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एक राशन कार्ड नहीं बना पा रही सरकार, कंदमूल खाने को मजबूर 75 साल का बुजुर्ग और उसका परिवार - शिवभजन सिंह

कोरिया के मनेंद्रगढ़ में रहने वाले शिवभजन कई सालों से कंदमूल खाकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे है. 75 वर्षीय शिवभजन आज तक सिस्टम की मार सह रहे है. समय के साथ कई नई योजनाएं आई, लेकिन एक भी इस बुजुर्ग के झोपड़ी तक नहीं पहुंच पाई.

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Published : Jun 27, 2020, 9:45 PM IST

कोरिया: छत्तीसगढ़ सरकार गरीबों के कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाने का दावा कर रही है. कोरोना संकट के वक्त केंद्र सरकार 'वन नेशन-वन राशन कार्ड' की योजना लेकर आई है. प्रदेश के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत दावा करते हैं कि राज्य में कोई भूखे पेट नहीं सोएगा लेकिन शिवभजन की जिंदगी इन तमाम वादों और दावों पर करारा तमाचा है. कोरिया जिले क् मनेंद्रगढ़ के रहने वाले शिवभजन को सरकार 10 साल में एक राशन कार्ड मुहैया नहीं करा पाई है, सरकारी योजनाएं तो दूर की बात हैं. नतीजा ये है कि परिवार के साथ 75 साल का ये बुजुर्ग कंदमूल खा कर गुजर-बसर कर रहा है.

75 वर्षीय शिवभजन पर सिस्टम की मार

शिवभजन के पास घर तो है, लेकिन वो कब गिर जाए पता नहीं. उनके पास न तो राशन कार्ड है और न ही घर में खाने के लिए राशन. लंबे समय से शिवभजन का परिवार कंदमूल और रिश्तोदारों-पड़ोसियों से मिले खाने के सहारे जिंदगी काट रहा है. शिवभजन की एक बेटी है, जो चल-फिर नहीं सकती है. वे बताते हैं, 10 साल पहले उनके पास राशन कार्ड था, जिसे नया राशन कार्ड बनाने के नाम पर जमा करा लिया गया है, लेकिन 10 साल बाद भी उनका नया राशन कार्ड नहीं बना. जिससे उनके सामने अपना और अपने बच्चों का पेट पालने की परेशानी खड़ी हो गई है.

पढ़ें: SPECIAL: बालोद में मजदूरों के हक पर डाका, मनरेगा में घपले से मजदूर परेशान

10 साल से नहीं मिला राशन कार्ड

शिवभजन बताते हैं कि 10 साल पहले जमा राशन कार्ड नहीं मिला है. घर में कोई कमाने वाला नहीं है. ऐसे में जंगलों से मिले कंदमूल खाकर वो और उनका परिवार जिंदा है. शिवजभन के घर के पास थोड़ी जमीन है, जिसपर कभी कुछ उगा लेते हैं, जिससे साल में महीने, दो महीने के लिए परिवार को राशन मिल जाता है. शिवभजन की माली हालत इतनी खराब है कि मिट्टी के घर के ऊपर वे छप्पर भी डालने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में उनका घर कब गिर जाएगा पता नहीं. आर्थिक कमजोरी के साथ शिवभजन अब शारीरिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे हैं, ढलती उम्र में शिवभजन की आंखों ने भी अब साथ देना लगभग छोड़ दिया है.

सरकारी मदद की आस

धुंधली होती नजरों के साथ अब शिवभजन सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. ढलती उम्र और गरीबी में शिवभजन को अपनी दिव्यांग बेटी को पालने की चिंता सता रही है. शिवभजन सरकारी नुमाइंदे से राशन कार्ड के लिए गुहार लगा रहे हैं. जिससे कि उन्हें दो वक्त की रोटी मिल जाए.

पढ़ें: SPECIAL : अंधकार में उज्ज्वला योजना, आज भी लकड़ियों से जल रहा घरों में चूल्हा

दिव्यांग बेटी का पति ने छोड़ा साथ

शिवभजन बताते हैं, उनकी बेटी की शादी हुई थी. उसके दो बच्चे भी हैं, लेकिन शादी के बाद वो विकलांगता के कारण चल नहीं पाई और उसके पति ने उसका साथ नहीं दिया. बीच मझधार में उसका पति उसे छोड़कर चला गया, जिसके बाद उसकी भी सारी जिम्मेदारी शिवभजन पर ही आ गई.

इधर, मामले में जब मनेंद्रगढ़ के SDM से बात की गई तो उन्होंने बताया कि करोनाकाल में शासन की तरफ से सबको 10 किलो चावल बांटा जा रहा है. इसके अलावा जल्द ही शिवभजन को राशन कार्ड भी दे दिया जाएगा. इसके अलावा पटवारी से कहकर मकान का निरिक्षण भी कराया जाएगा और अगर कोई क्षति हुई है तो मुआवजा दिया जाएगा.

कोरिया: छत्तीसगढ़ सरकार गरीबों के कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाने का दावा कर रही है. कोरोना संकट के वक्त केंद्र सरकार 'वन नेशन-वन राशन कार्ड' की योजना लेकर आई है. प्रदेश के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत दावा करते हैं कि राज्य में कोई भूखे पेट नहीं सोएगा लेकिन शिवभजन की जिंदगी इन तमाम वादों और दावों पर करारा तमाचा है. कोरिया जिले क् मनेंद्रगढ़ के रहने वाले शिवभजन को सरकार 10 साल में एक राशन कार्ड मुहैया नहीं करा पाई है, सरकारी योजनाएं तो दूर की बात हैं. नतीजा ये है कि परिवार के साथ 75 साल का ये बुजुर्ग कंदमूल खा कर गुजर-बसर कर रहा है.

75 वर्षीय शिवभजन पर सिस्टम की मार

शिवभजन के पास घर तो है, लेकिन वो कब गिर जाए पता नहीं. उनके पास न तो राशन कार्ड है और न ही घर में खाने के लिए राशन. लंबे समय से शिवभजन का परिवार कंदमूल और रिश्तोदारों-पड़ोसियों से मिले खाने के सहारे जिंदगी काट रहा है. शिवभजन की एक बेटी है, जो चल-फिर नहीं सकती है. वे बताते हैं, 10 साल पहले उनके पास राशन कार्ड था, जिसे नया राशन कार्ड बनाने के नाम पर जमा करा लिया गया है, लेकिन 10 साल बाद भी उनका नया राशन कार्ड नहीं बना. जिससे उनके सामने अपना और अपने बच्चों का पेट पालने की परेशानी खड़ी हो गई है.

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10 साल से नहीं मिला राशन कार्ड

शिवभजन बताते हैं कि 10 साल पहले जमा राशन कार्ड नहीं मिला है. घर में कोई कमाने वाला नहीं है. ऐसे में जंगलों से मिले कंदमूल खाकर वो और उनका परिवार जिंदा है. शिवजभन के घर के पास थोड़ी जमीन है, जिसपर कभी कुछ उगा लेते हैं, जिससे साल में महीने, दो महीने के लिए परिवार को राशन मिल जाता है. शिवभजन की माली हालत इतनी खराब है कि मिट्टी के घर के ऊपर वे छप्पर भी डालने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में उनका घर कब गिर जाएगा पता नहीं. आर्थिक कमजोरी के साथ शिवभजन अब शारीरिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे हैं, ढलती उम्र में शिवभजन की आंखों ने भी अब साथ देना लगभग छोड़ दिया है.

सरकारी मदद की आस

धुंधली होती नजरों के साथ अब शिवभजन सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. ढलती उम्र और गरीबी में शिवभजन को अपनी दिव्यांग बेटी को पालने की चिंता सता रही है. शिवभजन सरकारी नुमाइंदे से राशन कार्ड के लिए गुहार लगा रहे हैं. जिससे कि उन्हें दो वक्त की रोटी मिल जाए.

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दिव्यांग बेटी का पति ने छोड़ा साथ

शिवभजन बताते हैं, उनकी बेटी की शादी हुई थी. उसके दो बच्चे भी हैं, लेकिन शादी के बाद वो विकलांगता के कारण चल नहीं पाई और उसके पति ने उसका साथ नहीं दिया. बीच मझधार में उसका पति उसे छोड़कर चला गया, जिसके बाद उसकी भी सारी जिम्मेदारी शिवभजन पर ही आ गई.

इधर, मामले में जब मनेंद्रगढ़ के SDM से बात की गई तो उन्होंने बताया कि करोनाकाल में शासन की तरफ से सबको 10 किलो चावल बांटा जा रहा है. इसके अलावा जल्द ही शिवभजन को राशन कार्ड भी दे दिया जाएगा. इसके अलावा पटवारी से कहकर मकान का निरिक्षण भी कराया जाएगा और अगर कोई क्षति हुई है तो मुआवजा दिया जाएगा.

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