कोरबा : कोरबा में कई पर्यटन स्थल ऐसे हैं,जो खूबसूरत होने के बावजूद सतरेंगा जैसे प्रसिद्ध नहीं हो सके हैं. वर्ल्ड टूरिज्म डे के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं.कोरबा के ऐसे पर्यटन स्थल जहां जाकर आप फुरसत के पल बिता सकते हैं.लेकिन सबसे पहले बात मिनी गोवा के नाम से मशहूर सतरेंगा की.
सतरेंगा : कोरबा जिला मुख्यालय से सतरेंगा की दूरी 35 किलोमीटर है. बांगो डैम बनने के बाद सतरेंगा डूबान क्षेत्र में आया. पहाड़ की चोटी शिवलिंग के आकार की है.इसलिए इसे महादेव पहाड़ की संज्ञा दी जाती है. मौजूदा समय में यहां बोटिंग करने के साथ ही पर्यटकों के रुकने के लिए रिजॉर्ट भी है. अब यहां क्रूज चलाने की तैयारी चल रही है. इसलिए यहां आकर लोगों को मिनी गोवा का अहसास होता है. दूर तक फैले पानी को देखकर आपको यहां किसी समुद्री किनारे का अहसाल होगा.
बुका : इको फ्रेंडली पर्यटन स्थल बुका कटघोरा वन मंडल के अंदर आता है. जो कटघोरा अंबिकापुर मार्ग पर है. यहां मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता, लेकिन आप प्रकृति से कनेक्ट हो सकते हैं. वन विभाग ने यहां ग्लास हाउस बनाया है. यहां भी पानी की बड़ी झील है.जिससे कुछ दूर पर गोल्डन आइलैंड भी है. बुका और गोल्डन आइलैंड को मिलाकर लगभग 35 छोटे-छोटे टापू यहां मौजूद हैं. इस जगह को और भी डेवलप किया जा रहा है.गोल्डन आइलैंड में उगते सूरज को देखना बेहद खास मौका है.क्योंकि सुबह ऐसा लगता है मानो सुनहरे रंग की चादर बिछी हो.इसी वजह से इसे गोल्डन आईलैंड कहा जाता है.
देवपहरी और रानी झरिया: यह दोनों पर्यटन स्थल सतरेंगा के आसपास ही हैं. सतरेंगा जाते हुए रास्ते में रानी झरिया का झरना है. मुख्य सड़क से लगभग 4 किलोमीटर जंगल के भीतर ट्रैकिंग कर जाना पड़ता है. ट्रैकिंग का एक्सपीरियंस आपको हिमाचल के वादियों का अहसास कराता है. रानी झरिया का पानी बेहद ठंडा है. इससे आगे बढ़ने पर आपको गोविंद कुंज जलप्रपात देवपहरी में मिलेगा. यह जलप्रपात भी बेहद मनोरम है. हालांकि बरसात के मौसम में यह थोड़ा खतरनाक भी हो जाता है.
कुदुरमाल : कुदुरमाल एक छोटा सा गांव है. जो कोरबा शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है. यहां संत कबीर के शिष्य में से एक की समाधि है. जो लगभग 500 वर्ष पुरानी है. इसलिए इसका ऐतिहासिक महत्व है. यहां संकट मोचन हनुमान का मंदिर है. मंदिर के पास चट्टान के नीचे एक गुफा भी है. जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. कबीर पंथियों के बीच ये जगह काफी प्रसिद्ध है.
कनकी : कनकी कोरबा जिले का एक गांव है. जो हसदेव नदी के तट पर बसा है. इसे धार्मिक स्थल के तौर पर जाना जाता है. जिसे आसपास के लोग छत्तीसगढ़ का बाबा धाम भी कहते हैं. कनकेश्वर धाम चक्रेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. यह माना जाता है कि कनकी मंदिर में की स्थापना 1857 के आसपास की गई थी. मंदिर के पत्थरों में कई खूबसूरत चित्र हैं. भगवान शिव पार्वती की यहां कई मूर्तियां हैं. पौराणिक मान्यताएं भी हैं कि मड़वारानी और कनकेश्वर धाम के बीच गहरा संबंध है. कनकी मंदिर के आसपास पेड़ों पर हर साल प्रवासी पक्षी आते हैं. जो साउथ ईस्ट एशिया से यहां आकर प्रजनन के बाद वापस लौट जाते हैं.
तुमान : तुमान कटघोरा से 10 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा गांव है. जो उत्तर पश्चिम दिशा में है. प्राचीन इतिहास में ऐसा उल्लेख है कि तुमान हैहैवंश के राजाओं की राजधानी थी. यहां एक प्राचीन शिव मंदिर भी है. ऐसी मान्यता है कि रत्न देव प्रथम, कलचुरी वंश ने 21वीं सदी में इसका निर्माण करवाया था. सरकार ने इसे विशेष संरक्षित स्थल भी घोषित किया है.
चैतुरगढ़ : चैतुरगढ़ को छत्तीसगढ़ का कश्मीर कहा जाता है. जो जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. 360 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ के ऊपर यहां मां महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है. जिसका निर्माण पृथ्वी देव प्रथम ने किया था. पुरातत्वविद् इसे मजबूत प्रकृति किले की संज्ञा देते हैं. इस स्थल के विषय में भी कई मान्यताएं हैं. यहां तेंदुआ और शेर भी देखे जा चुके हैं. महिषासुर मर्दिनी के 12 हाथों की मूर्ति गर्भ गृह में स्थापित है. मंदिर से 3 किलोमीटर दूर शंकर की गुफा है. गुफा एक सुरंग की तरह है और 25 फीट लंबी है.यह एक बेहद खूबसूरत पर्यटन स्थल है. जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है.
केंदई जलप्रपात : केंदई जलप्रपात कटघोरा-अंबिकापुर राज्य राजमार्ग पर स्थित है. यह एक बेहद मनोरम पर्यटन स्थल है. इस जलप्रपात की ऊंचाई 75 फिट है. जो एक बेहद खूबसूरत झरने का निर्माण करती है. बरसाती मौसम की छोड़कर बाकी समय झरना कुछ सूख जाता है. हालांकि केंदई की खूबसूरती अब भी बरकरार है. यह छत्तीसगढ़ के सबसे खूबसूरत जलप्रपात में से एक है.
कोसगई मंदिर : कोसगई मंदिर का निर्माण 500 वर्ष पूर्व किया गया था. मान्यता है कि देवी यहां के छत का निर्माण नहीं चाहती. कई बार छत बनाने की कोशिश हुई, लेकिन वह नहीं बना. ये प्रदेश का इकलौता देवी मंदिर है जहां सफेद ध्वज चढ़ाया जाता है.इसे 52 शक्तिपीठों में से एक माना है. 200 फीट पहाड़ की ऊंचाई पर मंदिर का निर्माण किया गया है. ऐसी मान्यता है कि छुरी के राजा जिनकी राजधानी रतनपुर में थी. कोसगई में अपना खजाना छुपाकर रखते थे. गांव वालों की इस विषय में ऐसी कई मान्यताएं हैं. माना जाता है कि यहां अब भी कोई न कोई खजाना जरूर छिपा हुआ है.