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World Environment Day: औद्योगिक प्रदूषण के बाद भी कम नहीं हुई कोरबा में वनों की खूबसूरती - छत्तीसगढ़ का नागलोक

कोरबा भले ही प्रदूषण वाला जिला हो, लेकिन इस क्षेत्र में प्राकृतिक वन संपत्ति भरपूर है. औद्योगिक प्रदूषण के बाद भी कोरबा में वनों की खूबसूरती बरकरार रहना, जैव विविधता के जानकारों के लिए भी रिसर्च का विषय है.

Korba District
कोरबा जिला
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Published : Jun 5, 2023, 7:46 PM IST

कोरबा जिला का वन्य क्षेत्र

कोरबा: कोरबा का नाम औद्योगिक प्रदूषण के लिए जाना जाता है. बावजूद इसके कोरबा के घने वन अपने आप में समृद्ध जैव विविधता का उदाहरण हैं. कोरबा के कुल क्षेत्रफल का 51.4 फीसद भाग घने वनों से घिरा है. जिले में वनों का इतना बड़ा भाग मौजूद होना अपने आप में बेहद खास है. यहां के वन अपने आप में हरियाली समेटे हुए है, जो क्वालिटी ऑक्सीजन तो देते ही हैं, साथ ही वर्षा को भी अपनी और आकर्षित करते हैं. इस जिले जैसा औद्योगिक प्रदूषण और समृद्ध जैव विविधता का तालमेल शायद ही कहीं देखने को मिले. एक्सपर्ट भी इस बात पर कई बार हैरान हो जाते हैं. हालांकि जानकार इसे और भी संरक्षित करने की बात कहते हैं.

समृद्ध जैव विविधता बरकरार रखने की चुनौती : हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला उत्खनन का विरोध हो रहा है. इस विरोध का कारण कोरबा के समृद्ध वन को सुरक्षित रखना है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के ह्रदय में बसा हसदेव अरण्य क्षेत्र को पूरे मध्य भारत का फेफड़ा कहा जाता है, जहां से लोगों को सांसे मिलती है. कोरबा के वनों का भी इसमें बेहद अहम योगदान है. मध्य भारत के फेफड़े में कोरबा के वनों का प्रतिशत भी शामिल है. जरूरत है तो इन वनों को और भी संरक्षित करने की ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इनसे ऑक्सीजन मिलता रहे और समृद्ध जैव विविधता हमेशा के लिए बरकरार रहे.

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सतरेंगा में 1400 साल पुराना पेड़ : सतरेंगा में 14 सौ साल पुराना महाकाल वृक्ष आज भी मौजूद है. यह प्रकृति का एक अनुपम उपहार है. ग्राम वासी इसकी पूजा-अर्चना करते हैं. इसे ग्रामदेवता की संज्ञा दी गई है. यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पर्यावरण के समृद्ध होने का ठोस प्रमाण है. जानकार इसे बेहद खास बताते हैं, विशाल महाकाल वृक्ष को सतरेंगा में डूबान के किनारे देखा जा सकता है.

कई बार मिला है ऊदबिलाव : जिले में आमतौर पर पानी में रहने वाला जलीय जीव ऊदबिलाव मिला है. इसे विश्व स्तर पर विलुप्त प्रजाति भी माना गया है, लेकिन जिले के कटघोरा वन मंडल के क्षेत्र में ऊदबिलाव पाया जाता रहा है. बीते कुछ सालों में ऐसे कई अवसर आए हैं जब ऊदबिलाव को यहां से रेस्क्यू किया गया और फिर जंगल में आजाद किया गया है. इसका साइंटिफिक नेम यूरेशियन ऑटर है जो कि पानी में ही पाए जाते हैं. इनके बारे में यह कहा जाता है कि ये विशेष जीव ठंडे प्रदेश में ही पाए जाते हैं, कोरबा जैसे जिले में इनका पाया जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है.

यहां नागराज का बसेरा :जशपुर को छत्तीसगढ़ का नागलोक कहा जाता है. वहीं, दुनिया के सबसे जहरीले सांप किंग कोबरा को नागराज कहा जाता है जो कि कोरबा जिले में पाया जाता है. कोरबा छत्तीसगढ़ का इकलौता ऐसा जिला है जहां किंग कोबरा का स्थाई निवास है. जानकार कोरबा में किंग कोबरा की मौजूदगी से चौंक जाते हैं. साथ ही ये भी कहते हैं कि ये मुमकिन नहीं. लेकिन यह तथ्य बिल्कुल सच है. पिछले कुछ सालों के दौरान यहां पर नियमित अंतराल पर किंग कोबरा मिलते रहे हैं. कोरबा वनमंडल का पसरखेत वन परीक्षेत्र इसका प्रमाण है. वन विभाग ने किंग कोबरा के रहवास को संरक्षित और विकसित करने के लिए एक प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा है.

हाथियों को भाता है कोरबा का जंगल: हाथियों के उत्पात और इसके द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाए जाने के किस्से खूब शेयर किए जाते हैं. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कोरबा के जंगल इतने समृद्ध और घने हैं कि हाथियों को यह जंगल बेहद पसंद है. पहले कोरबा वनमंडल के कुछ इलाके ही ऐसे थे जहां हाथी विचरण करते थे. लेकिन अब उनका दायरा काफी बढ़ चुका है. कटघोरा वनमंडल में भी हाथियों ने एक तरह से अपना स्थाई निवास बना लिया है. यहां के जंगल हाथियों को बेहद अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं. जिले में लेमरु हाथी रिजर्व भी बनाया जा रहा है. इसका काफी काम भी हो चुका है, जिसके बनने के बाद से हाथियों का भी स्थाई निवास यहां विकसित होगा. हाथी मानव द्वंद पर भी लगाम लगेगा.

कनकेश्वर आते हैं विदेशी मेहमान: कोरबा के कनकेश्वर धाम को वैसे तो शिव की आराधना के लिए जाना जाता है. लेकिन यह स्थान विदेशी मेहमानों के प्रवास के लिए भी काफी विख्यात है. एशियन ओपन बिल्ड स्टॉर्क प्रजाति के खूबसूरत पक्षी यहां हर साल प्रजनन के लिए आते हैं. कनकी के आसपास का वातावरण उन्हें बेहद लुभाता है. वह मिलों का सफर तय कर कनकी आते हैं, यहां के पेड़ पर अपना घोंसला बनाते हैं. प्रजनन कर अंडों से बच्चों के बाहर निकलने का इंतजार करते हैं. फिर अपने बच्चों के साथ वापस मीलों की उड़ान भर वापस लौट जाते हैं. हर साल प्रवासी पक्षी यहां आते हैं. सितंबर के आसपास वह यहां पहुंच जाते हैं और इसके बाद वापस लौट जाते हैं. पक्षी हर साल कनकी धाम में मौजूद पेड़ पर उसी स्थान पर ही अपना घोंसला बनाते हैं. वर्षों से यह सिलसिला यूं ही चला आ रहा है.

जंगल में नाचते हैं मोर: कोरबा के घने जंगल जानकारों के लिए शोध का विषय भी है. तितलियों की कई अनोखी प्रजातियों के लिए भी कोरबा को जाना जाता है. लेमरू क्षेत्र के जंगल में अक्सर मोर को नाचते हुए भी देखा गया है. जहां अपने अतरंगी अंदाज में मोर मनमोहक नृत्य करते हैं. जिसे देखने सैलानी भी दूर-दूर से यहां आते हैं. यह समृद्ध जैव विविधता और खूबसूरत वनो के कारण ही संभव हुआ कि मोर को भी दुर्लभ नृत्य करते हुए देखा गया है.

जानवरों की मौजूदगी: कोरबा के जंगलों में भालू की भी मौजूदगी है. बालको क्षेत्र में तो कई बार भालू रिहायशी इलाकों के करीब भी चले आते हैं. हालांकि इससे बचने की भी जरूरत है. लेकिन भालू भी कोरबा के जंगलों में काफी तादाद में मौजूद हैं. चैतुरगढ़ के जंगलों में हाल ही में तेंदुआ को भी देखा गया था. यहां तेंदुआ के निशान भी मिले हैं. समृद्ध जैव विविधता के कारण ही कोरबा के जंगलों में अलग-अलग प्रजाति के जानवर बड़ी तादाद में मौजूद है. कुल मिलाकर ये जिला वन संपदा से परिपूर्ण है.

कोरबा जिला का वन्य क्षेत्र

कोरबा: कोरबा का नाम औद्योगिक प्रदूषण के लिए जाना जाता है. बावजूद इसके कोरबा के घने वन अपने आप में समृद्ध जैव विविधता का उदाहरण हैं. कोरबा के कुल क्षेत्रफल का 51.4 फीसद भाग घने वनों से घिरा है. जिले में वनों का इतना बड़ा भाग मौजूद होना अपने आप में बेहद खास है. यहां के वन अपने आप में हरियाली समेटे हुए है, जो क्वालिटी ऑक्सीजन तो देते ही हैं, साथ ही वर्षा को भी अपनी और आकर्षित करते हैं. इस जिले जैसा औद्योगिक प्रदूषण और समृद्ध जैव विविधता का तालमेल शायद ही कहीं देखने को मिले. एक्सपर्ट भी इस बात पर कई बार हैरान हो जाते हैं. हालांकि जानकार इसे और भी संरक्षित करने की बात कहते हैं.

समृद्ध जैव विविधता बरकरार रखने की चुनौती : हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला उत्खनन का विरोध हो रहा है. इस विरोध का कारण कोरबा के समृद्ध वन को सुरक्षित रखना है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के ह्रदय में बसा हसदेव अरण्य क्षेत्र को पूरे मध्य भारत का फेफड़ा कहा जाता है, जहां से लोगों को सांसे मिलती है. कोरबा के वनों का भी इसमें बेहद अहम योगदान है. मध्य भारत के फेफड़े में कोरबा के वनों का प्रतिशत भी शामिल है. जरूरत है तो इन वनों को और भी संरक्षित करने की ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इनसे ऑक्सीजन मिलता रहे और समृद्ध जैव विविधता हमेशा के लिए बरकरार रहे.

World Environment Day 2023: अंबिकापुर के पर्यावरण संरक्षक गंगाराम 1985 से कर रहे संघर्ष
World Environment Day: अम्बिकापुर का SLRM मॉडल पर्यावरण संरक्षण में निभा रही बड़ी भूमिका, जानिए क्यों है खास
World Environment Day: पर्यावरण शुद्ध रखना बड़ी चुनौती, जानिए क्यों मनाया जाता है विश्व पर्यावरण दिवस

सतरेंगा में 1400 साल पुराना पेड़ : सतरेंगा में 14 सौ साल पुराना महाकाल वृक्ष आज भी मौजूद है. यह प्रकृति का एक अनुपम उपहार है. ग्राम वासी इसकी पूजा-अर्चना करते हैं. इसे ग्रामदेवता की संज्ञा दी गई है. यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पर्यावरण के समृद्ध होने का ठोस प्रमाण है. जानकार इसे बेहद खास बताते हैं, विशाल महाकाल वृक्ष को सतरेंगा में डूबान के किनारे देखा जा सकता है.

कई बार मिला है ऊदबिलाव : जिले में आमतौर पर पानी में रहने वाला जलीय जीव ऊदबिलाव मिला है. इसे विश्व स्तर पर विलुप्त प्रजाति भी माना गया है, लेकिन जिले के कटघोरा वन मंडल के क्षेत्र में ऊदबिलाव पाया जाता रहा है. बीते कुछ सालों में ऐसे कई अवसर आए हैं जब ऊदबिलाव को यहां से रेस्क्यू किया गया और फिर जंगल में आजाद किया गया है. इसका साइंटिफिक नेम यूरेशियन ऑटर है जो कि पानी में ही पाए जाते हैं. इनके बारे में यह कहा जाता है कि ये विशेष जीव ठंडे प्रदेश में ही पाए जाते हैं, कोरबा जैसे जिले में इनका पाया जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है.

यहां नागराज का बसेरा :जशपुर को छत्तीसगढ़ का नागलोक कहा जाता है. वहीं, दुनिया के सबसे जहरीले सांप किंग कोबरा को नागराज कहा जाता है जो कि कोरबा जिले में पाया जाता है. कोरबा छत्तीसगढ़ का इकलौता ऐसा जिला है जहां किंग कोबरा का स्थाई निवास है. जानकार कोरबा में किंग कोबरा की मौजूदगी से चौंक जाते हैं. साथ ही ये भी कहते हैं कि ये मुमकिन नहीं. लेकिन यह तथ्य बिल्कुल सच है. पिछले कुछ सालों के दौरान यहां पर नियमित अंतराल पर किंग कोबरा मिलते रहे हैं. कोरबा वनमंडल का पसरखेत वन परीक्षेत्र इसका प्रमाण है. वन विभाग ने किंग कोबरा के रहवास को संरक्षित और विकसित करने के लिए एक प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा है.

हाथियों को भाता है कोरबा का जंगल: हाथियों के उत्पात और इसके द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाए जाने के किस्से खूब शेयर किए जाते हैं. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कोरबा के जंगल इतने समृद्ध और घने हैं कि हाथियों को यह जंगल बेहद पसंद है. पहले कोरबा वनमंडल के कुछ इलाके ही ऐसे थे जहां हाथी विचरण करते थे. लेकिन अब उनका दायरा काफी बढ़ चुका है. कटघोरा वनमंडल में भी हाथियों ने एक तरह से अपना स्थाई निवास बना लिया है. यहां के जंगल हाथियों को बेहद अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं. जिले में लेमरु हाथी रिजर्व भी बनाया जा रहा है. इसका काफी काम भी हो चुका है, जिसके बनने के बाद से हाथियों का भी स्थाई निवास यहां विकसित होगा. हाथी मानव द्वंद पर भी लगाम लगेगा.

कनकेश्वर आते हैं विदेशी मेहमान: कोरबा के कनकेश्वर धाम को वैसे तो शिव की आराधना के लिए जाना जाता है. लेकिन यह स्थान विदेशी मेहमानों के प्रवास के लिए भी काफी विख्यात है. एशियन ओपन बिल्ड स्टॉर्क प्रजाति के खूबसूरत पक्षी यहां हर साल प्रजनन के लिए आते हैं. कनकी के आसपास का वातावरण उन्हें बेहद लुभाता है. वह मिलों का सफर तय कर कनकी आते हैं, यहां के पेड़ पर अपना घोंसला बनाते हैं. प्रजनन कर अंडों से बच्चों के बाहर निकलने का इंतजार करते हैं. फिर अपने बच्चों के साथ वापस मीलों की उड़ान भर वापस लौट जाते हैं. हर साल प्रवासी पक्षी यहां आते हैं. सितंबर के आसपास वह यहां पहुंच जाते हैं और इसके बाद वापस लौट जाते हैं. पक्षी हर साल कनकी धाम में मौजूद पेड़ पर उसी स्थान पर ही अपना घोंसला बनाते हैं. वर्षों से यह सिलसिला यूं ही चला आ रहा है.

जंगल में नाचते हैं मोर: कोरबा के घने जंगल जानकारों के लिए शोध का विषय भी है. तितलियों की कई अनोखी प्रजातियों के लिए भी कोरबा को जाना जाता है. लेमरू क्षेत्र के जंगल में अक्सर मोर को नाचते हुए भी देखा गया है. जहां अपने अतरंगी अंदाज में मोर मनमोहक नृत्य करते हैं. जिसे देखने सैलानी भी दूर-दूर से यहां आते हैं. यह समृद्ध जैव विविधता और खूबसूरत वनो के कारण ही संभव हुआ कि मोर को भी दुर्लभ नृत्य करते हुए देखा गया है.

जानवरों की मौजूदगी: कोरबा के जंगलों में भालू की भी मौजूदगी है. बालको क्षेत्र में तो कई बार भालू रिहायशी इलाकों के करीब भी चले आते हैं. हालांकि इससे बचने की भी जरूरत है. लेकिन भालू भी कोरबा के जंगलों में काफी तादाद में मौजूद हैं. चैतुरगढ़ के जंगलों में हाल ही में तेंदुआ को भी देखा गया था. यहां तेंदुआ के निशान भी मिले हैं. समृद्ध जैव विविधता के कारण ही कोरबा के जंगलों में अलग-अलग प्रजाति के जानवर बड़ी तादाद में मौजूद है. कुल मिलाकर ये जिला वन संपदा से परिपूर्ण है.

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