कोरिया: सरकारी सिस्टम के आगे मौत के साये में देश का भविष्य गढ़ते यहां शिक्षक भी मजबूरी की जाल में ऐसे फंसे हैं, जैसे इनके लिए आगे कुआं और पिछे खाई की स्थिति हो. अपनी जान बचाने के लिए खुद स्कूल न आएं तो लापरवाह और अगर जान हथेली पर रख स्कूल आ जाएं तो बच्चों पर मांडराते खतरे से बेपरवाह. लापरवाह, बेपरवाह जैसे तमगे इन्हें तुरंत दे दिए जाते हैं, लेकिन कोई उस सिस्टम तक नहीं पहुंचता है जो सही में इसके लिए जिम्मेदार हैं.
डर के साये में पढ़ रहे 110 बच्चे
कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ विकासखंड के रोझी गांव में हर रोज डर के साये में 110 बच्चे पढ़ने को मजबूर हैं. वादा हर कोई कर रहा है, लेकिन लेकिन हालात आज तक नहीं सुधरे. यहां के शिक्षक बताते हैं, जिले में ऐसा कोई दफ्तर नहीं, जहां उन्होंने हाजिरी न दी हो, लेकिन किसी जिम्मेदार के कान पर जूं तक नहीं रेंगा. शिक्षकों के साथ बच्चों के परिजनों ने स्कूल भवन के लिए भी न जाने कहां-कहां फरियाद लगा चुके हैं, लेकिन उन्हें भी आश्वासन के अलावा आज तक और कुछ नहीं मिला.
अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी बदहाल है शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा में अभूतपूर्व बदलाव और विश्व गुरु का दंभ भरने वाली सरकार कहती है कि उसने शिक्षा के लिए अरबों रुपये बहा दी है, लेकिन कोरिया जिले के रोझी गांव तक उन पैसों की धारा कब कत पहुंचेगी ये तो वहीं बता सकते हैं. फिलहाल यहां की जमीनी हकिकत को देख ऐसा कुछ नहीं लगा जिससे यहां के बच्चे कह सकें कि स्कूल चलें हम.