जीते हैं इन्हीं सुरों के बल पर.

traditional Bhojali festival
छत्तीसगढ़ का 'फ्रेंडशिप डे' भोजली तिहार

पढ़ें-EXCLUSIVE: छत्तीसगढ़ी में रामचरितमानस 'छत्तीसगढ़ी के रमायन'

खेत के बीच से जब बच्चे गुजरते हैं स्कूल की ओर, खेतों में महिलाएं धान निराती है और गाती हैं भोजली यानी भो-जली. इसका अर्थ है भूमि में जल हो. इस गीत के माध्यम से यही कामना करती हैं महिलाएं. भोजली के जरिए प्रकृति की पूजा की जाती है.

''पानी बिना मछरी
पवन बिना धाने
सेवा बिना भोजली के
तरसे पराने''

इन वाक्यों का अर्थ है 'क्या पानी के बिना मछली रह सकती है? नहीं रह सकती, धान हवा के बिना नहीं रहता, ठीक उसी तरह हम भी भोजली देवी की सेवा करने के लिए तरसते हैं. महिलाएं धान, गेहूं, जौ या उड़द के थोड़े दाने को एक टोकनी में बोती है. उस टोकनी में खाद मिट्टी पहले रखती हैं. उसके बाद सावन के शुक्ल नवमी को बो देती हैं. जब पौधे उगते हैं, उसे भोजली देवी कहा जाता है.

भोजली सेवा करती हैं महिलाएं

इसका अर्थ है भोजली के पास बैठकर गीत गाना. महिलाएं रक्षाबन्धन के बाद भोजली को नदी में विसर्जित कर देती हैं. अगर नदी आसपास नहीं है तो किसी नाले या तालाब में भोजली को बहा दिया जाता है.

छत्तीसगढ़ में भोजली दोस्ती भी होती है

छत्तीसगढ़ में भोजली त्योहार को फ्रेंडशिप डे भी कहा जाता है. लोग कान में भोजली खोंसकर एक-दूसरे से दोस्ती करते हैं. इसे भोजली बदना कहते हैं. पूरी जिन्दगी दोस्ती के सूत्र में बंधने का वादा किया जाता है. भोजली को मंदिरों में चढ़ाया जाता है, बड़ों को देकर प्रणाम किया जाता है. आमतौर पर पौधे का रंग हरा होता है, लेकिन भोजली का रंग सुनहरा होता है. इस मौके पर खास व्यंजन बनते हैं, नृत्य और संगीत होता है.

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