एमसीबी: सीतामढ़ी में माता के प्राचीन मंदिर में भक्तों का जमावड़ा नवरात्र के मौके पर इन दिनों देखने को मिल रहा है. एमसीबी विकासखंड भरतपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत हरचोका क्षेत्र में राम वनगमन पथ का एक हिस्सा सीतामढ़ी है. ये एक प्राचीन धार्मिक स्थान है. नवरात्रि के मौके पर सुबह से भक्तों की भीड़ माता के दर्शन के लिए उमड़ती रहती है. यह जगह राम वन गमन के पर्यटन स्थल के रूप में इतिहास में भी दर्ज है. छतीसगढ़ में प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और सीता माता के पहले प्रवेश के रूप में इस जगह को जाना जाता है. मवई नदी के किनारे पत्थरों को काटकर सीतामढ़ी बना है, जहां साल भर लोगों का आना जाना लगा रहता है.
सालों से नहीं हुआ कोई बदलाव: ऐसा नहीं है कि मंदिर के रखरखाव के लिए सरकारी राशि स्वीकृत नहीं हुई है. लेकिन उस करोड़ों की राशि से मंदिर की मरम्मत और उसकी व्यवस्था में कितना पैसा खर्च हुआ, ये किसी को भी नहीं पता. मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि "हम जब से मंदिर में दर्शन करने आ रहे हैं, तब और आज की स्थिति में कोई अंतर नहीं है." सरकार राम गमन पथ के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन सीतामढ़ी के लिए खर्च किए गए पैसे कहां गए, ये किसी को नहीं पता. आज भी मंदिर के वही हालत हैं, जो आज से 10 साल पहले थे. ऐसे में आप सहज ही अंदाजा लगा सकते है कि शासकीय पैसों का किस तरह बंदरबांट किया गया होगा.
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भोजन के लिए रुके थे भगवान राम: एक अन्य श्रद्धालु का कहना है कि "यहां 60 साल से माता जी के दर्शन करने आ रहा हूं. माता रानी हर कष्ट को हर लेती हैं. कोई कहीं से भी आए. अच्छी जगह है. वनवास काल में यहां भगवान राम, सीता, लक्ष्मण भोजन लिए रुके थे."
सीता राम वनवास का पहला चौमास यहीं बीता: मंदिर के पुजारी बताते हैं कि "हमारी 3 पीढ़ियां यहां पूजा करती आ रही हैं. श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी का प्रथम चौमास यहीं बीता है. श्रीराम ने भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का निर्माण किया, गौरी मैया, सातों बहिनिया को बनाया. सीतामढ़ी हरचोका के नाम से प्रसिद्ध है. सीता रसोइया भी बना हुआ है. सीता रसोइया में ओखली था. उस जमाने में सीता मैया धान कूट कर अपने हाथों से श्री राम लक्ष्मण को भोजन कराती थीं. राम वन गमन को बहुत पैसा दिया गया है लेकिन यहां कुछ भी नहीं बन पाया है. यहां सालों से विकास नहीं हुआ है. यही कारण है कि कई लोग इस स्थान के बारे में जानते तक नहीं."