कोरबा : विष्णुदेव साय की कैबिनेट में जगह पाने वाले लखनलाल देवांगन की राजनीति किसी चमत्कारिक घटना से कम नहीं है. लखनलाल जब भी जीते तो पुराना मिथक टूटा है.फिर चाहे वो 7 बार के विधायक को हराना हो या फिर तीन बार के विधायक और सबसे मजबूत उम्मीदवार को चुनावी मैदान में पटखनी देना.लखनलाल कहीं भी पीछे नहीं रहे.
कौन हैं लखनलाल देवांगन ?: लखनलाल देवांगन का जन्म 12 अप्रैल 1962 को कोरबा में हुआ था. उनके पिता का नाम स्वर्गीय तुलसी राम देवांगन हैं. लखन लाल देवांगन ने बीए प्रथम वर्ष तक की शिक्षा हासिल की है. उनका विवाह 15 अक्टूबर 1982 को रामकुमारी देवांगन के साथ हुआ था. उनकी लखन लाल देवांगन के एक पुत्र और तीन पुत्रियो के पिता हैं.आईए जानते हैं लखनलाल देवांगन के राजनीतिक सफर को.
मुफलिसी में गुजरा जीवन : कोरबा के एक छोटे से वार्ड कोहड़िया में रहने वाले लखन का राजनीतिक सफर पार्षद से शुरू हुआ था. आज वो मंत्री बन गए हैं. एक समय ऐसा था जब लखन के पिता ने फुटपाथ पर दुकान लगाकर कपड़े बेचते थे. लखन भी इस व्यवसाय से जुड़े. परिवार ने विस्थापन का दंश भी झेला.लेकिन लखन ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा आएगा कि जिस फुटपाथ पर वो कपड़े बेच रहे हैं.वहां जनता का हुजूम उन्हें अपने कंधों पर बिठाएगा.
कोरबा जैसी मुश्किल सीट पर जीत का परचम : बीजेपी ने जब कोरबा विधानसभा की सीट से लखनलाल को मैदान में उतरा था. तब भी लोग यही कह रहे थे कि जयसिंह के सामने लखनलाल नहीं टिकेंगे .2018 में कटघोरा विधानसभा में चुनाव हारने के बाद लखनलाल का राजनीतिक करियर हाशिए पर चला गया था. लेकिन बीजेपी ने 2023 के विधानसभा चुनाव में सीट बदलकर कोरबा जैसी कठिन सीट से मैदान में उतारा.
कद्दावर मंत्री को हराया : कोरबा विधानसभा में पिछले तीन बार से जयसिंह अग्रवाल जीत रहे थे. 2018 से राजस्व मंत्रालय का दायित्व भी संभाला था. ऐसे बड़े नाम वाले जयसिंह अग्रवाल के खिलाफ लखन का चुनाव जीतना किसी चमत्कार से कम नहीं.कोरबा विधानसभा जैसी हाई प्रोफाइल सीट पर कांग्रेस के कद्दावर नेता राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल को लखनलाल देवांगन ने 25 हजार 629 वोट से हराया है.अब जिस तरह चुनाव जीतने को लेकर लोग आशंकित थे. ठीक उसी तरह की बातें उनके विधायक बनने के बाद भी हो रही थी. उनके समर्थक भी बीजेपी के दिग्गज नेताओं को छोड़कर लखनलाल के मंत्री बनने पर अचंभित हैं. सभी को चौंकाते हुए लखन ने मंत्री पद की शपथ ले ली है.
2013 में भी किया था चमत्कार : 2013 में भी लखनलाल देवांगन ने वरिष्ठ आदिवासी नेता और 7 बार के विधायक बोधराम कंवर को हराया था. लेकिन 2018 में बोधराम के बेटे पुरुषोत्तम कंवर से लखनलाल चुनाव हार गए थे. लखन लाल देवांगन कोरबा नगर पालिका निगम कोरबा के मेयर भी रहे हैं. लेकिन जब विधायक का टिकट मिला. तब उन्हें 2013 में कटघोरा भेज दिया गया. तब भी लखन के बारे में कहा गया कि कटघोरा में वह चुनाव हार जाएंगे. लेकिन सबको चौंकाते हुए वो चुनाव जीत गए.
2018 में हार के बाद हाशिए में गई राजनीति : 2018 में उनके चुनाव हारने के बाद लखनलाल ने 5 साल तक वनवास काटा. इसके बाद 2023 में फिर उनकी सीट बदलकर वापस कोरबा लाया गया. हर जगह एक ही बात थी कि जयसिंह अग्रवाल का मुकाबला कैसे करेंगे.क्योंकि बीजेपी ने एक हारे हुए प्रत्याशी को तीन बार के विधायक के सामने खड़ा किया था.लेकिन मेहनत के आगे आशंकाएं धरी रह जाती है.चुनाव के नतीजे जब आए तो कद्दावर मंत्री का कद छोटा हो चुका था.क्योंकि एक बार फिर लखनलाल का सूरज परवान पर था.लखनलाल ने सारी संभावनाओं को दरकिनार करते हुए जयसिंह अग्रवाल का बोरिया बिस्तर गोल कर दिया था.अब लखनलाल को उनकी मेहनत का फल भी मिला है.
पार्षद से मंत्री तक का सफर : लखन ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत पार्षद के पद से की थी. जब कोरबा नगर पालिका निगम का गठन हुआ, तब साल 2000 से लेकर 2005 तक वह अपने निवास स्थान कोहड़िया से पार्षद निर्वाचित हुए. इसके बाद 2005 से लेकर 2010 तक वह नगर पालिका निगम कोरबा के महापौर निर्वाचित हुए. इसके बाद साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन पर भरोसा जताते हुए कटघोरा विधानसभा से टिकट दिया. लखनलाल ने 2013 का चुनाव जीता. कटघोरा से विधायक के साथ ही साथ वह संसदीय सचिव भी रहे. इसके बाद 2018 में लखनलाल कटघोरा से ही विधानसभा चुनाव हार गए.