सरगुजा: सामान्य बच्चों को पढ़ाने के लिए ज्यादा प्रयोग नहीं करना पड़ता. लेकिन मनेंद्रगढ़ के स्कूल में स्पेशल चिल्ड्रेन एंड इनट्यूशन के नाम से संचालित आशाएं संस्था में लगभग दो दर्जन ऐसे बच्चे पढ़ते हैं, जो मानसिक तौर पर कमजोर हैं ऐसे में इन बच्चों को पढ़ाने और जीने की कला सिखाने के लिए ऐसी शिक्षा की जरूरत होती है, जो पूरे धैर्य के साथ इन्हें आगे ले जा सके.
इन बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक शुभम साहू, बीते 2 साल से स्कूल में आने वाले मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों के लिए अपनी पूरी ऊर्जा और दक्षता के साथ काम कर रहे हैं. दरअसल इस स्कूल में आने वाले बच्चों में ऐसी कई समस्याएं होती हैं, जिनसे वो बाहर नहीं निकल पाते हैं. इन बच्चों के हाथ पैरों में अकड़न, खुद से बातें करना, पढ़ने और लिखने में समस्या के साथ-साथ सीखने और बोलने में दिक्कत होती है, जो इन्हें सामान्य बच्चों से अलग करती है.
पूरी ऊर्जा के साथ कराते हैं पढ़ाई
ऐसे में इन बच्चों को सिखाने के लिए न केवल एक शिक्षक का गुणी होना जरूरी है, बल्कि उस शिक्षक में पूरी तरह से इन बच्चों को आत्मसात करने उन्हें आगे बढ़ाने की उत्सुकता भी होनी चाहिए. स्कूल में पढ़ाने वाले शुभम बताते हैं कि 'इन बच्चों को वो अपनी पूरी ऊर्जा के साथ सिखाते और पढ़ाते हैं, जिससे कम से कम यह बच्चे अपनी जरूरतों को बिना किसी सहयोग के पूरा कर सकें.
बच्चों को पढ़ाने के लिए छोड़ दी सरकारी नौकरी
इतना ही नहीं शुभम शिक्षकीय कार्य के लिए इतने समर्पित हैं कि रायपुर में आकांक्षा मानसिक दिव्यांग स्कूल की नौकरी छोड़ ग्रामीण क्षेत्र मनेंद्रगढ़ में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने शैक्षणिक कार्य के प्रति समर्पित हैं.
तारीफ करते नहीं थकते लोग
स्कूल के संचालक की बात करें तो समाज के प्रति उनकी ओर से दिया गया सहयोग यहां के लोगों की जुबान पर है. दरअसल स्कूल के अध्यक्ष सुधीर का का बेटा मानसिक रूप से दिव्यांग है. उन्होंने कई राज्यों में जाकर इलाज की कोशिश की लेकिन हर जगह से निराश होने के बाद सुधीर ने अपने सभी परिवारजनों के साथ मिलकर एक ऐसी संस्था की शुरुआत कर दी है जिसमें उनके बच्चे के जैसे ही 22 और बच्चे आते हैं.