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कोरबा में कहां से आया '10 का मुर्गा...' नारा, क्या है इसके पीछे की कहानी और चुनावों से कनेक्शन

'10 का मुर्गा खाओगे, ऐसी ही रोड पाओगे....' यह वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है, जो कोरबा का है. कोरबा में खस्ता सड़कों की हालत के मद्देनजर मतदाताओं पर तंज कसने और उन्हें जागरुक करने के लिए यह नारा दिया गया, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह नारा आया कहां से. अगर नहीं जानते हैं तो आइए हम आपको बताते हैं.

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10 का मुर्गा
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Published : Aug 7, 2021, 12:36 PM IST

Updated : Aug 7, 2021, 10:37 PM IST

कोरबा: '10 का मुर्गा खाओगे, ऐसी ही रोड पाओगे....' यह वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. वीडियो कोरबा में जर्जर सड़कों की हालत का विरोध कर रहे युवाओं का है. जो इलाके की बदहाल सड़कों के विरोध में यह अनोखा प्रदर्शन कर रहे हैं.

10 का मुर्गा

कोरबा के युवाओं के इस विरोध में इस्तेमाल की गई लाइनें '10 का मुर्गा खाओगे...' कहां से ली गई और क्यों ली गई. इसे हर कोई जानना चाहता है. आइए आपको बताते हैं कि इन लाइनों को ही युवाओं ने क्यों चुना? और उस नारे की शुरूआत कैसे हुई?.

कहां से आया नारा, '10 का मुर्गा...'

3 साल पहले 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के वक्त चुनावी चिकन का जायका लेने वाले मतदाताओं के लिए युवाओं ने यह नारा बनाया है. राज्य में विधानसभा चुनाव के वक्त राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए बहुत सारे प्रलोभन दिए. जिसमें एक था 10 का मुर्गा. इसमें मतदाताओं को एक खास सीरीज वाला 10 रुपए का नोट बांटा गया था. जिसके बारे में चिकन दुकान के संचालकों को पहले ही जानकारी दी गई थी. पार्टी कार्यकर्ताओं के माध्यम से यह नोट जनता तक पहुंचा दिए गए और जब लोग इस नोट को लेकर चिकन दुकान पर जाते तो उन्हें वहां से फ्री में 1 किलो चिकन मिलता था.

'आम' कार्यकताओं ने उठाया मुद्दा

जिसके बाद चुनावों के वक्त चिकन दुकानों पर मेले जैसा माहौल दिखाई दिया था. चुनावी चिकन का जायका लेने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती थी. हालांकि इस वक्त भी ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले को एक्सपोज किया था. जिसके बाद कुछ चिकन दुकानों को सील कर निर्वाचन आयोग के निर्देश पर कार्रवाई की गई थी, लेकिन चुनाव के बाद यह मामला शांत हो गया. अब जनसंगठन और आम आदमी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को फिर से जीवित कर दिया है.

खनिज न्यास से मिले थे 10 करोड़ रुपए

बारिश के मौसम में कोरबा की सड़कों का बुरा हाल है. शहर की सड़कों की स्थिति पिछले 2 साल से बेहद खराब हैं. इसे ठीक करने के लिए जिला खनिज न्यास मद से 10 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की गई थी. इस राशि से कोरबा शहर के आसपास की सड़कों को सुधारे जाने की योजना थी. निहारिका, कोसाबाड़ी, सुभाष चौक, आईटीआई चौक, टीपी नगर, रिकांडों चौक से लेकर रिस्दी तक की सड़कों की मरम्मत की जानी थी. कुछ सड़कों को छोड़ दिया जाए तो इस राशि से अधिकांश सड़कों की मरम्मत को पूरा किया जा चुका है, लेकिन पहली बरसात में डामरीकरण के बाद ही कई स्थानों पर सड़कों की सिल कोट उखड़ गई है. साथ ही बजरी सड़क पर बिखरने से लोगों को आवागमन में परेशानी हो रही है. महाराणा प्रताप चौक घंटाघर रोड का निर्माण अब तक पूरा नहीं हो सका है.

ये सड़कें मरम्मत के बाद भी बर्बाद

कोरबा के लोगों ने 10 का मुर्गे का जायका तो खूब लिया, लेकिन यह उन्हें अब पूरे 5 साल रूलाने वाला है. जिसके रूझान अब दिखने लगे हैं. कोरबा में 5 महीने पहले ही शहर के गौमाता चौक सीतामणी से बरबसपुर तक सड़क की मरम्मत हुई थी. जिस पर ढाई करोड़ खर्च हुए थे. अब पहली बारिश में ही सड़क पूरी तरह से उखड़ गई है.

8 साल बाद भी 800 मीटर का एप्रोच रोड नहीं बन सका

कोरबा में सबसे ज्यादा खराब पश्चिम क्षेत्र की सड़कें हैं. 8 साल पहले हसदेव नदी पर नदियाखाड़ के समीप गेरवा घाट पुल का निर्माण पूरा किया गया था. 13 करोड़ की लागत से 2013 में पुल का निर्माण पूरा हो गया, लेकिन इस पुल को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाले 800 मीटर के अप्रोच रोड का काम आज भी अधूरा है. 2 करोड़ रुपए से इस एप्रोच रोड का टेंडर भी हुआ. इसके बाद भी काम शुरू नहीं हो सका. मार्ग में डब्ल्यूबीएम और चौड़ीकरण का काम जरूर कराया गया है, लेकिन वाहनों के आवागमन के लिहाज से सड़क की स्थिति बेहद खराब है.

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दर्री बराज रोड बेहद खराब

दर्री बराज सड़क की लंबाई 606 मीटर और बैराज पुल की लंबाई 287 मीटर है. इस स्थान पर एक महीने पहले ही मरम्मत कराई गई थी. नियमानुसार रोड सिंचाई विभाग की है, लेकिन वाहनों का दबाव इतना ज्यादा है कि सिंचाई विभाग इसके रखरखाव में असमर्थ है. निगम क्षेत्र में होने के कारण जवाबदेही नगर निगम की भी है. महीने भर पहले यहां लाखों रुपए की लागत से डब्ल्यूबीएम कार्य कराया गया था. बरसात में वह भी धुल गई अब पश्चिम क्षेत्र की ओर जाने वाली यह सड़क भी बेहद जर्जर अवस्था में है. इस सड़क से पैदल चलना भी मुश्किल है.

यहां सिर्फ गड्ढे ही गड्ढे

रुमगड़ा चौक से बालको तक पहुंचाने वाली सड़क की हालत भी खराब है. यहां से रिंग रोड होकर गुजरना होता है. कुछ महीने पहले यहां आंदोलन की घोषणा हुई थी. बालको के आश्वासन के बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया, लेकिन सड़क अभी भी नहीं बनी है. शहर की सड़कों के साथ ही कटघोरा, पाली, छूरी, कुसमुंडा, बांकीमोंगरा की सड़कों की हालत भी ठीक नहीं है. उपनगरीय क्षेत्र की मुख्य सड़कें हो या कॉलोनी और बस्तियों की सड़क, सभी की स्थिति बेहद खराब है.

कोरबा में जर्जर इन सड़कों के लिए कई लोग खुलकर आवाज नहीं उठा पाते हैं. वह इसलिए क्योंकि उन्होंने चुनावों के वक्त 10 के मुर्गे का जायका जो लिया है. अब ऐसे में लालच में आकर मतदान करने वालों के कारण पूरा शहर परेशान हो रहा है और यह परेशानी न जाने कब तक रहेगी इसका कुछ पता नहीं.

कोरबा: '10 का मुर्गा खाओगे, ऐसी ही रोड पाओगे....' यह वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. वीडियो कोरबा में जर्जर सड़कों की हालत का विरोध कर रहे युवाओं का है. जो इलाके की बदहाल सड़कों के विरोध में यह अनोखा प्रदर्शन कर रहे हैं.

10 का मुर्गा

कोरबा के युवाओं के इस विरोध में इस्तेमाल की गई लाइनें '10 का मुर्गा खाओगे...' कहां से ली गई और क्यों ली गई. इसे हर कोई जानना चाहता है. आइए आपको बताते हैं कि इन लाइनों को ही युवाओं ने क्यों चुना? और उस नारे की शुरूआत कैसे हुई?.

कहां से आया नारा, '10 का मुर्गा...'

3 साल पहले 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के वक्त चुनावी चिकन का जायका लेने वाले मतदाताओं के लिए युवाओं ने यह नारा बनाया है. राज्य में विधानसभा चुनाव के वक्त राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए बहुत सारे प्रलोभन दिए. जिसमें एक था 10 का मुर्गा. इसमें मतदाताओं को एक खास सीरीज वाला 10 रुपए का नोट बांटा गया था. जिसके बारे में चिकन दुकान के संचालकों को पहले ही जानकारी दी गई थी. पार्टी कार्यकर्ताओं के माध्यम से यह नोट जनता तक पहुंचा दिए गए और जब लोग इस नोट को लेकर चिकन दुकान पर जाते तो उन्हें वहां से फ्री में 1 किलो चिकन मिलता था.

'आम' कार्यकताओं ने उठाया मुद्दा

जिसके बाद चुनावों के वक्त चिकन दुकानों पर मेले जैसा माहौल दिखाई दिया था. चुनावी चिकन का जायका लेने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती थी. हालांकि इस वक्त भी ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले को एक्सपोज किया था. जिसके बाद कुछ चिकन दुकानों को सील कर निर्वाचन आयोग के निर्देश पर कार्रवाई की गई थी, लेकिन चुनाव के बाद यह मामला शांत हो गया. अब जनसंगठन और आम आदमी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को फिर से जीवित कर दिया है.

खनिज न्यास से मिले थे 10 करोड़ रुपए

बारिश के मौसम में कोरबा की सड़कों का बुरा हाल है. शहर की सड़कों की स्थिति पिछले 2 साल से बेहद खराब हैं. इसे ठीक करने के लिए जिला खनिज न्यास मद से 10 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की गई थी. इस राशि से कोरबा शहर के आसपास की सड़कों को सुधारे जाने की योजना थी. निहारिका, कोसाबाड़ी, सुभाष चौक, आईटीआई चौक, टीपी नगर, रिकांडों चौक से लेकर रिस्दी तक की सड़कों की मरम्मत की जानी थी. कुछ सड़कों को छोड़ दिया जाए तो इस राशि से अधिकांश सड़कों की मरम्मत को पूरा किया जा चुका है, लेकिन पहली बरसात में डामरीकरण के बाद ही कई स्थानों पर सड़कों की सिल कोट उखड़ गई है. साथ ही बजरी सड़क पर बिखरने से लोगों को आवागमन में परेशानी हो रही है. महाराणा प्रताप चौक घंटाघर रोड का निर्माण अब तक पूरा नहीं हो सका है.

ये सड़कें मरम्मत के बाद भी बर्बाद

कोरबा के लोगों ने 10 का मुर्गे का जायका तो खूब लिया, लेकिन यह उन्हें अब पूरे 5 साल रूलाने वाला है. जिसके रूझान अब दिखने लगे हैं. कोरबा में 5 महीने पहले ही शहर के गौमाता चौक सीतामणी से बरबसपुर तक सड़क की मरम्मत हुई थी. जिस पर ढाई करोड़ खर्च हुए थे. अब पहली बारिश में ही सड़क पूरी तरह से उखड़ गई है.

8 साल बाद भी 800 मीटर का एप्रोच रोड नहीं बन सका

कोरबा में सबसे ज्यादा खराब पश्चिम क्षेत्र की सड़कें हैं. 8 साल पहले हसदेव नदी पर नदियाखाड़ के समीप गेरवा घाट पुल का निर्माण पूरा किया गया था. 13 करोड़ की लागत से 2013 में पुल का निर्माण पूरा हो गया, लेकिन इस पुल को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाले 800 मीटर के अप्रोच रोड का काम आज भी अधूरा है. 2 करोड़ रुपए से इस एप्रोच रोड का टेंडर भी हुआ. इसके बाद भी काम शुरू नहीं हो सका. मार्ग में डब्ल्यूबीएम और चौड़ीकरण का काम जरूर कराया गया है, लेकिन वाहनों के आवागमन के लिहाज से सड़क की स्थिति बेहद खराब है.

राजधानी रायपुर में महिलाएं कितनी हैं सुरक्षित, देखिए Etv भारत की खास पड़ताल

दर्री बराज रोड बेहद खराब

दर्री बराज सड़क की लंबाई 606 मीटर और बैराज पुल की लंबाई 287 मीटर है. इस स्थान पर एक महीने पहले ही मरम्मत कराई गई थी. नियमानुसार रोड सिंचाई विभाग की है, लेकिन वाहनों का दबाव इतना ज्यादा है कि सिंचाई विभाग इसके रखरखाव में असमर्थ है. निगम क्षेत्र में होने के कारण जवाबदेही नगर निगम की भी है. महीने भर पहले यहां लाखों रुपए की लागत से डब्ल्यूबीएम कार्य कराया गया था. बरसात में वह भी धुल गई अब पश्चिम क्षेत्र की ओर जाने वाली यह सड़क भी बेहद जर्जर अवस्था में है. इस सड़क से पैदल चलना भी मुश्किल है.

यहां सिर्फ गड्ढे ही गड्ढे

रुमगड़ा चौक से बालको तक पहुंचाने वाली सड़क की हालत भी खराब है. यहां से रिंग रोड होकर गुजरना होता है. कुछ महीने पहले यहां आंदोलन की घोषणा हुई थी. बालको के आश्वासन के बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया, लेकिन सड़क अभी भी नहीं बनी है. शहर की सड़कों के साथ ही कटघोरा, पाली, छूरी, कुसमुंडा, बांकीमोंगरा की सड़कों की हालत भी ठीक नहीं है. उपनगरीय क्षेत्र की मुख्य सड़कें हो या कॉलोनी और बस्तियों की सड़क, सभी की स्थिति बेहद खराब है.

कोरबा में जर्जर इन सड़कों के लिए कई लोग खुलकर आवाज नहीं उठा पाते हैं. वह इसलिए क्योंकि उन्होंने चुनावों के वक्त 10 के मुर्गे का जायका जो लिया है. अब ऐसे में लालच में आकर मतदान करने वालों के कारण पूरा शहर परेशान हो रहा है और यह परेशानी न जाने कब तक रहेगी इसका कुछ पता नहीं.

Last Updated : Aug 7, 2021, 10:37 PM IST
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