कोरबा : भाजपा ने छत्तीसगढ़ का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा था. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस गरीब तबके की मुलभूत सुविधा को ध्यान में रखकर मैदान में उतरी थी, लेकिन दोनों में से किसी ने भी विकास की दौड़ में पीछे छूट गए कोरवा आदिवासियों पर ध्यान नहीं दिया. विकास और गरीबी की मार झेलने के साथ-साथ यहां के बच्चों को क, ख, ग, घ में भी फर्क नहीं पता. इसकी वजह यह है कि न ये कभी स्कूल गए और न ही इन्होंने कभी स्कूल देखा. अब सवाल यह उठता है कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले इन आदिवासियों का भला हो तो हो कैसे.
ये कहानी जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत मदनपुर के आश्रित ग्राम सरडीह की है. यहां पिछले 7 दशकों से पहाड़ी कोरवा आदिवासियों का 40 परिवार बसा है. ये पहाड़ और जंगलीवादियों से निकलकर बाहर तो आ गए, लेकिन यहां उन्हें न सड़क मिली न घर और न ही अस्पताल. बारिश के मौसम में यहां पानी सड़कों पर नहीं नालों के ऊपर से बहता है. इसे पार करने के लिए कोरवा आदिवासियों को जान खतरे में डालना पड़ता है.
सफर को तय करना यानी जान जोखिम में डालना
इस गांव के लिए प्रशासन ने जैसे-तैसे सोलर पैनल और एक पानी का बोर तो लगा दिया, लेकिन गांव की अन्य मूलभूत सुविधाओं को नजरअंदाज कर दिया. यहां आस-पास न स्कूल हैं और न ही आंगनबाड़ी. वहीं सरडीह से प्राथमिक शाला की दूरी भी 3 किमी है. इस सफर को तय करना मतलब नाले को पार करना है. साथ ही जंगली जानवरों से भी निपटने के लिए तैयार रहने जैसा है. बता दें कि इस गांव में जंगली भालुओं का खौफ है. इस कारण यहां के ग्रामीण बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हैं. यदि इस गांव में आंगनबाड़ी की सुविधा दी गई होती, तो ये बच्चे भी पढ़-लिखकर देश भविष्य बनते, लेकिन लगातार इनकी दयनीय स्थिति पर गुहार लगाने के बावजूद भी प्रशासन जाग नहीं रहा है.
दलालों ने छीना प्रधानमंत्री आवास का सुख
गांव के लोग पहले से ही गरीबी के साए में है और ऊपर से दलालों ने प्रधानमंत्री आवास का सुख इनसे छीन लिया. बीते 2 सालों से यहां आवास का काम भी अधूरा है. इसके बावजूद इनके हालातों काी सुध लेने वाली न तो सरकार है न प्रशासन और न ही कोई मंत्री-नेता.
कांग्रेस सरकार कर पाएगी भला ?
ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत के ठेकेदारों ने इनके खाते से किस्त-किस्त में पूरा पैसा निकालकर आवास का काम अधूरा छोड़ कर चले गए. आज हालात ऐसे हैं कि कोरवा आदिवासी बद से बदतर हालत में जीने को मजबूर हैं. वहीं बारिश ने भी दस्तक दे दी है. यह कोरवा आदिवासियों के लिए मुश्किल भरा है, जिसके आते ही छोटी-छोटी जरूरतों के लिए इन्हें मशक्कत करना पड़ता है.
अब देखना ये है कि पिछली सरकार ने इस गांव को विकास से अलग कर ही दिया था. वहीं कांग्रेस सरकार भी इनका भला कर पाती है या नहीं. ये तो भविष्य ही बताएगा.