ETV Bharat / state

SPECIAL: जिसके लिए अपना घर छोड़ दिया, इन लोगों को वही 'सुख' न मिला - कोरवा आदिवासी का जनजीवन

कोरवा आदिवासी मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे हैं. उनके पास रहने के लिए न तो घर है न चलने के लिए सड़के न बच्चों के पढ़ाने के लिए स्कूल. वे प्रशासन के आगे अपनी मांग करते-करते हार चुके हैं, लेकिन प्रशासन न इनकी सुध ली न ही कोई सुविधा दी. अब ये मूलभूत सुविधा के अभाव में गुजर बसर करने को मजबूर है.

कोरवा आदिवासी मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे
author img

By

Published : Jun 24, 2019, 2:30 PM IST

Updated : Jun 24, 2019, 2:56 PM IST

कोरबा : भाजपा ने छत्तीसगढ़ का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा था. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस गरीब तबके की मुलभूत सुविधा को ध्यान में रखकर मैदान में उतरी थी, लेकिन दोनों में से किसी ने भी विकास की दौड़ में पीछे छूट गए कोरवा आदिवासियों पर ध्यान नहीं दिया. विकास और गरीबी की मार झेलने के साथ-साथ यहां के बच्चों को क, ख, ग, घ में भी फर्क नहीं पता. इसकी वजह यह है कि न ये कभी स्कूल गए और न ही इन्होंने कभी स्कूल देखा. अब सवाल यह उठता है कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले इन आदिवासियों का भला हो तो हो कैसे.

कोरवा आदिवासी मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे

ये कहानी जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत मदनपुर के आश्रित ग्राम सरडीह की है. यहां पिछले 7 दशकों से पहाड़ी कोरवा आदिवासियों का 40 परिवार बसा है. ये पहाड़ और जंगलीवादियों से निकलकर बाहर तो आ गए, लेकिन यहां उन्हें न सड़क मिली न घर और न ही अस्पताल. बारिश के मौसम में यहां पानी सड़कों पर नहीं नालों के ऊपर से बहता है. इसे पार करने के लिए कोरवा आदिवासियों को जान खतरे में डालना पड़ता है.

सफर को तय करना यानी जान जोखिम में डालना
इस गांव के लिए प्रशासन ने जैसे-तैसे सोलर पैनल और एक पानी का बोर तो लगा दिया, लेकिन गांव की अन्य मूलभूत सुविधाओं को नजरअंदाज कर दिया. यहां आस-पास न स्कूल हैं और न ही आंगनबाड़ी. वहीं सरडीह से प्राथमिक शाला की दूरी भी 3 किमी है. इस सफर को तय करना मतलब नाले को पार करना है. साथ ही जंगली जानवरों से भी निपटने के लिए तैयार रहने जैसा है. बता दें कि इस गांव में जंगली भालुओं का खौफ है. इस कारण यहां के ग्रामीण बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हैं. यदि इस गांव में आंगनबाड़ी की सुविधा दी गई होती, तो ये बच्चे भी पढ़-लिखकर देश भविष्य बनते, लेकिन लगातार इनकी दयनीय स्थिति पर गुहार लगाने के बावजूद भी प्रशासन जाग नहीं रहा है.

दलालों ने छीना प्रधानमंत्री आवास का सुख
गांव के लोग पहले से ही गरीबी के साए में है और ऊपर से दलालों ने प्रधानमंत्री आवास का सुख इनसे छीन लिया. बीते 2 सालों से यहां आवास का काम भी अधूरा है. इसके बावजूद इनके हालातों काी सुध लेने वाली न तो सरकार है न प्रशासन और न ही कोई मंत्री-नेता.

कांग्रेस सरकार कर पाएगी भला ?

ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत के ठेकेदारों ने इनके खाते से किस्त-किस्त में पूरा पैसा निकालकर आवास का काम अधूरा छोड़ कर चले गए. आज हालात ऐसे हैं कि कोरवा आदिवासी बद से बदतर हालत में जीने को मजबूर हैं. वहीं बारिश ने भी दस्तक दे दी है. यह कोरवा आदिवासियों के लिए मुश्किल भरा है, जिसके आते ही छोटी-छोटी जरूरतों के लिए इन्हें मशक्कत करना पड़ता है.

अब देखना ये है कि पिछली सरकार ने इस गांव को विकास से अलग कर ही दिया था. वहीं कांग्रेस सरकार भी इनका भला कर पाती है या नहीं. ये तो भविष्य ही बताएगा.

कोरबा : भाजपा ने छत्तीसगढ़ का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा था. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस गरीब तबके की मुलभूत सुविधा को ध्यान में रखकर मैदान में उतरी थी, लेकिन दोनों में से किसी ने भी विकास की दौड़ में पीछे छूट गए कोरवा आदिवासियों पर ध्यान नहीं दिया. विकास और गरीबी की मार झेलने के साथ-साथ यहां के बच्चों को क, ख, ग, घ में भी फर्क नहीं पता. इसकी वजह यह है कि न ये कभी स्कूल गए और न ही इन्होंने कभी स्कूल देखा. अब सवाल यह उठता है कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले इन आदिवासियों का भला हो तो हो कैसे.

कोरवा आदिवासी मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे

ये कहानी जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत मदनपुर के आश्रित ग्राम सरडीह की है. यहां पिछले 7 दशकों से पहाड़ी कोरवा आदिवासियों का 40 परिवार बसा है. ये पहाड़ और जंगलीवादियों से निकलकर बाहर तो आ गए, लेकिन यहां उन्हें न सड़क मिली न घर और न ही अस्पताल. बारिश के मौसम में यहां पानी सड़कों पर नहीं नालों के ऊपर से बहता है. इसे पार करने के लिए कोरवा आदिवासियों को जान खतरे में डालना पड़ता है.

सफर को तय करना यानी जान जोखिम में डालना
इस गांव के लिए प्रशासन ने जैसे-तैसे सोलर पैनल और एक पानी का बोर तो लगा दिया, लेकिन गांव की अन्य मूलभूत सुविधाओं को नजरअंदाज कर दिया. यहां आस-पास न स्कूल हैं और न ही आंगनबाड़ी. वहीं सरडीह से प्राथमिक शाला की दूरी भी 3 किमी है. इस सफर को तय करना मतलब नाले को पार करना है. साथ ही जंगली जानवरों से भी निपटने के लिए तैयार रहने जैसा है. बता दें कि इस गांव में जंगली भालुओं का खौफ है. इस कारण यहां के ग्रामीण बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हैं. यदि इस गांव में आंगनबाड़ी की सुविधा दी गई होती, तो ये बच्चे भी पढ़-लिखकर देश भविष्य बनते, लेकिन लगातार इनकी दयनीय स्थिति पर गुहार लगाने के बावजूद भी प्रशासन जाग नहीं रहा है.

दलालों ने छीना प्रधानमंत्री आवास का सुख
गांव के लोग पहले से ही गरीबी के साए में है और ऊपर से दलालों ने प्रधानमंत्री आवास का सुख इनसे छीन लिया. बीते 2 सालों से यहां आवास का काम भी अधूरा है. इसके बावजूद इनके हालातों काी सुध लेने वाली न तो सरकार है न प्रशासन और न ही कोई मंत्री-नेता.

कांग्रेस सरकार कर पाएगी भला ?

ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत के ठेकेदारों ने इनके खाते से किस्त-किस्त में पूरा पैसा निकालकर आवास का काम अधूरा छोड़ कर चले गए. आज हालात ऐसे हैं कि कोरवा आदिवासी बद से बदतर हालत में जीने को मजबूर हैं. वहीं बारिश ने भी दस्तक दे दी है. यह कोरवा आदिवासियों के लिए मुश्किल भरा है, जिसके आते ही छोटी-छोटी जरूरतों के लिए इन्हें मशक्कत करना पड़ता है.

अब देखना ये है कि पिछली सरकार ने इस गांव को विकास से अलग कर ही दिया था. वहीं कांग्रेस सरकार भी इनका भला कर पाती है या नहीं. ये तो भविष्य ही बताएगा.

Intro:राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा आदिवासी भारी उपेक्षा की मार झेल रहे हैं। जिले का एक ऐसा गांव जहां के बच्चे कभी स्कूल नहीं गए। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाए जा रहे आवास में भी इन्हें ठग दिया गया। और जिला मुख्यालय तक सफर तय करने के लिए इन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ती है।


Body:जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत मदनपुर के आश्रित ग्राम सरडीह की कहानी है। पिछले 7 दशकों से पहाड़ी कोरवा आदिवासियों का 40 परिवार यहां बसा है। पहाड़ों से उतर कर जमीन पर बसने वाले इन पहाड़ी कोरवाओं तक ना सड़क पहुंची ना स्कूल और ना ही आंगनबाड़ी।
जिला प्रशासन ने यहां जैसे तैसे सोलर पैनल और एक पानी का बोर तो लगा दिया। लेकिन गांव में अन्य मूलभूत सुविधाओं को नजरअंदाज कर गए। उस बिजली का यह बच्चे क्या करेंगे जब यह पढ़ने ही नहीं जाते हैं जी हां इतने दशकों से यहां रह रहे बच्चे आजतक स्कूल नहीं गए। दरअसल, सरडीह से प्राथमिक शाला की दूरी 3 किमी है। लेकिन ये शहर नहीं है जनाब, यहां 3 किमी के सफर के बीच बड़ा सा नाला पड़ता है, जिसे पार करके जाने की कोई सुविधा नहीं है। इस 3 किमी की दूरी में घने जंगल भी हैं जहाँ जंगली भालूओं का खौफ है और अभिभावक अपने बच्चों के जान को जोखिम में नहीं डाल सकते। गांव में आंगनबाड़ी भी नहीं है जिससे यहां के बच्चों को पोषण आहार नहीं मिल रहा है। इतनी दयनीय स्थिति पर गुहार लगाने के बावजूद भी प्रशासन जाग नहीं रहा है।
गांव के लोग पहले ही गरीबी के साए में है और ऊपर से इस गरीबी में दलालों ने आटा गीला कर दिया। दरअसल स्थिति इस कदर खराब है कि 13 पहाड़ी कोरवाओं प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर बन रहा था। लेकिन इन आवासों का काम भी कमीशन खोरी की भेंट चढ़ गया और बीते 2 साल से आवास का काम अधूरा पड़ा है। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत के ठेकेदारों ने इनके खाते से किस्त किस्त में पूरा पैसा निकाल लिया लेकिन आवास का काम अधूरा छोड़ गए।
सरडीह ग्राम के लोग सड़क के लिए भी तरस रहे हैं। यहां पक्की सड़क नहीं है। गांव में बीमार पड़ने वाले को गोद में उठाकर नाला पार कराकर मुख्य मार्ग तक लेजाया जाता है। कोई भी बड़ी गाड़ी गांव तक नहीं आ सकती। सड़क के नाम पर दिख रही ये उबड़ खाबड़ ज़मीन भी बारिश में धंस जाती है। हालांकि मुख्य मार्ग से गांव के प्रथम छोड़कर पुल बनाने का काम शुरू तो हुआ है लेकिन ग्रामीण इतने उपेक्षित हो चुके हैं कि इन्हें इस पुल के समय पर निर्मित होने की कोई उम्मीद नहीं है।


Conclusion:वनांचल क्षेत्रों में बसे गांव की स्थिति बारिश में हर वर्ष बद्तर हो जाती है ऐसे में जीवन व्यापन करना एक बड़ी मुसीबत बन जाती है शासन और प्रशासन की अनदेखी से कई जिंदगियां निरर्थक होती जा रही हैं।

बाइट- बंधन सिंह, ग्रामीण(बुजुर्ग व्यक्ति)
बाइट- बहादुर कुमार, ग्रामीण( हरे रंग के कपड़े में)
बाइट- कृष्ण कुमार, ग्रामीण
Last Updated : Jun 24, 2019, 2:56 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.