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मिसालः काबिलियत से रूढ़ियों को हराया, विदेशों तक पहुंची इनकी कहानी

सोनामती ने कुष्ठ रोग से लड़कर समाज को मुंह तोड़ जवाब दिया है. साथ ही एक ही अनपढ़ महिला से सर्वगुण समपन्न महिला तक का खिताब भी हासिल कर लिया. आज सोनमती की मिसाल पूरे गांव में दी जा रही है.

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Published : Mar 8, 2020, 1:35 PM IST

Updated : Mar 8, 2020, 1:47 PM IST

सोनामती बिन्झवार
सोनामती बिन्झवार

कोरबा: समाज की रूढ़ीवादी सोच को ठेंगा दिखाकर सोनामती बिन्झवार ने अपने जीवन की ऐसी कहानी लिख दी जिसकी सराहना करते लोग थक नहीं रहे हैं. इस महिला दिवस पर हम आपको एक ग्रामीण महिला के संघर्ष की दास्तान से रूबरू करा रहे हैं, जिनका संघर्ष इस देश की रूढ़िवादी सोच और कुरीतियों पर भारी पड़ रहा है.

पैकेज

ये कहानी कोरबा जिले की पुरैना गांव की रहने वाली सोनामती बिन्झवार की है, जिसके जीवन में कुष्ठ रोग अभिशाप बनकर आया. सोनामती 2001 में गर्भवती हुई. इस दौरान उसे कुष्ठ रोग होने का पता चला. गर्भावस्था में इस बीमारी ने सोनामती को तोड़कर रख दिया. बीमार अवस्था में ही सोनामती ने बच्ची को जन्म दिया. बच्ची के जन्म से सोनामति की गोद तो भर गई, लेकिन जिंदगी सुनसान कोठरी की तरह एक बंद कमरे की मोहताज हो गई. पहले समाज ने सोनामती का बहिष्कार किया फिर ससुराल ने और अंत में पति ने भी सोनामती का साथ छोड़ दिया.

सोनामती बिन्झवार
सोनामती बिन्झवार

एनजीओ से जुड़ी सोनामती

चारों तरफ से बहिष्कार झेल सोनामती टूट चुकी थी लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और समाज से अपने और बच्चे के लिए लड़ पड़ी. सोनामती ने परिस्थितियों को ठीक करने की ठान ली और एक एनजीओ से जुड़ गई. 7 साल तक एनजीओ से जुड़ कर सोनामती ने नर्सिंग के साथ-साथ सिलाई का काम भी सीख लिया. सोनामती भले ही शिक्षित न हो लेकिन उसकी मेहनत और लगन ने उसे उस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया जिसकी उसने उम्मीद भी नहीं की थी.

सोनामती बिन्झवार और उनकी बेटी
सोनामती बिन्झवार और उनकी बेटी

दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग दी

7 साल के इस सफर में सोनामती दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग देने लगी. अब वह खुद स्वावलंबी होने के साथ दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रही हैं. सिलाई, कढ़ाई और बुनाई जैसे हुनर सोनामती ने सीख लिया.

सोनामति की कहानी सरकार तक पहुंची

कुछ लोगों की सहायता से सोनामति की कहानी सरकार तक पहुंची. पुलिस प्रशासन ने पति पर कार्रवाई करते हुए 3000 का जुर्माना लगाया. साथ ही परिवारवालों ने भी सोनमती को अपना लिया. फिलहाल सोनामति महिलाओं को सिलाई सिखाने का काम कर रही हैं.

सोनामती बिन्झवार और उनकी बेटी
सोनामती बिन्झवार और उनकी बेटी

सोनामति पर बनी फिल्म

बता दें इस संघर्ष की कहानी को चांपा के सर्जन डॉक्टर राजेश चंद्रा ने उपन्यास का रूप दिया. वास्तविक जीवन पर आधारित इस उपन्यास पर डॉक्टर चंद्रा की बेटी सनी ने '7 इयर्स टु ग्रेस' नामक एक शार्ट फिल्म बनाई. जिसे अंतरराष्ट्रीय कांस फिल्म समारोह में प्रदर्शन के लिए चुना गया था. आज की तारीख में सोनामति सिलाई के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने का काम भी करती है.

कोरबा: समाज की रूढ़ीवादी सोच को ठेंगा दिखाकर सोनामती बिन्झवार ने अपने जीवन की ऐसी कहानी लिख दी जिसकी सराहना करते लोग थक नहीं रहे हैं. इस महिला दिवस पर हम आपको एक ग्रामीण महिला के संघर्ष की दास्तान से रूबरू करा रहे हैं, जिनका संघर्ष इस देश की रूढ़िवादी सोच और कुरीतियों पर भारी पड़ रहा है.

पैकेज

ये कहानी कोरबा जिले की पुरैना गांव की रहने वाली सोनामती बिन्झवार की है, जिसके जीवन में कुष्ठ रोग अभिशाप बनकर आया. सोनामती 2001 में गर्भवती हुई. इस दौरान उसे कुष्ठ रोग होने का पता चला. गर्भावस्था में इस बीमारी ने सोनामती को तोड़कर रख दिया. बीमार अवस्था में ही सोनामती ने बच्ची को जन्म दिया. बच्ची के जन्म से सोनामति की गोद तो भर गई, लेकिन जिंदगी सुनसान कोठरी की तरह एक बंद कमरे की मोहताज हो गई. पहले समाज ने सोनामती का बहिष्कार किया फिर ससुराल ने और अंत में पति ने भी सोनामती का साथ छोड़ दिया.

सोनामती बिन्झवार
सोनामती बिन्झवार

एनजीओ से जुड़ी सोनामती

चारों तरफ से बहिष्कार झेल सोनामती टूट चुकी थी लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और समाज से अपने और बच्चे के लिए लड़ पड़ी. सोनामती ने परिस्थितियों को ठीक करने की ठान ली और एक एनजीओ से जुड़ गई. 7 साल तक एनजीओ से जुड़ कर सोनामती ने नर्सिंग के साथ-साथ सिलाई का काम भी सीख लिया. सोनामती भले ही शिक्षित न हो लेकिन उसकी मेहनत और लगन ने उसे उस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया जिसकी उसने उम्मीद भी नहीं की थी.

सोनामती बिन्झवार और उनकी बेटी
सोनामती बिन्झवार और उनकी बेटी

दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग दी

7 साल के इस सफर में सोनामती दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग देने लगी. अब वह खुद स्वावलंबी होने के साथ दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रही हैं. सिलाई, कढ़ाई और बुनाई जैसे हुनर सोनामती ने सीख लिया.

सोनामति की कहानी सरकार तक पहुंची

कुछ लोगों की सहायता से सोनामति की कहानी सरकार तक पहुंची. पुलिस प्रशासन ने पति पर कार्रवाई करते हुए 3000 का जुर्माना लगाया. साथ ही परिवारवालों ने भी सोनमती को अपना लिया. फिलहाल सोनामति महिलाओं को सिलाई सिखाने का काम कर रही हैं.

सोनामती बिन्झवार और उनकी बेटी
सोनामती बिन्झवार और उनकी बेटी

सोनामति पर बनी फिल्म

बता दें इस संघर्ष की कहानी को चांपा के सर्जन डॉक्टर राजेश चंद्रा ने उपन्यास का रूप दिया. वास्तविक जीवन पर आधारित इस उपन्यास पर डॉक्टर चंद्रा की बेटी सनी ने '7 इयर्स टु ग्रेस' नामक एक शार्ट फिल्म बनाई. जिसे अंतरराष्ट्रीय कांस फिल्म समारोह में प्रदर्शन के लिए चुना गया था. आज की तारीख में सोनामति सिलाई के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने का काम भी करती है.

Last Updated : Mar 8, 2020, 1:47 PM IST
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