एमसीबी: एमसीबी में इंसानी बस्तियां अधिक होने के कारण जंगल कम होते जा रहे हैं. यही कारण है कि जंगली जानवर अक्सर इन क्षेत्रों में बस्तियों में आकर तांडव मचाते हैं. जिससे इंसान और वन्य जीवों के बीच संघर्ष होते है. कई बार या तो जानवर मर जाते हैं या फिर इंसानों की मौत हो जाती है. बात अगर साल 2023 की करें तो 4 माह भी नहीं हुए हैं 4 लोगों की जान जा चुकी है.
राज्य गठन के बाद से अब तक 37 लोगों की मौत: छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से लेकर अब तक वन्यप्राणियों के हमले से वनमंडल मनेंद्रगढ़ अंतर्गत कुल 37 लोगों की जान जा चुकी हैं. मृतकों में 26 पुरूष, 10 महिलाएं और 1 मासूम बच्ची शामिल है. सबसे अधिक 28 मौतें भालू के हमले से हुई है. हाथी और तेंदुए के हमले से 3-3 और सियार और बाघ के हमले से 1-1 जानें गई है. विभाग की ओर से मृतक के परिजनों को मुआवजा भी दिया गया. कुल 1 करोड़ 44 लाख रुपए की मुआवजा राशि मृतकों के परिजनों को दी गई थी.
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183 वन्य जीवों की गई जानें: राज्य गठन के बाद से अब तक इस क्षेत्र में 183 वन्य जीवों की मौत हो चुकी है. सड़क दुर्घटना, अवैध शिकार, करंट, स्वाभाविक मौत, हादसे, आपसी लड़ाई, बीमारी जैसे कारणों से हाथी को छोड़कर 183 अन्य वन्य जीवों की मौतें हुई है. आंकड़ों के मुताबिक पिछले 23 सालों में 41 लकड़बग्घा, 5 जंगली सुअर, 4 नीलगाय, 72 भालू, 7 हिरण, 6 तेंदुआ, 37 चीतल, 3 कोटरी, 1 चिंकारा, 1 भेड़िया, 2 बंदर, 1 मोर, 2 कबर बिज्जू और 1 सियार मरे हैं. सबसे अधिक भालुओं की मौत हुई है. दूसरे नंबर पर लकड़बग्घा और तीसरे नंबर में चीतल शामिल है.
जंगलों पर दबाव बढ़ा: मामले में वनमंडलाधिकारी वनमंडल मनेंद्रगढ़ लोकनाथ पटेल ने कहा कि "जंगल पर निश्चित तौर पर दबाव बढ़ा है. जंगलों में लोग बस गए हैं. जिससे वन्य जीवों का इंसानों से सामना हो रहा है. इसके लिए समझाइश देने के साथ मॉनीटरिंग भी की जाती है. इसके अलावा रिहायशी क्षेत्र में वन्य जीवों के प्रवेश पर खतरे को भांपते हुए लोगों को आंगनबाड़ी, स्कूल सुरक्षित स्थानों पर स्थापित किया जाता है. सचेत रहने के लिए मुनादी भी कराई जाती है. स्वाभाविक मौत को छोड़कर कोई भी वन्य जीव किसी हादसे का शिकार न हो, इसके लिए जिला लेवल पर कमेटी बनी हुई है. हर 2 माह में बैठक होती है, जिसमें वाइल्ड लाइफ के संबंध में चर्चा की जाती है. बिजली वायर हाथी के निर्धारित हाइट से ऊंचा रखना होता है. केबल की ऊंचाई कम होने पर विभाग को सूचना दी जाती है. इसके अलावा जिन कुंओं का उपयोग नहीं हो रहा उसे बंद करने को कहा गया है. ग्रामीणों को कुंए की हाइट बढ़ाने के लिए कहा गया है."